
लखनऊ से ‘विश्व शांति’ का संदेश
(विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का 26वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन)
-प्रोफेसर गीता गांधी किंगडन
विश्व आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां विज्ञान और तकनीक नई ऊंचाइयां छू रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर युद्ध, हिंसा, राजनीतिक तनाव और मानवीय संकट भी भयावह रूप से बढ़ रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा-इस्राइल संघर्ष, सूडान, सोमालिया, कांगो और यमन के लंबे गृहयुद्धों ने बच्चों के भविष्य पर सबसे गंभीर प्रहार किए हैं। यूनीसेफ के अनुसार वर्ष 2024 तक विश्वभर में लगभग 48.8 मिलियन (4.88 करोड़) बच्चे युद्ध और हिंसा के कारण विस्थापित हो चुके हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में जहाँ 15 लाख से अधिक बच्चे अपने घर खो चुके हैं, वहीं गाजा में कुछ महीनों में ही 10,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु दुनिया के संवेदनशील विवेक को झकझोरने के लिए पर्याप्त है। लाखों बच्चे अनाथ हो गए हैं, लाखों शिक्षा से दूर, और हजारों स्कूल जमीन से मिट चुके हैं। यह वैश्विक तस्वीर इस बात की गवाही है कि आज की दुनिया में बच्चों का भविष्य सबसे अधिक खतरे में है।

ऐसे निराशाजनक समय में शांति की एक सशक्त और आशावादी आवाज भारत के सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सी.एम.एस.) लखनऊ से उठी है। जहाँ 20 से 23 नवम्बर 2025’ तक ‘विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का 26वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ आयोजित किया गया। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केवल एक वैश्विक आयोजन नहीं, बल्कि ’संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधार, सशक्त वैश्विक शासन की आवश्यकता तथा विश्व के 2.5 अरब बच्चों के भविष्य की रक्षा का अंतरराष्ट्रीय संकल्प सिद्ध हुआ। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 51’ तथा “वैश्विक शासनः विखंडित विश्व में सतत व टिकाऊ भविष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र और उसके चार्टर पर एक नया दृष्टिकोण” विषय पर आयोजित किया गया। इसी वैश्विक पृष्ठभूमि में आयोजित इस सम्मेलन में 52 देशों के मुख्य न्यायाधीश, अंतरराष्ट्रीय न्यायविद, क्रोएशिया के पूर्व राष्ट्रपति, लेसोथो के पूर्व प्रधानमंत्री और एंटीगुआ-बारबुडा की संसद के अध्यक्ष सहित अनेक प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रतिनिधियों ने वैश्विक शासन, न्यायिक सहयोग, जलवायु चुनौतियाँ और विश्व शांति जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया।

इस सम्मेलन की एक विशेष पहचान रही सी.एम.एस. के 9,000 से अधिक छात्रों की सक्रिय सहभागिता। छात्रों के विचारशील प्रश्न, अनुशासन और ‘जय जगत’ के प्रति उनकी निष्ठा ने यह सिद्ध कर दिया कि शांति का वास्तविक आधार शिक्षा है। इस सम्मेलन का 23 नवम्बर को सर्वसम्मति से ‘लखनऊ घोषणा-पत्र’ को अंगीकार करते हुए समापन हुआ। इस घोषणा-पत्र में ’संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधार, सशक्त वैश्विक शासन की आवश्यकता तथा विश्व के 2.5 अरब बच्चों के शांतिपूर्ण भविष्य को सुरक्षित करने पर विशेष बल देते हुए इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि जब तक वैश्विक निर्णय-प्रक्रिया में बच्चों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक स्थायी शांति संभव नहीं है। इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अब तक विश्व प्रसिद्ध धर्म गुरू दलाई लामा जी के साथ ही 143 देशों के 1576 मुख्य न्यायाधीश और न्यायविद् इस मंच पर बच्चों की सुरक्षा और विश्व शांति के लिए आवाज उठा चुके हैं।

सन् 1959 में डा.भारती गांधी एवं स्वर्गीय डा.जगदीश गांधी ने केवल पाँच बच्चों और उधार के 300 रूपये से जिस विद्यालय की शुरूआत की, उसने पहले ही दिन बच्चों की स्लेट पर ‘जय जगत’ लिखवाकर यह स्पष्ट कर दिया था कि यह शिक्षा संस्थान केवल परीक्षाओं में श्रेष्ठता का केंद्र नहीं, बल्कि विश्वशांति की शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनेगा। उनका विश्वास था कि यदि बच्चों के मन-मस्तिष्क में बचपन से ही यह डाल दिया जाए कि सारी पृथ्वी एक परिवार है और हम सब उसके नागरिक, तो युद्ध और हिंसा अपने आप समाप्त हो जाएंगे। आज वही दर्शन सी.एम.एस. की शिक्षा की धुरी है। हाल ही में विद्यालय के पूर्व छात्र ’ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला’ का यह कथन- “अंतरिक्ष से कोई देश और सीमा दिखाई नहीं देती।”

सी.एम.एस. की वैश्विक शिक्षा-दृष्टि को साकार करता है। इस अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश सम्मेलन में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला भी शामिल हुए। विद्यालय की उपलब्धियां भी इसकी वैश्विक भूमिका को प्रमाणित करती हैं। वर्ष 1999 से यह विद्यालय ‘गिनीज़ बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड’ में एक शहर में सर्वाधिक छात्रों वाले विद्यालय के रूप में दर्ज है। वर्तमान में इसके 21 कैम्पसों में 64,000 से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं। 2002 में इसे ’यूनेस्को प्राइज़ फाॅर पीस एजुकेशन’ से सम्मानित किया गया और 2014 में यह विद्यालय ’यूनेस्को का अधिकृत एन.जी.ओ.’ बना।

आज, जब विश्व के अनेक देशों में शिक्षा पर बारूद की गंध हावी है, स्कूलों के स्थान पर शरणार्थी शिविर खड़े हो रहे हैं और बच्चों की हँसी गोलियों की आवाज़ में दबती जा रही है- ऐसे समय में सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ने एक बार फिर से पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है कि “शिक्षा ही वह सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे युद्ध नहीं, बल्कि शांति जीती जा सकती है।” वास्तव में अगर हमें बच्चों को सुरक्षित, सुंदर और स्थिर भविष्य देना है, तो हमें युद्ध नहीं, शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना होगा।
(लेखक सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ की प्रबंधक हैं।)



