यूपीपीसीएल पीएफ घोटाले में नया मोड़, सीबीआई ने तीन आईएएस की जांच के लिए मांगी अनुमति
लखनऊ: उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) में हुए 2200 करोड़ रुपये के पीएफ घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने प्रदेश सरकार से तीन वरिष्ठ आईएएस अफसरों संजय अग्रवाल, आलोक कुमार प्रथम व अर्पणा यू की भूमिका की जांच के लिए अनुमति मांगी है। अनुमति मिलने के बाद सीबीआई तीनों से पूछताछ कर सकेगी। तीनों अफसर घोटाले की अवधि में यूपीपीसीएल में तैनात रहे हैं।
सीबीआई अधिकारी ने बताया कि भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम-1988 की धारा 17-ए में कहा गया है कि किसी लोकसेवक द्वारा सरकारी कार्य या कर्तव्यों के निर्वहन के तहत लिए गए निर्णय या अनुशंसा के संबंध में हुए कथित अपराध के मामले में संबंधित सरकार की पूर्व अनुमति के बिना, अधिनियम के तहत किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ या जांच नहीं की जा सकती है। लिहाजा, इस मामले में पूछताछ की अनुमति मांगी गई है। सीबीआई ने इस मामले में छह मार्च 2020 को आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज की थी।
यह एफआईआर लखनऊ के हजरतगंज थाने में दो नवंबर 2019 को दर्ज कराई गई एफआईआर पर आधारित है। प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन (ईओडब्ल्यू) को सौंप दी थी। ईओडब्ल्यू ने घोटाले में यूपीपीसीएल के तत्कालीन एमडी एपी मिश्रा, तत्कालीन निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी, कर्मचारी भविष्य निधि ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता व डीएचएफएल के क्षेत्रीय प्रबंधक अमित प्रकाश समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया था। इसमें दो चार्टर्ड एकाउंटेंट भी शामिल थे।
यूपीपीसीएल के इन वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कर्मचारियों के पीएफ के पैसे को निजी कंपनी डीएचएफएल में निवेश कर दिया था। वर्ष 2017 के बाद यूपीपीसीएल ने पीएफ के लगभग 4100 करोड़ रुपये डीएचएफएल में निवेश किया, जिसमें से यूपीपीसीएल को केवल 1855 करोड़ रुपये ही वापस मिले। दिसंबर 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी इस मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू की।