
सनातन धर्म में गंगा स्नान का पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व
–महंत विशाल गौड़
कार्तिक पूर्णिमा 2025 हिंदू कैलेंडर की सबसे पवित्र पूर्णिमाओं में से एक है। इस दिन का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इस दिन भक्त पवित्र स्नान (गंगा स्नान) करते हैं, देव दीपावली पर देवताओं के सम्मान में दीप जलाते हैं और भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं। गंगा स्नान का महत्व केवल धार्मिक कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा को शुद्ध करने, पापों से मुक्ति पाने और नई ऊर्जा से भरने का अवसर भी देता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा के जल में स्नान करने से मनुष्य के जीवन के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
हिंदू धर्म में गंगा स्नान, गंगा नदी में स्नान के पवित्र अनुष्ठान का प्रतीक है, जिसे शुद्धिकरण और संचित पापों को धोने का एक साधन माना जाता है । यह पवित्र नदी के साथ जुड़ाव के माध्यम से आध्यात्मिक नवीनीकरण का प्रतीक है। गंगा नदी में स्नान करने की क्रिया को अक्सर एक पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने दिया, जबकि शिव ने अपनी जटाओं में गंगा के प्रवाह को रोक दिया ताकि उसका वेग पृथ्वी को नष्ट न कर दे। जब गंगा पृथ्वी पर उतरीं, तो भगीरथ उन्हें समुद्र तक ले गए। वहाँ से, नदी पाताल लोक पहुँची और राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को मुक्त किया। गंगा स्नान की शुरुआत गरुड़ नामक पक्षी की कहानी से हुई। पक्षी ने अमरता के अमृत से भरा एक घड़ा उठाया, लेकिन अमृत की चार बूँदें गंगा में गिर गईं। इसलिए हिंदू धर्म के लोग अपने पापों के धुलने और अपनी आत्मा की शुद्धि की आशा से गंगा में स्नान करते हैं। सनातन धर्म में स्नान को पवित्रता और शुद्धता के प्रतीक के रूप में देखा गया है, जो आध्यात्मिक उत्थान, स्वास्थ्य और मानसिक शांति को बढ़ावा देता है। ब्राह्म मुहूर्त में स्नान करना सबसे पवित्र माना गया है, जबकि सूर्यास्त के बाद स्नान निषेध है।
गंगा नदी का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है और भारत तथा विश्व भर में लाखों लोग इसकी पूजा करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य से 2,500 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक बहने वाली गंगा सदियों से जीवन, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक रही है। भक्तों का मानना है कि पवित्रता के दिव्य तत्व वाली यह नदी स्वर्ग से अवतरित हुई है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास में गंगा स्नान करने से व्यक्ति को अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि गंगा स्नान के बाद दान पुण्य करना चाहिए जो शुभ होने के साथ हमें सकारात्मक प्रतिफल भी देता है। हिंदुओं का मानना है कि गंगा जल में पापों को धोने और आत्मा को शुद्ध करने की शक्ति है, जिसके कारण यह अनुष्ठानों, समारोहों और तीर्थयात्राओं का केंद्रीय तत्व है।
गंगा को शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत के रूप में माना जाता है। नकारात्मक ऊर्जा का नाश: गंगा जल छिड़कने से घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। यह वातावरण को शुद्ध करता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है। यह विशेष रूप से उन स्थानों पर फायदेमंद है जहां मानसिक तनाव, झगड़े या घबराहट का माहौल हो। महंत विशाल गौड़ जी ने बताया जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा सकते किसी कारण वश वह गंगाजल की कुछ बूंदें पानी में डालकर नहा सकते हैं। क्योकि गंगा को मोक्षदायिनी के रूप में जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पौराणिक काल से यह मान्यता है कि, गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
गंगा में स्नान के दौरान भूलकर भी साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसा करना बिल्कुल भी शुभ नहीं माना जाता। साथ ही गंगा में स्नान करते समय कम से कम 3, 5 या 7 बार डुबकी लगानी चाहिए। यह संख्या स्नान के लिए शुभ मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से पिछले और वर्तमान जन्म के बुरे कर्म धुलकर आत्मा को परम शांति का मार्ग मिलता है। इसी मान्यता के कारण, कई लोग दिवंगत प्रियजनों की अस्थियाँ विसर्जित करने या अपने अंतिम दिन बिताने के लिए गंगा नदी के किनारे आते हैं।




