चांद, आसमां , रात , नींद किसी को सोने नहीं दिया महान गीतकार शैलेन्द्र ने ( पुण्यतिथि विशेष)
देहरादून ( विवेक ओझा) : आज भारतीय हिंदी सिनेमा के महान गीतकार शैलेन्द्र की पुण्यतिथि है । कहते हैं कि कवि और गीतकार संवेदनाओं और जज्बात की एक नई दुनिया बसा लेने में माहिर होता है । उसके शब्दों में अहसासों की जो काल्पनिक और रूमानी दुनिया बसती है , वो वास्तविक दुनिया से भी मीठी , रोचक और जीवंत होती है । तभी तो शैलेन्द्र लिखते हैं , कांटों से खींच के ये आंचल , तोड़ के बंधन बांधे पायल ,कोई न रोको दिल की उड़ान को दिल वो चला। वहीदा रहमान जब शैलेन्द्र के लिखे इस गीत को अभिव्यक्ति देते हुए आगे पर्दे पर आज फिर जीने की तमन्ना है , आज फिर मरने का इरादा है , गाती हैं , तो हमें पता चलता है कि एक उन्मुक्त मन क्या चाहता है , हर्ष और उल्लास से कैसे भर जाना चाहता है ।
जब शैलेन्द्र ने लिखा , खोया खोया चांद , खुला आसमां , आंखों में सारी रात जाएगी , तुमको भी कैसे नींद आएगी तो उन्होंने इंडियन सिनेमा को सिखाया कि समथिंग इज मिसिंग का मतलब क्या होता है । जब शैलेन्द्र ने पतिता फिल्म के लिए गीत लिखा कि किसी ने अपना बना के मुझको मुस्कुराना सिखा दिया, अँधेरे घर में किसी ने हँसके चिराग जैसे जला दिया , तो उन्होंने अपनत्व, आत्मीयता , स्नेह में छिपी ताकत को उजागर करने की कोशिश की । शैलेन्द्र ने इंसानी जज्बात की डगमगाती नाव को अपने गीतों से साहिल तक पहुंचा दिया । सीमा जैसी फिल्म में उन्होंने तू प्यार का सागर है , तेरी इक बूंद के प्यासे हम लिखकर उन्होंने मन्ना डे को एक कालजई गीत का गायक बना दिया । सच है कि शैलेन्द्र चराग जलाने में माहिर थे। उसकी चमक गायकों और अभिनेताओं में चमकती थी । राजकपूर अभिनीत फिल्म श्री 420 में उनके लिखे गीतों को कौन भूल सकता है । प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल, को तो विज्ञापन कंपनियों ने दूरदर्शन पर परिवार नियोजन का आदर्श वाक्य बना दिया था ।
1956 में फिल्म बसंत बहार में शैलेन्द्र के लिखे गीत बड़ी देर भई नंदलाला , तेरी राह तके बृजबाला को रफी साहब ने अपनी अमर आवाज में कृष्नजनमाष्टमी का लोक गीत बना दिया । इस बात में कोई शक नहीं है कि महान अभिनेता , निर्देशक राजकपूर ने अगर इंडियन सिनेमा पर अपनी फिल्मों के चलते राज किया , तो उन फिल्मों में राग , लय , ताल की मोती पिरोने वाले गीतकार शैलेन्द्र , ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे स्क्रिप्ट राइटर और संगीतकार के रूप में शंकर-जयकिशन की जोड़ी थी । राजकपूर जिसे कविराज बुलाते थे , नोबल पुरस्कार से सम्मानित रूसी साहित्यकार अलेक्जेंडर सोल्ज़ेनित्सिन की एक किताब ‘द कैंसर वार्ड’ नामक पुस्तक में कैंसर वार्ड का एक दृश्य आता है, जिसमें एक नर्स एक कैंसर मरीज़ की तकलीफ़ आवारा हूं, आवारा हूं, गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’ गाने को गाकर कम करने की कोशिश करती है, राजकपूर और शंकर जयकिशन के एक बार के मनमुटाव को ” छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते, तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे, तो पूछेंगे हाल’ लिखकर दूर करने वाले , 1963 में साहिर लुधियानवी ने साल का फ़िल्म फेयर अवार्ड यह कह कर लेने से इनकार कर दिया था कि उनसे बेहतर गाना तो शैलेंद्र का लिखा बंदिनी का गीत – ‘मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे’ है। तीसरी कसम’ कल्ट फ़िल्म मानकर बेहतरीन निर्माण के लिए जिन्हें राष्ट्रपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया, मशहूर निर्देशक ख़्वाजा अहमद अब्बास ने जिसे सैलूलाइड पर लिखी कविता बताया था , गीतकार गुलजार जिन्हें आजतक का सबसे बड़ा गीतकार कहते हैं , उन महान और मेरे पसंदीदा गीतकार शैलेन्द्र की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है ।
उनकी जननी महान महिला पार्वती देवी ने 30 अगस्त , 1923 को भारतीय संगीत के इस अनमोल रत्न को जन्म दिया जिसने बाद में ईश्वर से एक संगीतमय सवाल पूछा , दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई , तूने काही को दुनिया बनाई । रावलपिंडी , पाकिस्तान में जन्मा यह बालक भारतीय राग नीति का नायक था , नाम था शैलेन्द्र। शंकरदास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोडकर मथुरा चला आया, जहां उनकी माता पार्वती देवी की मौत से उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उनका ईश्वर पर से सदा के लिए विश्वास उठ गया। तभी तो उन्होंने ये गीत लिखा कि दुनिया बनाने वाले , काहे को दुनिया बनाई।मथुरा में परिवार की आर्थिक समस्याएं इतनी बढ़ गयीं कि उन्हें और उनके भाईयों को बीड़ी पीने पर मजबूर किया जाता था ताकि उनकी भूख मर जाये। इन सभी आर्थिक परेशानियों के बावजूद, शैलेन्द्र ने मथुरा से इंटर तक की पढ़ाई पूरी की। परिस्थितियों ने शैलेन्द्र की राह में कांटे बिछा रखे थे और एक वक्त ऐसा आया कि भगवान शंकर में असीम आस्था रखनेवाले शैलेन्द्र ने ईश्वर को पत्थर मान लिया। गरीबी के चलते वे अपनी इकलौती बहन का इलाज नहीं करवा सके और उसकी मृत्यु हो गई।अपनी युवावस्था में देश की आजादी की लड़ाई से जुड़ गए और अपनी कविता के जरिए वे लोगों में जागृति पैदा करने लगे। उन दिनों उनकी कविता ‘जलता है पंजाब’ काफी सुर्खियों में आ गई थी। शैलेन्द्र कई समारोह में यह कविता सुनाया करते थे। अपने परिवार की घिसी-पिटी परंपरा को निभाते हुए शैलेन्द्र ने वर्ष 1947 में अपने करियर की शुरुआत मुंबई मे रेलवे की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा।
गीतकार के रूप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गीत वर्ष 1949 में प्रदर्शित राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ के लिए ‘बरसात में तुमसे मिले हम सजन’ लिखा था। इसके बाद शैलेन्द्र, राजकपूर के चहेते गीतकार बन गए। शैलेन्द्र और राजकपूर की जोड़ी ने कई फिल्में एक साथ कीं। इन फिल्मों में ‘आवारा’, ‘आग’, ‘श्री 420’, ‘चोरी चोरी’ ‘अनाड़ी’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’, ‘तीसरी कसम’, ‘एराउंड द वर्ल्ड’, ‘दीवाना’, ‘सपनों का सौदागर’ और ‘मेरा नाम जोकर’ जैसी फिल्में शामिल हैं।
शैलेन्द्र द्वारा लिखित सर्वाधिक प्रिय गीत –
ये रात भीगी भीगी , ये मस्त हवाएं ।
बोल रे कठपुतली डोरी कौन संग बाँधी, सच बतला तू नाचे किस के लिये।
बाँवरी कठपुतली डोरी पिया संग बाँधी मैं नाचूँ अपने पिया के लिये।
आजा के इंतजार में जाने को है बहार भी तेरे बगैर ज़िन्दगी दर्द बन के रह गयी (रफी , लता)
दुनियावालों से दूर , जलने वालों से दूर ।
गाता रहे मेरा दिल , तू ही मेरी मंज़िल
तेरे मेरे सपने अब एक संग हैं।
जा जा जा मेरे बचपन ।
एक सवाल मैं करूं एक सवाल तुम करो
खुली पलक में झूठा गुस्सा , बंद पलक में प्यार
रुक जा रात ठहर जा रेे चंदा
रुला के गया, सपना मेरा,
घर आया मेरा परदेसी, प्यास बुझी मेरी अँखियन की।
14 दिसंबर, 1966 को महज़ 43 साल की उम्र में वो इस दुनिया को छोड़ गए। ये भी दिलचस्प संयोग है कि शैलेंद्र का निधन उसी दिन हुआ जिस दिन राजकपूर का जन्मदिन मनाया जाता है. राजकपूर ने नार्थकोट नर्सिंग होम में अपने दोस्त के निधन के बाद कहा था, “मेरे दोस्त ने जाने के लिए कौन सा दिन चुना, किसी का जन्म, किसी का मरण, कवि था ना, इस बात को ख़ूब समझता था.”शैलेंद्र तो चले गए लेकिन भारतीय फ़िल्मों को दे गए 800 गीत, जो हमेशा उनकी याद दिलाने के लिए मौजूद हैं।