भारत के प्राचीनतम बंदरगाहों में से एक मुजिरिस देश में बढ़ा रहा धरोहर साक्षरता
नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : हाल ही में केरल के कोल्लम जिले में श्रीनारायणगुरु ओपन यूनिवर्सिटी और मुजीरिस प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने राज्य में धरोहरों की समृद्ध परंपरा के संरक्षण और इस दिशा में जागरूकता को बढ़ाने के लिए एक दूसरे के साथ आए हैं। इसके तहत कोल्लम शहर के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व और राज्य के प्राचीनतम समुद्री व्यापार की गाथा को एक नई दिशा दी जाएगी । आपको बता दें कि मुजिरिस दक्षिण भारत का एक ऐतिहासिक महत्व का प्राचीन बंदरगाह है । मुजिरिस बंदरगाह क्षेत्र की कहानी 3000 ईशा पूर्व से पहले की है जब बेबीलोनियन , असिरियन्स और इजिप्टियन्स मालाबार तट पर मसालों की तलाश में आये थे। इसके बाद अरबी और फोएनिशियन्स भी इस मंशा के साथ आये और इसके साथ ही मुजिरिस और कोडुंगालूर वर्ल्ड ट्रेड मैप पर उभर आए थे।
प्राचीन बंदरगाह शहर मुजिरिस एक स्पाइस सिटी के रूप में विश्व विख्यात हुआ और मसालों के व्यापार का हब बना। प्राचीन संगम साहित्य में इस बात का उल्लेख है कि रोम के सोने से लदे समुद्री जहाज मुजिरिस बंदरगाह पर पहुँचते थे और इसके बदले काली मिर्च और अन्य मसाले प्राप्त करते थे। मुजिरिस को ‘मछरीपत्तनम’ के नाम से भी जानते थे जिसका उल्लेख संगम साहित्य में तमिझगम के पश्चिमी घाट पर एक समृद्धशाली पत्तन और बस्ती के रूप में किया गया है।
संगम संकलन के सातवें ग्रंथ अकानानुरू में कवि ने मुजिरिस का वर्णन पेरियार नदी के तट पर स्थित समृद्ध चेरान नगर के रूप में किया है जहां यवन और यूनानी आते थे और स्वर्ण के बदले मसाले प्राप्त किया करते थे। पेरिप्लस ऑफ दि एरिथ्रियन का लेखक भी कहता है कि मानसूनी हवाओं की दशा दिशा के आधार पर इजिप्ट के तट के पास के लाल सागर के बंदरगाहों से 14 दिनों के अंदर मुजिरिस पहुचा जा सकता था। लेकिन 1341 में एक भीषण आपदा आई और मालाबार तट के पेरियार रिवर बेसिन में बाढ़ और भूकंप के चलते मुजिरिस बंदरगाह नष्ट हो गया।
मुजिरिस का उल्लेख ईसा की प्रथम शताब्दी के मध्य में एक यूनानी भाषी मिस्र व्यापारी के ग्रंथ वॉयेज अराउंड द इरिथरेयन सी में पाया गया है। इसे उन चार बंदरगाहों में से एक बताया गया है जहां से काली मिर्च और अन्य वस्तुएं निर्यात की जाती थीं। ईसा की प्रथम शताब्दी के रोमन प्रकृतिवादी प्लिनी , द एल्डर ने अपने विश्वकोश ‘नेचुरलिस हिस्टोरिया’ में मुजिरिस का जिक्र भारत के प्रथम एंथोरियसम के रूप में किया। प्राचीन काल में एंपोरियम विदेशी व्यापारियों के कारोबारी हितों के लिए एक आरक्षित स्थान हुआ करता था। इब्नबतूता और मार्कोपोलो जैसे यात्रियों ने यहां आकर मालाबार के बंदरगाहों का वृतांत लिखा। अरबवासियों ने मसालों के अपने फलते-फूलते व्यापार को जारी रखा और चीनी यहां निरंतर आया करते थे।इसी मुजिरिस बंदरगाह को नए सिरे से विकसित करने के लिए भारत के सबसे बड़े धरोहर संरक्षण कार्यक्रमों में से एक मुजिरिस हेरिटेज प्रोजेक्ट केरल में चलाया जा रहा है।
27 फरवरी, 2016 को राष्ट्रपति ने केरल में पर्यटन उद्यम को बढ़ाने तथा ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व के स्थलों के संरक्षण के लिए कोडुंगल्लूर में मुजिरिस विरासत परियोजना के प्रथम चरण का शुभारंभ किया गया था। इस परियोजना का एक महत्त्वपूर्ण चरण स्पाइस रूट इनीसियेटिव है जो उन अंतरराष्ट्रीय संपर्कों और संयोजनों की खोज करेगा जो मालाबार तट के विश्व के बहुत से हिस्सों के साथ थे। इस चरण को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन की सहायता से कार्यान्वित किया जाना है।
स्पाइस रूट इनीसियेटिव महत्वपूर्ण और भारत के लिए प्रासंगिक है,जो एक बार पुन: अंतरराष्ट्रीय व्यापार और परिवहन तथा समुद्र शक्ति के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरना चाहता है। स्पाइस रूट इनीसियेटिव एशिया और यूरोप के 41 देशों को भारत के साथ जोड़ेगा तथा इन राष्ट्रों के साथ हमारे सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान का पुन: नवीकरण करेगा।
यह प्रोजेक्ट पर्यटन मंत्रालय,भारत सरकार के सहयोग से केरल सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। इस शहर और इसका आसपास का क्षेत्र इस्लाम,ईसाई, यहूदी तथा हिन्दू धर्म का उन्नतशील केंद्र रहा है। कुरुंब भगवती मंदिर तथा भारत की प्राचीनतम मस्जिद चेरामन मस्जिद दोनों कोडुंगलूर में है। पारावुर और चेन्नामंगलम के दो गिरजाघर, कोट्टाइल कोविलकाम का ऐतिहासिक क्षेत्र तथा पुर्तगाली, डच और मैसूर सुल्तान के साथ संबंध वाला कोट्टपुरम किला भी इसके पड़ोस में ही है। कोडुंगलूर के बारे में माना जाता है कि यहीं पर ईशा मसीह के दूत सेंट थॉमस यूरोप से पहले भारत में ईसाइयत लेकर आए थे।