राष्ट्रीय

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पॉस्को एक्ट पर की महत्वपूर्ण बैठक

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : भारत में हाल के समय में बच्चों के खिलाफ़ यौन अपराध और अन्य अपराधों के कई मामले सामने आए हैं। 3 से 4 वर्ष से लेकर 13 वर्ष तक की बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं भी दर्ज़ की गई हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि भारत में पॉक्सो एक्ट को अधिक प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। इसी कड़ी में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पॉस्को एक्ट पर की महत्वपूर्ण बैठक संपन्न की है। पॉस्को अधिनियम, 2012 के तहत सहायक व्यक्तियों के संबंध में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के आदर्श दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की स्थिति पर चर्चा की गई है। यह बैठक पॉस्को अधिनियम की धारा 39 के तहत सहायक व्यक्तियों के संबंध में आदर्श दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन के लिए पारित माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आयोजित की गई। यह चर्चा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के हिसाब से होनी जरूरी भी थी। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने “हम भारत की महिलाएं बनाम भारत संघ और अन्य” शीर्षक मामले में रिट याचिका (सिविल) संख्या 1156/2021 और रिट याचिका संख्या 427/2022 शीर्षक बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ में दिनांक 9.10.2023 के आदेश के तहत आयोग को पॉस्को अधिनियम, 2012 की धारा 39 के तहत सहायक व्यक्तियों के संबंध में आदर्श दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था। आयोग को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों के परामर्श से ऐसा करने के लिए कहा गया था।

उसके अनुसार ही आयोग ने आदर्श दिशानिर्देश तैयार किए थे और वे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए। सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 30.07.2024 के अपने आदेश के माध्यम से सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को उपरोक्त दिशानिर्देशों को लागू करने और उसके बाद कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में आयोग को सूचित करने का निर्देश दिया था।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की बैठक में कहा गया कि बाल यौन शोषण के पीड़ित का पुनर्वास तभी संभव है जब सहायक व्यक्ति पीड़ित के साथ जुड़ा हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी विशेष राज्य में बाल यौन शोषण के लंबित मामलों के अनुपात में सहायक व्यक्तियों को सूचीबद्ध करना महत्वपूर्ण है। पारदर्शिता और पीड़ित बच्चों को समय पर सहायता सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सूचीबद्ध सहायक व्यक्तियों का विवरण “पॉस्को ट्रैकिंग पोर्टल” पर अपलोड किया जाएगा।

क्या है पॉक्सो एक्ट?

दरअसल, पॉक्सो एक्ट का पूरा नाम प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स एक्ट है। इसे हिन्दी में बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम भी कहा जाता है। इस कानून को लाव 2012 में लाया गया था। इसके लाने की सबसे बड़ी वजह यही थी कि इससे नाबालिग बच्चियों को यौन उत्पीड़न के मामलों में संरक्षण दिया जा सके। हालांकि ये कानून ऐसे लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। वहीं पॉक्सो एक्स के तहत दोषी पाए जाने पर कड़ी सजाओं का भी प्रावधान किया गया है। पहले इसमें मौत की सजा का प्रावधान नहीं किया गया था, लेकिन बाद में इस कानून में उम्रकैद जैसी सजा को भी जोड़ दिया गया।

पॉक्सो एक्ट में क्या है सजा का प्रावधान?

पॉक्सो एक्ट में कई तरह की सजाओं का प्रावधान किया गया है। इसमें दोषी को 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है। इसके अलावा जुर्माना भी देना पड़ सकता है। आइये अब हम ये जानते हैं कि अपराध की किस स्थिति के लिए कितनी सजा का प्रावधान किया गया है-किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करने के लिए दोषी पाए जाने पर 5 साल की सजा और जुर्माना देना पड़ सकता है।बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करते हुए दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल की सजा और जुर्माना अलग से देना पड़ सकता है। किसी बच्चे की अश्लील तस्वीर को इकट्ठा करना या उसे किसी के साथ शेयर करने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है।ऐसे मामलों में दोषी को तीन साल की जेल हो सकती है या फिर जेल और जुर्माना दोनों की सजा भी हो सकती है।16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी पाए जाने पर 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है।वहीं अगर इस मामले में अगर नाबालिग की मौत हो जाती है तो दोषी को मौत की सजा तक दी जा सकती है।

इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर दें कि पॉक्सो एक्ट के तहत सिर्फ पुरुषों को ही सजा नहीं दी जाती बल्कि अगर किसी महिला द्वारा भी यौन अपराधों का कृत्य किया गया है तो दोषी पाए जाने पर महिला को भी उतनी ही सजा सुनाई जाती है, जितनी कि किसी पुरुष को। इसके अलावा पीड़ित भी सिर्फ कोई बच्ची नहीं बल्कि ये कोई बच्चा भी हो सकता है। नाबालिग बच्चों के साथ भी यौन उत्पीड़न के कई मामले सामने आते रहते हैं। ऐसे में इस कानून के तहत दोष करने पर सभी के लिए समान सजा का प्रावधान है, जबकि पीड़ित होने पर भी बच्चा या बच्ची के लिए न्याय का एक ही प्रावधान किया गया है।

Related Articles

Back to top button