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‘पंच प्रण’ में मोदी का 25 वर्षों का रामराज्य वाला ब्लू प्रिंट

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौवीं बार लाल किले से अपने संबोधन में जिस तरह से 5 प्रण दिलाए, वह काबिलेतारीफ तो है ही इससे युवाओं का भी हौसला बढ़ा है। यह सच है कि जिस दिन विकसित भारत, गुलामी के हर अंश से मुक्त हो जायेगा उस दिन से देश रामराज्य बनते देर नहीं लगेगा। विरासत पर गर्व और एकता-एकजुटता के साथ ही भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर हमला बोला है, वह आने वाली पीढ़ी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। खास बात यह है कि ऐसा करने के लिए हमारे पास अनमोल सामर्थ्य है. इतना ही नहीं पीएम मोदी ने आजादी के 100 साल पूरे होने पर विकसित देश बनाने का संकल्प लेने की भी अपील की. शायद यही वजह है कि विश्व भारत की ओर गर्व, अपेक्षा से देख रहा है. देखा जाएं तो पीएम मोदी ने स्वयं इस बात को स्पष्ट किया कि आजादी के इतने दशकों के बाद पूरे विश्व का भारत की तरफ देखने का नजरिया बदल चुका है। समस्याओं का समाधान दुनिया भारत की धरती पर खोजने लगी है। विश्व का ये बदलाव, विश्व की सोच में ये परिवर्तन 75 वर्ष की हमारी यात्रा का परिणाम है। उन्होंने अपने इस ‘पंच प्रण’ के माध्यम से आने वाले 25 वर्षों का एक बेहतरीन ब्लू प्रिंट तैयार कर दिया है, जो अगर सफलतापूर्वक पूरा हो जाए तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश एक विकाशसील देश से एक विकसित देश के रूप में स्थापित हो जाएगा।

-सुरेश गांधी

भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं और हम 76वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। देश ने आजादी का अमृत महोत्सव काफी धूमधाम से मनाया। इसके साथ ही लाल किले की प्राचीर से पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में आजादी के ‘अमृत काल’ में ‘पंच प्रण’ के संकल्प का आह्वान किया है, जो देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर देश की स्थिति का, एक तरह से कहा जाए तो ब्लू प्रिंट के समान है। वर्ष 2047 में देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे और पीएम मोदी ने इस पंच प्रण को स्वर्णिम काल तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है। फिरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए अपने भाषण में ‘जय अनुसंधान’ का नया नारा देकर देश को अगले 25 वर्षों के भीतर विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प जताया है। इस दिशा में युवा देश को किस तरह आगे बढ़ा सकते हैं, यह बड़ा सवाल है। उनके पांच संकल्प-प्रण न सिर्फ देश को विकसित राष्ट्र बनाने का है, बल्कि उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ के साथ एक नया नारा ‘जय अनुसंधान’ का दिया। देखा जाए, तो सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति युवाओं को इसी दिशा में प्रेरित करती है। बेशक आज ट्विटर, गूगल, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसी तकनीकों का आविष्कार हमारे यहां नहीं हो पा रहा है, तो यह विचारणीय सवाल है। क्योंकि इनके विकसित होने में अमेरिका या अन्य देशों का नाम भले ही अग्रणी पंक्ति में हो, लेकिन इसके पीछे भारतीय प्रतिभाएं ही हैं। मतलब साफ है अगर आने वाले दिनों में कुछ ऐसी व्यवस्था विकसित हो, जिससे इन्हें बाहर जाने के बजाय देश में ही रहकर अपना कौशल दिखाने का अवसर मिले। क्योंकि हमारे देश के युवाओं में ऐसी क्षमता और शक्ति है, बस उन्हें संसाधन एवं वातावरण मुहैया कराना होगा।

हालांकि यह सबकुछ तभी संभव हो पायेगा, जब हमारा देश अंतिम पायदान तक भ्रष्टाचार मुक्त हो। यह अलग बात है कि मोदी के जरिए पिछले सात सालों में देश इस कोढ़ से मुक्त होने को लगातार प्रयासरत है, लेकिन अभी तक राज्य की जांच एजेंसियां राजनीतिक दबाव से मुक्त नहीं हो पायी है। पुलिस की तफतीश आज भी बगैर घूस के पूरी नहीं होती। मतलब साफ है थानों से लेकर तहसील सहित अन्य सरकारी विभागों में पहले जैसा ही सेटिंग-गेटिंग का माहौल है। हालांकि जरूरतमंद लोगों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिये सरकारी योजनाओं के लाभ दिए जा रहे हैं। इससे सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार जरुर कम हुआ है। जहां तक जांच एजेसिंयों का सवाल है तो सीआईडी, सीबीआइडी पुलिस की एक विंग है, जिसका काम ऐसी सूचनाएं एकत्र कर राज्य सरकार तक पहुंचाने का है, जिनके बारे में सरकार को जानकारी होनी बेहद जरूरी है। लेकिन सच तो यह है कि ये सूचनाएं राजनीतिक, व्यक्तिगत और भ्रष्टाचार के चलते सरकार तक नहीं पहुंच पाती है। कई बार विशेष मामलों में सरकार को एसआइटी (विशेष जांच दल) और एसटीएफ (विशेष कार्य बल) का गठन कर उनकी जांच करानी पड़ती है। मुख्यमंत्री कार्यालय में सीएम फ्लाइंग स्क्वाड अलग से काम करती है, लेकिन सही मायने में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की तह तक पहुंचने और भ्रष्ट सरकारी तंत्र को उजागर करने का काम स्टेट विजिलेंस ब्यूरो का है। मोदी ने कहा कि भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है, उससे देश को लड़ना ही होगा। हमारी कोशिश है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उनको लौटाना भी पड़े, हम इसकी कोशिश कर रहे हैं।

पिछले करीब सात दशकों में देश में शोध, नवाचार को बढ़ावा देने पर उतना ध्यान नहीं दिया, पिछले कुछ वर्षों से बदलाव तेजी से होते दिख रहे हैं। इस दिशा में सरकार मेहनत कर रही है। सरकार के साथ देश के लोगों में सुनहरे भारत का दृष्टिकोण विकसित हो रहा है। नई शिक्षा नीति युवाओं को यह सुविधा देती है कि वे बंधे-बंधाये पाठ्यक्रम को पढ़ने के बजाय उसे छोड़कर अपनी रुचि के किसी दूसरे विषय को पढ़ सकें। उसके पास कई तरह के विकल्प होंगे, जिससे उसे अपने हुनर को आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी। नवाचार, स्टार्टअप को मिल रहे प्रोत्साहन के चलते शिक्षण संस्थानों में इंडस्ट्री के सहयोग से इन्क्यूबेशन सेंटर खोले जा रहे हैं, जहां युवा न केवल इंडस्ट्री के विशेषज्ञों से उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप प्रशिक्षण ले सकते हैं, बल्कि वहां उन्हें नवाचार की राह पर बढ़ते हुए अपना स्टार्टअप लाने में भी पूरी मदद मिलेगी। पीएम मोदी ने कहा कि हमें अंग्रेजों के जैसे दिखने की जरूरत नहीं है, गुलामी की मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है. उनके इस संदेश को प्रशासन अमल में लाएं तो निश्चित ही आमजनमानस को इसका लाभ दिखेगा। आने वाले 25 साल के लिए हमें ’पंच प्रण’ पर अपनी शक्ति, संकल्पों और सामर्थ्य को केंद्रित करना होगा. अनुभव कहता है कि एक बार हम सब संकल्प लेकर चल पड़ें, तो हम निर्धारित लक्ष्यों को पार कर लेते हैं. जिस प्रकार से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी है, जिस मंथन के साथ बनी है, कोटि-कोटि लोगों के विचार प्रवाह को संकलित करते हुए बनी है.

भारत की धरती से जुड़ी हुई शिक्षा नीति बनी है. हम वो लोग हैं, जो जीव में शिव देखते हैं, हम वो लोग हैं, जो नर में नारायण देखते हैं. हम वो लोग हैं, जो नारी को नारायणी कहते हैं, हम वो लोग हैं, जो पौधे में परमात्मा देखते हैं. हम वो लोग हैं, जो नदी को मां मानते हैं, हम वो लोग हैं, जो कंकड़-कंकड़ में शंकर देखते हैं. आत्मनिर्भर भारत, ये हर नागरिक का, हर सरकार का, समाज की हर एक इकाई का दायित्व बन जाता है. आत्मनिर्भर भारत, ये सरकारी एजेंडा या सरकारी कार्यक्रम नहीं है, ये समाज का जन-आंदोलन है, जिसे हमें आगे बढ़ाना है। उन्होंने पंच-प्रण की बात करते हुए महिलाओं के अपमान से मुक्ति का संकल्प लेने का आह्वान किया। साथ ही अगले 25 साल का विकसित भारत का लक्ष्य भी दे दिया। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संदेश दिया कि हम जैसे हैं वैसे, यह हमारा मिजाज होना चाहिए। उन्होंने देशवासियों को संकल्प दिलाया कि अब हमें रुकना नहीं है, अगले 25 साल में भारत को विकसित राष्ट्र बनाना ही होगा। हमें छोटा नहीं अब बहुत बड़ा लक्ष्य लेकर चलना होगा। पीएम ने एक और बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि किसी न किसी कारण से हमारे अंदर यह विकृति आई है। हमारे बोलचाल में, हमारे व्यवहार में, हमारे कुछ शब्दों में.. हम नारी का अपमान करते हैं… क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं.. मोदी यह बोलते हुए भावुक हो गए। वह बोलते-बोलते कुछ देर के लिए रुक भी गए।

पांच प्रण

  • पीएम ने पांच प्रण की बात की। उन्होंने कहा कि पहला प्रण अब देश बड़े संकल्प लेकर चलेगा और वो बड़ा संकल्प है विकसित भारत। अब उससे कम नहीं होना चाहिए।
  • दूसरा प्रण- किसी भी कोने में, हमारे मन के भीतर गुलामी का एक भी अंश अगर है तो उसे किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। सैकड़ों साल की गुलामी ने हमारे मनोभाव को बांध कर रखा है, हमें गुलामी की छोटी सी छोटी चीज भी नजर आती है हमें उससे मुक्ति पानी होगी।
  • तीसरा प्रण- हमें हमारी विरासत पर गर्व होना चाहिए क्योंकि यही विरासत है जिसने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था।
  • चौथा प्रण- एकता और एकजुटता, 130 करोड़ देशवासियों में एकता, न कोई अपना न कोई पराया। एकता की ताकत एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपनों के लिए है।
  • पांचवां प्रण- नागरिकों का कर्तव्य, इसमें पीएम और सीएम भी आते हैं। ये हमारे आने वाले 25 साल के सपनों को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी प्रणशक्ति है।

आधी आबादी को मिले हक

देश में लैंगिक समानता की राह कठिन जरूर हो सकती है लेकिन असंभव नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से दिए गए संबोधन में लैंगिक समानता को हमारी एकता में पहली शर्त बताते हैं तो यह उम्मीद और उजली हो जाती है कि मन से प्रयास हों तो इस राह को आसानी से पार किया जा सकता है। पीएम के संबोधन के बहाने ही सही, यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि आजादी के 75 सालों में लैंगिक समानता की दिशा में हासिल की गई उपलब्धियां आखिर गिनती की ही क्यों रह गई हैं? आखिर सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लैंगिक असमानता क्यों बरकरार है? वह भी तब, जब हम इस वर्ग को ’आधी आबादी’ का संबोधन देते हैं। प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि नारी गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी साबित होने वाला है। इसीलिए जब वे बोलचाल में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प लेने की बात कहते हैं तो इसी नारी गौरव की तरफ ध्यान दिलाते हैं। यह बात सही है कि स्त्री शक्ति ने देश-दुनिया में समय-समय पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। लेकिन महिलाओं को कमतर होने का अहसास दिलाने की पुरुष वर्ग की मानसिकता आज भी स्त्रियों को उनके हकों से वंचित कर रही है। नारी सशक्तीकरण की बातें कागजी योजनाओं में काफी अच्छी लगती हैं पर धरातल पर अभी काफी कुछ होना बाकी है। खास तौर से आधी आबादी को लोकतांत्रिक व्यवस्था में बराबरी का हक देने को लेकर। यह विडम्बना ही है कि विधायिकाओं में 50 फीसदी नहीं, बल्कि महज 33 फीसदी आरक्षण की सालों से चल रही मांग आज तक अधूरी ही है। पंचायत और स्थानीय निकाय स्तर पर आरक्षण से महिलाओं को मौका जरूर मिला लेकिन यहां भी कितना सशक्तीकरण नारी शक्ति का हो पाया है यह किसी से छिपा नहीं है। शिक्षित, आर्थिक रूप से स्वावलंबी, ऊंचे पदों पर बैठी महिलाओं के विपरीत लैंगिक भेदभाव की उस तस्वीर को भी देखना होगा जहां महिलाओं को यह तक पता नहीं कि कानून ने किन-किन क्षेत्रों में उनको कितना संरक्षित कर रखा है।

पिता की संपत्ति में भी बेटियों का अधिकार

यह अफसोस की बात है कि देश की सर्वोच्च अदालत जनमानस को नए जमाने के मुताबिक मोड़ने की महत्वपूर्ण भूमिका बखूबी निभाते हुए कहा है कि पिता की अपनी कमाई संपत्तियों में बेटियों के अधिकार मिले। खास यह है कि देश की शीर्ष अदालत ने हिंदू परिवार की बेटियों को उस स्थिति में अपने भाइयों या किसी अन्य परिजन के मुकाबले पिता की संपत्ति में ज्यादा हकदार बताया है जब पिता ने कोई वसीयतनामा नहीं बनाया हो और उनकी मृत्यु हो जाए। लेकिन इसका फायदा आम महिलाओं को मिलता नहीं दिख रहा है। बड़ी संख्या में महिलाओं को अपने हक व अधिकार के लिए निचली अदालतों का चक्कर लगाना पड़ता है। जबकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी महिला के लिए संपत्ति का अधिकार उसकी जिंदगी तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता है। अगर उसने अपनी जिंदगी में वसीयतनामा बना दिया तो उसकी मृत्यु के बाद वसीयतनामे के आधार पर उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार सौंपा जाएगा यानी उसने वसीयतनामें जिसे जिस हिस्से में अपनी संपत्ति देने की इच्छा जताई हो, उसके बीच उसी हिसाब से संपत्ति का बंटवारा होगा। अगर महिला बिना वसीयतनामे के मर जाती है तो उसके माता-पिता से प्राप्त संपत्ति उसके माता-पिता के उत्तराधिकारियों के पास चली जाएगी और पति या ससुर से प्राप्त संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों के पास चली जाएगी।

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