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अपशिष्ट प्रबंधन पर महाराष्ट्र सरकार 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान करे: एनजीटी

नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने महाराष्ट्र सरकार को ठोस और तरल अपशिष्ट का ठीक से प्रबंधन नहीं करने के लिए पर्यावरण मुआवजे के रूप में 12,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एनजीटी कानून की धारा 15 के तहत मुआवजा अपशिष्ट प्रबंधन में कमियों के कारण पर्यावरण को लगातार हो रहे नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए आवश्यक है।

पीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य सेंथिल वेल भी शामिल थे। पीठ ने उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार आदेश पारित किया, जिसमें अधिकरण को ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन मानदंडों के क्रियान्वयन की निगरानी करने की आवश्यकता थी। पीठ ने कहा कि ‘‘पर्यावरण को लगातार हो रहे नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए यह निर्णय आवश्यक हो गया है।” एनजीटी ने कहा कि दायित्व तय करना नुकसान की भरपाई के लिए महत्वपूर्ण है।

पीठ ने कहा, ‘‘आवश्यक दायित्व तय किए बिना, यहां तक ​​कि वैधानिक/ निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद भी केवल आदेश पारित करने से पिछले आठ वर्षों (ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए) और पांच वर्षों (तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए) में कोई ठोस परिणाम नहीं दिखा है।” पीठ ने कहा कहा कि भविष्य में किसी भी तरह की क्षति को रोकने की आवश्यकता है, और पिछले नुकसान की भरपाई करनी होगी।

एनजीटी ने तरल अपशिष्ट के निस्तारण में अंतर के संबंध में लगभग 10,840 करोड़ रुपये और गैर-उपचारित पुराने अपशिष्ट के संबंध में लगभग 1,200 करोड़ रुपये के मुआवजे का निर्धारण किया, तथा यह राशि कुल 12,000 करोड़ रुपये निर्धारित की। पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मुख्य सचिव के निर्देशों के अनुसार संचालित होने वाले एक अलग खाते में राशि जमा करे और क्षतिपूर्ति उपायों के लिए इस्तेमाल करे। सीवेज प्रबंधन के लिए नुकसान भरपाई के उपायों में सीवेज निस्तारण और उपयोग प्रणाली की स्थापना, पूर्ण क्षमता उपयोग सुनिश्चित करने के लिए प्रणाली/ संचालन को उन्नत करना, मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना और ग्रामीण क्षेत्रों में उचित तरीके से जल-मल निस्तारण तथा कीचड़ प्रबंधन प्रणाली स्थापित करना शामिल है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के संदर्भ में एनजीटी ने कहा कि कार्य योजना में आवश्यक अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के साथ-साथ उन 84 स्थान के लिए कदम उठाने होंगे जिनकी अनदेखी की गई है। पीठ ने आदेश में कहा कि ‘बायोरेमेडिएशन/बायोमाइनिंग’ प्रक्रिया को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निर्देशों के अनुसार पूरा किया जाना चाहिए, और ‘बायोमाइनिंग’ के साथ-साथ कम्पोस्ट प्लांट से जैविक अपशिष्ट का निपटारा निर्धारित निर्देशों के हिसाब से पूरा करना चाहिए।

पीठ ने यह भी कहा कि क्षतिपूर्ति योजना को समयबद्ध तरीके से क्रियान्वित किया जाना चाहिए, और आगाह किया कि यदि उल्लंघन जारी रहा तो राज्य के खिलाफ अतिरिक्त हर्जाने पर विचार किया जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘अनुपालन की जिम्मेदारी मुख्य सचिव की होगी।”

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