मां फिर प्रमुदित हुयी कश्मीर में !
स्तंभ: खीर भवानी के कुण्ड का पानी आज काला नहीं हुआ। उज्जवल है। दमकता धवल है। आम मान्यता है कि पानी रंग बदलता है जब कश्मीर घाटी आपदा से ग्रस्त होती है अथवा कोई आशंका होती है। आज दुर्गाष्टमी, धूमवती जयंती है। (बुधवार, 8 जून 2022, तदनुसार ज्येष्ठ शुक्ल, विक्रम संवत 2079)। सैकड़ों श्रद्धालु बसों में जम्मू से मां को खीर चढ़ाने गये हैं। उपराज्यपाल श्री मनोज सिंन्हा ने मुझे बताया कि सुरक्षा के सारे प्रबंध पुख्ता हैं। उनके प्रयास प्राणपण से जारी है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र यूनियन के अध्यक्ष रहे, इंजिनियरिंग के स्नातक मनोजभाई हिमालयी समस्या से जूझ रहे हैं। नरेन्द्र मोदी ने इस चुनौती का सामना करने हेतु गंगातट के इस भूमिहार राजनेता को ही सक्षम माना है।
मई 1990 में भारतीय प्रेस काउंसिल की दो—सदस्यीय जांच समिति के सदस्य के नाते हमने कश्मीर का सप्ताह भर दौरा किया था। अध्यक्ष जस्टिस राजेन्द्र सिंह सरकारिया (उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज) ने मीडिया पर आंतक की छानबीन करने हमें हेतु भेजा था। दूसरे सदस्य थे बीजी वर्गीज (हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस तथा टाइम्स के संपादक)। तब वेद मारवाह राज्यपाल के सुरक्षा सलाहकार थे। वे दिल्ली के पुलिस आयुक्त भी थे। वजाहत हबीबुल्ला तब आयुक्त थे। उन्होंने मेरे आग्रह पर खीर भवानी के दर्शन की व्यवस्था की थी। हमारे साथ चले श्री वर्गीज, पत्नी डॉ. सुधा राव तथा पुत्र विश्वदेव (अधुना पत्रकार)। वह तब दस वर्ष का था। बख्तरबंद फौजी गाड़ियों में सशस्त्र सैनिकों के विशाल वाहनों के काफिले में हम गये थे। सीमा पर पाकिस्तानियों को जानकारी थी कि दो पत्रकार आ रहे हैं। एक मिसाइल तो हमारी गाड़ी से सरसराता निकल गया।
खीर भवानी मंदिर तब वर्षों तक सूना पड़ा था। वहां के मुस्लिम फेरीवाले, पटरी दुकानदार और फूलवाले बड़े व्यथित थे। हिन्दू तीर्थयात्री के बूते ही उनकी रोजी चलती थी। इस्लामी आंतकियों से ये सुन्नी खोंचावाले आर्त थे। वहां गर्भगृह में एक बांग्ला साधू विराजमान थे। मैंने पूछा : ”परिसर की स्थिति कब तक सुधरेगी?” उस दौर में इस्लामी दहशतर्गी चरम पर थी। वे बोले : ”तीन दशकों बाद मां फिर से नृत्य करेगी।” आज बत्तीस साल हो गये। तीर्थयात्री का तांता लग गया। कश्मीर घाटी में बदलाव तो आया है। मगर पूर्ववर्ती जैसी नहीं है।
खीर भवानी का अपना महात्म्य, विशिष्टता, गाथा और आकर्षण रहा है। दशकों पश्चात अब मां फिर प्रमुदित हैं। भक्त जन उमड़कर आ रहे हैं। हालांकि महबूबा मुफ्ती का खीर भवानी मां मंदिर में एकदा इबादत के बाद भावुक बयान था : ”पंडितों के बिना कश्मीर अधूरा है।” उस काल में कश्मीर की हालत ऐसी थी मानों समूचा राज्य ही शत्रुभूमि हो। सर्किट हाउस में टीवी पर केवल लाहौर के प्रोग्राम आते थे। दूरदर्शन तो लगता ही नहीं था। हम राज्यपाल से भेंट करने गये। गिरीश चन्द्र सक्सेना (यूपी के आई.पी.एस.) थे। गुप्तचर संस्था रॉ के मुखिया रहे। लंच पर वर्गीस तथा मुझे उन्होंने बुलाया। हमारी दुविधा थी कि कई जननेताओं तथा पत्रकारों से दिनभर भेंट तय थीं। गवर्नर बोले : वे डिनर साथ नहीं कर सकते क्योंकि ”रात को वे सेना कमांडर के छावनी—स्थित में निवास में रहते है।” कश्मीर राजभवन अंधेरे में आतंकियों के निशाने पर रहता था। हालांकि सक्सेना साहब के पूर्व मेरे फुफेरे भाई राज्यपाल जनरल केवी कृष्ण राव से राजभवन में ही मिलता था। वे भारत के सेनाध्यक्ष भी रहे।
यहीं मेरी भेंट सैन्य हिरासत में यासीन मलिक से हुयी। अभी वह तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है। उसने कहा : ”फारुख अब्दुल्ला बस फर्जी चुनाव द्वारा सदा बहुमत जीतते है।” अत: स्वतंत्र कश्मीर की मांग जायज है। भारत के मुसलमानों से उन्हें कोई वास्ता नहीं है। हालांकि अवध के सुन्नी मौलवियों ने कश्मीरी आवाम में 1947—48 में पाकिस्तान के प्रति प्रेम सर्जाया था। खीर भवानी की पृष्टभूमि पौराणिक है। दशानन रावण की अपार भक्ति से महारज्ञा देवी ने लंका में बसना पसंद किया था। मगर सीता—हरण से रुष्ट हो कर देवी महाबली हनुमान की मदद से वे तुलमूल ग्राम (गान्दरबल) में एक पवित्र झरने के ऊपर बस गयीं। वहीं मंदिर बन गया। वहां एक कुण्ड है जो सदा स्वच्छ जल से भरा रहता है। मगर उसका पानी स्याह हो जाता है जब कुसमय घाटी पर आता है। माता केवल पकाये गये मीठे चावल (खीर) ही स्वीकारती है। ज्येष्ठ अष्टमी पर मेला लगता है। इस पर्व पर मोदीजी ने भी आस्थावानों को शुभकामनाएं भेजीं हैं।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा आश्वस्त हैं कि खीर भवानी मेला के सम्पन्न होने के मतलब है कि अमरनाथ यात्रा भी निर्बाध हो जायेगी। अर्थात मां और भोले शंकर की अनुकम्पा असीम है। फिर भी सवाल उठता है कि इस्लामी आतंकी द्वारा स्कूल अध्यापिका रजनी बाला, जो दलित थी, का खून होना। बिहार के ईंट भट्टा मजदूर दिलखुश पर गोली बरसाना। घाटी में इन लक्षित हत्यायों को किस मजहब में वाजिब ठहराया जा सकता है ? जवाब मुल्ले—मौलानाओं को ही देना पड़ेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)