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मोहिनी एकादशी आज, जानिए मुहूर्त, महत्‍व, कथा व पूजा विधि के बारे में

नई दिल्ली : हिन्दू धर्म में मोहिनी एकादशी बहुत ही पावन और फलदायी तिथि मानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस पावन तिथि के दिन पूर्ण विधि विधान से व्रत रखता है तो उसका जीवन में कल्याणमय हो जाता है. व्रत रखने वाला व्यक्ति मोह माया से निकलकर मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है. इस बार मोहिनी एकादशी 01 मई यानी आज मनाई जा रही है.

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी. ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोह माया के जाल में फांसकर सारा अमृत देवताओं को पिला दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया. इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया.

उदयातिथि के अनुसार, मोहिनी एकादशी 01 मई यानी आज ही मनाई जाएगी. एकादशी तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल यानी कल रात 08 बजकर 28 मिनट पर शुरू हो चुकी है और इसका समापन 01 मई यानी आज रात 10 बजकर 09 मिनट पर होगा. मोहिनी एकादशी के पारण का समय 02 मई सुबह 05 बजकर 40 मिनट से लेकर 08 बजकर 19 मिनट रहेगा. आज मोहिनी एकादशी पर रवि योग का निर्माण भी हो रहा है, जिसका समय सुबह 05:41 ए एम से शाम 05:51 पी एम तक रहेगा.

एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके पश्चात कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करें. दिन में मोहिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें अथवा सुनें. रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें. द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण करें. सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि कराएं और उन्हें दान दक्षिणा दे. इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें.

भद्रावती नामक सुंदर नगर में धनपाल नामक एक धनी व्यक्ति रहता था. वह स्वभाव से बड़ा ही दानपुण्य करने वाला व्यक्ति था. उसके पाँच पुत्रों में सबसे छोटे बेटे का नाम धृष्टबुद्धि था जो बुरे कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था. एक दिन धनपाल ने उसकी बुरी आदतों से तंग आकर उसे घर से निकाल दिया. अब वह दिन-रात शोक में डूब कर इधर-उधर भटकने लगा. एक दिन किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा. महर्षि गंगा में स्नान करके आए थे.

धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित होकर कौण्डिल्य ऋषि के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, ‘‘ऋषि ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा उपाय बताएं जिसके पुण्य के प्रभाव से मैं अपने दुखों से मुक्त हो जाऊं.’ तब कौण्डिल्य बोले, मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो. इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं. धृष्टबुद्घि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया. जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर श्री विष्णुधाम को चला गया.

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