उत्तर प्रदेशराज्य

माहवारी गर्व की बात, शर्माएं नहीं : डॉ.पिंकी

माहवारी स्वच्छता दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित चर्चा में बोलीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निदेशक
सेंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से आयोजित चर्चा में GM आरकेएसके ने बताईं सरकारी योजनाएं

लखनऊ : माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें शर्म या हया का बोध क्यों। यह तो किसी महिला के लिए गर्व की बात है। माहवारी के दौरान शरीर की देखभाल मौलिक स्वतंत्रता का अनिवार्य हिस्सा है, फिर भी बड़ी संख्या में माहवारी उत्पादों तथा माहवारी स्वच्छता संबंधी उपायों तक समुदाय की पहुँच नहीं है। विभाग लगातार प्रयासरत है कि एक-एक किशोरी को जागरूक बनाया जाए और उन तक सेनेटरी पैड पहुंचे। इसके अलावा विभाग 10 से 19 वर्ष तक की बेटियों की सेहत का ध्यान रखने के लिए उनके खून की जांच कराने की शुरुआत करने जा रहा है। इससे उनके एनीमिक होने पर उनका इलाज कराया जा सकेगा। यह कहना है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की मिशन निदेशक डा. पिंकी जोवल का। वह माहवारी स्वच्छता दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को एसजीपीजीआई में आयोजित कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रही थीं।

सेंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च के सहयोग से आयोजित सहज स्वास्थ्य चर्चा में डॉ पिंकी ने कहा कि माहवारी कोई अपवित्रता की बात नहीं है। हर माँ को अपनी बेटी को उसकी माहवारी शुरू होने से पहले बात करना चाहिए। अगर मां अपनी पुरानी सोच के चलते बेटी से इस विषय पर बात करने से हिचकिचाती रहेगी तो वह अपनी बेटी की सेहत से खिलवाड़ करेगी। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में जब किसी बेटी को माहवारी आती है तो परिवार बाकायदा आयोजन करता है। इस तरह मांओं व परिवारों को अपनी बच्चियों की खातिर शर्म का बंधन तोड़ना होगा।

माहवारी स्वच्छता दिवस की इस वर्ष की थीम है “टुगेदर फॉर ए पीरियडफ्रेंडलीवर्ल्ड” अर्थात माहवारी अनुकूल विश्व के लिए एकजुट हों। कार्यशाला में मौजूद किशोरियों व विभिन्न स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को संबोधित करते हुए एनएचएम के राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के महाप्रबंधक डा. मनोज शुकुल ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) 2020-21 के अनुसार प्रदेश में 15 से 24 साल की 72.6 फीसद युवतियाँ ही माहवारी के दौरान सुरक्षित साधनों का उपयोग करती हैं। यह आंकड़ा बताता है कि किशोरियों व लड़कियों के बीच अभी और जागरूकता लाने की जरूरत है।उन्होंने बताया कि प्रदेश में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत किशोर-किशोरियों के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जागरूकता एवं किशोरों में सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं, जिनमें साथिया केंद्र (किशोर मैत्री स्वास्थ्य क्लीनिक्स) का सुदृढ़ीकरण, पीयर एजुकेशन कार्यक्रम, किशोर स्वास्थ्य दिवस का आयोजन, साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड की आपूर्ति और माहवारी स्वच्छता के लिए किशोरी सुरक्षा योजना।

कार्यशाला में एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य ने माहवारी के शुरू होने पर बच्ची पर होने वाले मानसिक प्रभाव, क्वीन मैरी अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. सुजाता देब ने माहवारी के प्रबंधन व डायटीशियन शिल्पी त्रिपाठी ने माहवारी व पोषण के संबंध पर विस्तार से चर्चा की। अंत में पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल-इंडिया (पीएसआई इंडिया) की इप्शा सिंह ने किशोरियों को सामूहिक गतिविधियां कराकर असुरक्षित यौन संबंध, अनचाहे गर्भ जैसे मुद्दों पर संवेदित किया। प्रश्नोत्तर काल में अनचाहा गर्भ, प्रजनन तंत्र संक्रमण एवं यौन जनित संक्रमण, एच.आई.वी. का खतरा तथा किशोरियों में विशेषकर कुपोषण व रक्तअल्पता आदि प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं पर सवाल जवाब हुए। चर्चा में मुख्य रूप से किशोरियों, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं, आशा बहुओं ने प्रतिभाग किया और अपने गाँव में जाकर इस मुद्दे पर बात करने का संकल्प लिया।

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