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LU : लखनऊ विश्वविद्यालय की स्मृतियाँ : अवध की तक्षशिला

अवध की तक्षशिला (लखनऊ विश्वविद्यालय)

  • कला विद्यालय हाट में,
  • कलाबाजी खाती अमूल्य कलाकृतियाँ
  • सजने को बेचैन करवा रही मूल्यांकन
  • घर बसाने को खोजती वर-वधू अकिंचन
  1. नृत्यमय युवाओं की सुसज्जित थिरकनें
  2. मचलती हवाओं में घिरा आज मधुबन
  3. शिक्षार्थियों! स्मृतियों नें छोड़ी छाप गहरी है
  4. नवाबी नगर अब सितारों की नगरी है
  • कत्थक ठुमरी दादरा की अपनी देहरी है
  • जहाँ प्रेम की उपासना करना नामर्दी है।
  • हाँ लखनऊ में सर्दी है।” 

ये पंक्तियाँ हैं मेरे काव्य संग्रह ‘गंगा से ग्लोमा तक’ से ‘लखनऊ में सर्दी है’ शीर्षक कविता से ली गयी हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय से जो गोमती नदी के किनारे हनुमान सेतु मन्दिर के पास है। जी हाँ अब तो विश्वविद्यालय तक मैट्रो भी जाती है। आप विश्वविद्यालय जाना चाहते हैं और आप चाहे रेल द्वारा चारबाग रेलवे स्टेशन से लखनऊ आये हों या हवाई जहाज से आपको दोनों जगह विश्वविद्यालय जाने के लिए टैक्सी के अलावा मैट्रो भी मिलेगी।  मैं लखनऊ जाऊँ और यह हो नहीं सकता कि लखनऊ विश्वविद्यालय न जाऊँ।  लखनऊ विश्वविद्यालय से मेरा बहुत पुराना नाता है। जब मैं इंटर में पढता था लखनऊ विश्वविदयालय बहुत आता था। जब छात्रसंघ के चुनाव होते या कोई विशेष कार्यक्रम होता था।

जय प्रकाश नारायण से मिला

उस समय की बात है जब आपातकाल लगने के पहले देश में सरकार बदलने के लिए आन्दोलन शुरू हुआ था। एक बार जय प्रकाश नारायण भी लखनऊ आये थे. लखनऊ विश्वविद्यालय में उनका भाषण होना था। यह सन 1976 रहा होगा।  मैं भी बड़ी उत्सुकता से आयोजन में छात्रसंघ के लोगों के साथ घुल मिल गया था और कुर्सी आदि लगाने में भी मदद कर रहा था। मेरा भी मंच से नाम लिया गया और मुझे जय प्रकाश नारायण ने माला पहनाया था। उस समय युवकों में जय प्रकाश नारायण की समग्र क्रांति का नारा खासा लोकप्रिय था। हम नारे लगा रहे थे ‘लोकनायक जय प्रकाश  जिंदाबाद। ज़िंदाबाद।’

आंदोलन और आपातकाल में शिक्षा संस्थान बंद होने के कारण दो साल की पढ़ाई तीन साल की हो गयी थी। लखनऊ विश्विद्यालय से दो साल की स्नातक की शिक्षा तीन साल में पूरी हुई थी। सन 1976 से 1979 तीन साल लगे थे स्नातक की पढ़ाई में। जनवरी 1980 में ओस्लो, नार्वे जाने का संयोग बना ओस्लो विश्वविद्यालय में प्रोविजनल सर्टिफिकेट और उपकुलपति से अलग से प्रमाणपत्र चाहिए था वह, लेने गया था।

दीप जो बुझते नहीं का लोकार्पण हिन्दी विभाग में

जो हिन्दी लेखक हैं वह भली भाँति जानते हैं कि जब उनकी पुस्तक का विमोचन होता था तो उन्हें ही सारे इंतजाम करने होते थे।  लखनऊ विश्वविद्यालय में मेरे चौथे काव्यसंग्रह दीप जो बुझते नहीं का विमोचन था. वह एक यादगार कार्यक्रम था। अनेक हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान वहां एकत्र होने थे। विभागाध्यक्ष सूर्य प्रसाद दीक्षित जी ने मेरी ड्यूटी लगाई कि मैं कुँअर चन्द्र प्रकाश सिंह और हिन्दी कविता के सशक्त हस्ताक्षर लक्ष्मीकांत वर्मा की सवारी का इंतजाम करके लाऊँ। 

मैं सोचने लगा कि क्या करूँ। मेरे मस्तिष्क में आया क्यों न बड़ी पूरी टेम्पो को बुक करके उन्हें लाया जाये और कामयाब हो गया। लक्ष्मीकांत वर्मा जी उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष बने थे और यह उनका पहला सार्वजानिक कार्यक्रम था। कुछ वर्षों बाद लक्ष्मीकांत वर्मा जी के अस्वस्थ होने पर एक बार मैं उन्हें उनके इलाहबाद निवास पर मिलने गया था।

कार्यक्रम में डॉ दुर्गा शंकर मिश्र, दाउद जी गुप्त, डॉ. आभा अवस्थी, शम्भुनाथ चतुर्वेदी आदि उपस्थित हुए और मेरी पुस्तक के अंशों का पाठ करते हुए उसकी महत्वता बता रहे थे। दूसरे शब्दों में मुझे आशीर्वाद दे रहे थे। इस कार्यक्रम की वीडियो रिकार्डिंग भी हुई थी।  लखनऊ विश्वविद्यालय ने मेरे साहित्य को एक मजबूत आधार दिया और स्थापित करने में भूमिका निभाई और यहाँ से मेरे साहित्य पर तीन शोधकार्य हुए हैं। दो शोध कार्य प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह के निर्देशन में और एक शोध डॉ. कृष्णा जी श्रीवास्तव के निर्देशन में हो चुके हैं।

भगवती चरण वर्मा की जन्म शताब्दी

2019 तो मेरे लिए बहुत ख़ास था इस वर्ष मैंने दो साहित्यिक कार्यक्रमों की अध्यक्षता की जिसमें एक भगवती चरण वर्मा जी की जन्मशती थी जिसमें भगवती चरण वर्मा जी के पुत्र और पौत्र सम्मिलित हुए थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्णा जी श्रीवास्तव कर रहे थे और प्रो थापा जी ने मेरे बार-बार विश्वविद्यालय में मेहमान बनने पर सुन्दर टिप्पणी अपने वक्तव्य की थी। “सुरेशचन्द्र शुक्ल जी चिड़िया की तरह बार-बार फुदक-फुदक कर आ जाते हैं” सभी ने तालियां बजायीं और शुष्क वातावरण हँसी से मनोविनोद में बदल बहुत सुन्दर बन पड़ा था।

मैंने अपने वक्तव्य में प्रो थापा जी से सहमति जताते हुए कहा था, “आज जब भारत में गौरैया कम हो गयी हैं उन्होंने आना काम कर दिया है तब मैं गौरैया की तरह अपने आँगन में आ जाता हूँ। और जाने-अनजाने उनकी कमी पूरी करने का प्रयास करता हूँ.” सभी ने तालियाँ बजाकर दोनों के वक्तव्य का स्वागत किया।  इसी वर्ष 2019 में तीन बार विभिन्न अवसरों पर उपकुलपति जी ने शाल और पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया था। इसी वर्ष जनवरी 2020 में एक बड़े कार्यक्रम में मुख्यमंत्री स्वयं भी आये थे। मेरे साहित्य पर वैश्विका पत्रिका ने विशेषांक प्रकाशित किया था जिसका लोकार्पण समापन समारोह में हुआ था।

लक्ष्मी मिलिंग से मुलाकात

लखनऊ विश्वविद्यालय में घूमते हुए सन 1976 में मेरी मुलाक़ात वाशिंगटन की एक अमेरिकी युवती लक्ष्मी मिलिंग से हो गयी थी जो हिन्दू बन गयी थी और उसने अपना नाम लक्ष्मी रख लिया था। उसे मैं अपने घर ले गया और तीन दिन हमारे परिवार के साथ रही थी। उसने वापस जाने के बाद अमेरिका से कुछ पत्र भी लिखे थे नासमझी में मैं उसके पत्रों का जवाब नहीं दे सका था. जब मई 2019 में वाशिंटन गया तो उसकी याद आ गयी। अब बहुत देर हो चुकी थी।

(सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो, नार्वे से)

यह भी पढ़े:- रामलला मंदिर निर्माण में सहयोग देकर आप भी हो सकते हैं कृतज्ञ 

https://youtu.be/4zhmOpOS17E

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