MP: क्या कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराएगा राहुल का सॉफ्ट हिंदुत्व का संदेश?
इंदौरः राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश में नौ दिन गुजार चुकी है। मध्य प्रदेश यात्रा का पहला हिंदी भाषी राज्य है। लंबे वक्त से भाजपा (BJP) का गढ़ माने जाने वाले इस राज्य में यात्रा के जरिए कांग्रेस (Congress) ने जहां सॉफ्ट हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश की, वहीं दलित और आदिवासियों को साधने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लोगों ने भी यात्रा को कांग्रेस की उम्मीद से ज्यादा समर्थन दिया है।
मध्य प्रदेश में यात्रा की सफलता को लेकर कांग्रेस को भी संदेह था। क्योंकि, यह पहला हिंदी भाषी राज्य है और लगभग पिछले दो दशकों से भाजपा की सरकार है। दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक सिर्फ 15 माह के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार रही थी। प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संजय शुक्ला यात्रा को मिले समर्थन से काफी उत्साहित हैं। वह इसे उम्मीद से ज्यादा बताते हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हो रही इस यात्रा ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया है। इसके साथ प्रतीकों के जरिए सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ समाज के हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश की है।
राहुल गांधी ने टंट्या भील के गांव पहुंचकर श्रद्धांजलि दी, वहीं संविधान दिवस पर बाबा साहेब आंबेडकर की जन्मस्थली महू पहुंचकर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। एक सप्ताह में दो बार ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व का संदेश देने की कोशिश की। खंडवा के प्रसिद्ध ओंकारेश्वर मंदिर के बाद उज्जैन में बाबा महाकाल के दर्शन किए। पार्टी नेता मानते हैं कि यात्रा से प्रदेश में संगठन को मजबूती मिली है। कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा है। इसका लाभ वर्ष 2023 के विधानसभा और उसके बाद होने वाले लोकसभा में मिलेगा।
मध्य प्रदेश कांग्रेस ने मार्ग कुछ इस तरह बनाया कि पार्टी यात्रा के जरिए समाज के हर वर्ग तक पहुंच सके। इंदौर में यात्रा को खासतौर पर राजबाड़ा से गुजरा गया। ताकि, अहिल्या बाई होल्कर की प्रतिमा पर राहुल गांधी माल्यार्पण कर सकें। यहां मराठी मतदाताओं की बड़ी संख्या है। इसके साथ निमाड़ और मालवा आदिवासी और दलित बड़ी संख्या में हैं। प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा ने ज्यादा दूरी आदिवासी और दलित बहुल क्षेत्रों में तय की है। महू में बाबा साहेब की जन्मस्थली स्मारक को नमन के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मौजूदगी को दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
विधानसभा में एसटी के लिए 47 और एससी के लिए 37 सीट आरक्षित हैं। पर आदिवासी 84 सीट पर असर डालते हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में दलित और आदिवासी वर्ग का कांग्रेस को समर्थन मिला था। इन चुनाव में कांग्रेस ने 31 आदिवासी सीट पर जीत दर्ज की थी। जबकि वर्ष 2013 के चुनाव में पार्टी सिर्फ दस सीट जीत पाई थी। इसी तरह 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। इसलिए, यह वर्ग पार्टी के लिए अहम है।
वर्ष 2020 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कमलनाथ ने बयान दिया था कि आज के बाद कल और कल के बाद परसों भी आता है। प्रदेश कांग्रेस नेता मानते हैं कि कल तो बीत चुका है, अब हमारी उम्मीद परसों पर है। पार्टी की कोशिश है कि कांग्रेस एक बार फिर 2018 जैसा चमत्कार कर पाए। इसलिए, यात्रा में प्रदेश नेता लोगों को जोड़ते नजर आए।