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International Relation : धंधे में कोई दोस्ती नहीं!

मशहूर उक्ति है- ‘राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। केवल स्वार्थ ही स्थायी होता है।’ अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तो यह बात सौ फीसदी लागू होती है। अमेरिका की हरकतों ने यह साबित कर दिया। भारत और अमेरिका के बीच कारोबार, टैरिफ, वीजा और इमिग्रेशन को लेकर जो तनाव अब तक दोस्ती के बाहरी मुखौटे की वजह से छिपा हुआ था, वह अब खुलकर सामने आ गया है। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से साफ हो गया कि अमेरिका भारत को किसी भी तरह की छूट देने को राजी नहीं है। ट्रंप के अंग्रेजी के शब्द भले थोड़ा अलग हों लेकिन उनका लहजा ठेठ हिन्स्तानी था कि धंधे में कोई दोस्ती नहीं। भारत-अमेरिका के बदलते रिश्तों पर ‘दस्तक टाइम्स’ के संपादक दयाशंकर शुक्ल सागर की रिपोर्ट।

पिछले महीने व्हाइट हाउस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुला़कात बहुत उत्साहवर्धक नहीं रही। ट्रंप की भाव भंगिमा या जेस्चर भले दोस्ताना रहा हो लेकिन उनके इरादे नेक नहीं लगे। ट्रंप ने भारत को प्रस्ताव दिया कि भारत रक्षा सौदे जैसे एफ-35 स्टेल्थ फाइटर जेट, तेल और गैस अमेरिका से खरीदे। ट्रंप ने साफ-साफ कहा कि अमेरिका अपना व्यापार घाटा कम करना चाहता है, यानी अमेरिका भारत से जितना सामान खरीदता है उतना माल अब भारत भी अमेरिका से खरीदे। ट्रंप ने यह भी साफ किया कि अमेरिका अपनी रेसिप्रोकल टैरिफ नीति पर भारत के साथ भी कोई समझौता नहीं करेगा। इसका मतलब यह है कि भारत अमेरिका पर जितना टैरिफ लगाएगा, बदले में अमेरिका भी उतना ही टैरिफ भारत पर लगाएगा। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि भारत टैरिफ किंग है। यानी भारत अपने माल पर सर्वाधिक टैरिफ लगाकर ज्यादा पैसा बनाता है। पीएम मोदी को टफ नेगोशिएटर कहकर ट्रंप खुद टफ नेगोशिएटर की भूमिका में आ गए हैं। चार घंटे की इस बातचीत में ट्रंप ने साफ संकेत दे दिए कि वे अगले चार साल में भारत के साथ अपने रिश्ते को आगे कैसे बढ़ाएंगे। उधर, ट्रंप के इन आक्रमक तेवरों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने बेहद चतुराई से ट्रंप को सार्वजनिक रूप से संतुष्ट करने की कोशिश की। इस दौरे में पीएम मोदी ने चतुर राजनीतिज्ञ की तरह विवादित मुद्दों को जरा भी हावी नहीं होने दिया। यह उसी कूटनीति का अगला कदम था जिस कूटनीति के तहत मोदी चुनाव के दौरान ट्रंप के न्योते को टाल गए थे। इसलिए कोई हैरत नहीं कि ट्रंप ने पीएम मोदी को एक बार फिर एक महान नेता बताया। ट्रंप यह कहने से भी नहीं चूके कि उन्होंने मोदी को मिस किया।

कच्चे तेल और गैस की राजनीति
चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है जहां कच्चे तेल और गैस की सबसे ज्यादा खपत है। भारत को अपनी ज़रूरत पूरा करने के लिए 80 फीसदी तेल दूसरे देशों से खरीदना पड़ता है। अब तक भारत तेल की खरीद में किसी समझदार ग्राहक की तरह बाजार के नियमों का पालन करता था। यानी जहां उसे सस्ता तेल मिलता था, वह उसी देश से तेल आयात करता था। भारत की नीति है कि तेल की खरीद में कभी किसी एक देश पर निर्भर न रहो। निगोशिएट करके जहां से सस्ता तेल मिले खरीदो। इस सिद्धान्त पर एक जमाने से खाड़ी देश जैसे इराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात भारत की पहली पसंद रहे हैं। कच्चे तेल का ज्यादा हिस्सा यहीं से भारत आता था लेकिन फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद हालात बदल गए। यूक्रेन पर रूस के हमले के खिला़फ, अमेरिका के उकसावे पर यूरोपीय संघ ने साल 2022 में रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। रूस में कच्चे तेल के दाम गिर गए। मोदी सरकार ने इस मौके का फायदा उठाया। अमेरिका के तमाम दबावों के बावजूद भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखा। पहले भारत रूस से केवल केवल एक फीसदी तेल खरीदता था लेकिन 2023 में यह कारोबार 35 फीसदी तक पहुंच गया। नतीजा यह हुआ कि भारत में तेल की कीमत कम हुई और भारत ने यूरोपीय देशों को तेल की आपूर्ति कर खूब पैसा कमाया। अब ट्रंप चाहते हैं कि भारत रूस के बजाए अमेरिका से ज्यादा कच्चा तेल खरीदे। जाहिर है, भारत अमेरिका से तेल तभी खरीदेगा जब उसे ठीक दाम पर मिलेंगे। भारत में तेल की खपत इतनी है कि वह अमेरिका के साथ रूस, इरा़क, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत जैसे देशों से भी बड़े पैमाने पर तेल आयात करता रहेगा।

हालांकि,भारत प्राकृतिक गैस की तरफ शिफ्ट हो रहा है। भारत सरकार ने साल 2030 तक देश में प्राकृतिक गैस के इस्तेमाल के शेयर को 6.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। अब तक कतर दुनिया का सबसे बड़ा एलएनटी का निर्यातक था। साल 2022-23 में भारत ने 1.985 करोड़ टन एलएनजी आयात किया था, जिसमें से करीब 54 प्रतिशत हिस्सेदारी कतर की थी। अब एलएनजी के उत्पादन में अमेरिका ने कतर को पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका को भारत में प्राकृतिक गैस का बड़ा बाजार दिख रहा है। इसीलिए ट्रंप चाहते हैं कि भारत प्राकृतिक गैस अमेरिका से खरीदे। भारत अमेरिका से अधिक तेल और गैस खरीदेगा तो दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिलेगी। लेकिन ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ की शर्त इस पूरे लेन-देन में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ सकती है। जबकि ट्रंप भारत को टैरिफ का ‘सबसे बड़ा दुरुपयोग करने वाला देश’ बता चुके हैं। ट्रंप को लगता है कि व्यापार घाटा कम करके अमेरिका हर साल एक ट्रिलियन डॉलर तक बचा सकता है। इसीलिए ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा से जापान, भारत और यूरोपीय संघ में बेचैनी है।

विवादित एफ-35 फाइटर जेट का सौदा
ट्रंप ने भारत को एफ-35 स्टील्थ फाइटर जेट खरीदने का ऑफर दिया है। अमेरिका यह दावा करता रहा है कि उसका एफ-35 लड़ाकू विमान सुपर फाइटर जेट है। एफ-35 स्टील्थ ऐसा लड़ाकू विमान है, जिसे कोई भी रडार डिटेक्ट नहीं कर सकता। लेकिन इस लड़ाकू विमान को खुद अमेरिका रिजेक्ट कर चुका है। पेंटागन के ऑपरेशनल टेस्ट एंड इवैल्यूएशन (डीओटी एंड ई) के डायरेक्टर कार्यालय ने एक रिपोर्ट में कहा है कि लॉकहीड मार्टिन एफ-35 ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर में अभी भी कम से कम 65 बुनियादी कमियां हैं। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि इन कमियों के कारण एफ-35 विमान बुनियादी परीक्षण विशिष्टताओं को पूरा करने में नाकाम रहा है। सितंबर 2023 में यूएस गवर्मेंट एकाउंटबिलिटी ऑफिस ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अमेरिकी वायुसेना के एफ-35 बेड़े के आधे से अधिक विमान किसी भी समय उड़ान भरने के लायक नहीं हैं।

यही नहीं, पिछले साल नवंबर में ही स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क ने एक्स पर एक वीडियो अपलोड किया था, जिसमें सैकड़ों छोटे ड्रोन एक साथ दिखाई दे रहे थे। उस वक्त ही मस्क ने कहा था कि कुछ बेवकूफ अभी भी एफ-35 जैसे मानवयुक्त लड़ाकू जेट बना रहे हैं। ड्रोन के युग में मानवयुक्त लड़ाकू जेट वैसे भी अप्रचलित हो चुके हैं। इससे सिर्फ पायलट ही मारे जाएंगे। पायलट वाले फाइटर जेट मिसाइलों की रेंज बढ़ाने या बम गिराने का एक पुराना और जो़िखमभरा तरीका है। वहीं, एक ड्रोन बिना मानव पायलट के यह काम बखूबी कर सकता है। अब ऐसे कबाड़ हो चुके लड़ाकू विमान ट्रंप भारत को बेचना चाहते हैं। दरअसल, अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन जैसी कई बड़ी विमान बनाने वाली कंपनियां ट्रंप पर दबाव बना रही हैं कि वे इसे सहयोगी देशों को बेचें। हालांकि भारत की तरफ से इस विमान को खरीदने के बारे में अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। आने वाले वक्त में भारत के लिए यह डील इतनी आसान नहीं होगी।

स्टील और एल्यूमीनियम पर 25 फीसदी टैरिफ का असर
मोदी की अमेरिका यात्रा से पहले ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में आयात किए जाने वाले स्टील और एल्यूमीनियम पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने का आदेश जारी कर दिया था। अमेरिका दुनिया में स्टील का सबसे बड़ा आयातक है। कनाडा, ब्राजील, आस्ट्रेलिया और मैक्सिको इसके सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता देश हैं। इनके अलावा संयुक्त अरब अमीरात, चीन, कोरिया, बहरीन, अर्जेंटीना और भारत भी अमेरिका को एल्यूमीनियम उत्पाद निर्यात करते हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान, ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ से स्टील आयात पर 25 फीसदी और एल्यूमीनियम आयात पर 10 फीसदी टैरिफ लगाया था, तब भारत को इस टैरिफ से छूट मिली थी लेकिन अब इस टैरिफ में भारत भी शामिल है। जाहिर है, ट्रंप की घोषणा का असर भारत की स्टील और एल्यूमीनियम इंडस्ट्री पर भी पड़ेगा। भले भारत स्टील और एल्यूमीनियम निर्यातकों की टॉप लिस्ट में नहीं है लेकिन फिर भी भारत में उत्पादित स्टील की सबसे ज्यादा खपत अमेरिका में ही है। साल 2024 में भारत ने 4 लाख 71 हज़ार डॉलर में 2 लाख मीट्रिक टन स्टील अमेरिका को बेचा। अमेरिका ने भारत से साल 2024 में 1 लाख 60 हज़ार मीट्रिक टन से ज़्यादा एल्यूमीनियम उत्पाद आयात किया जिसकी कीमत 44 करोड़ डॉलर से ज़्यादा थी।

जिस दिन ट्रंप ने इसका एलान किया, उसी दिन भारत के शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। ट्रंप ने शुरू में एकदम साफ कहा था कि इस आयात शुल्क से दुनिया के किसी भी देश को छूट नहीं मिलेगी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ट्रंप ने कसम खा ली है कि वह सभी देशों के साथ ‘एक जैसा’ बर्ताव करेंगे। टैरिफ पर चिन्ता जताते हुए जब ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने राष्ट्रपति ट्रंप से फोन पर बात की तो ट्रंप ने उन्हें भरोसा दिलाया कि अमेरिका उन्हें टैरिफ में छूट देगा। बाद में ट्रंप ने पत्रकारों को बताया कि ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिका का ट्रेड सरप्लस है, इसलिए वह छूट पर विचार कर रहे हैं। यानी ट्रंप दूसरे देशों के साथ सारे कूटनीतिक संबंध केवल आर्थिक आधार पर तय कर रहे हैं। चूंकि अमेरिका ताकतवर है, इसलिए उसकी शर्तों पर कारोबार करना हर देश की मजबूरी है।

हथकड़ी-बेड़ियों का मुद्दा
मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान अमेरिका में रह रहे अवैध प्रवासियों को हथकड़ी और बेड़ी पहना कर सैन्य विमान से भारत भेजने का मुद्दा गर्म था। इस मुद्दे पर भारत का रुख पहले से साफ है कि किसी भी भारतीय नागरिक की गैरकानूनी गतिविधियों पर देश को तटस्थ रहना है। यह नीति भारत में कई लोगों को नागवार भी गुजरी। उन्हें उम्मीद थी कि मोदी इसमें हस्तक्षेप करेंगे लेकिन मोदी अपनी नीति पर अडिग रहे। लेकिन जब इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रेस ने मोदी से पूछा तो उन्होंने इसका जवाब देने की बजाय कहा कि ‘कोई भी किसी देश में अवैध रूप से घुसता है तो उसे उस देश में रहने का अधिकार नहीं है।’ बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में भारत की यही नीति है। हालांकि भारत ने इस बारे में अमेरिका जैसा सख्त कदम नहीं उठाया है। लेकिन इस घटना के बाद भारत ने दुनिया को साफ-साफ संदेश दिया कि घुसपैठ के मामले में उसका क्या स्टैंड है। अमेरिका अलग-अलग तरह के कई कार्यक्रमों में विकासशाील देशों की र्फंंडग करता रहा है। अब ट्रंप सरकार इसकी समीक्षा कर रही है। अमेरिका भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए दो करोड़ डॉलर की मदद करता आया है लेकिन अब एलॅन मस्क की अगुवाई में बनी डीओजीई टीम ने इसमें कटौती का निर्णय किया है। प्रधानमंत्री के दौरे से वापस लौटने के कुछ दिन बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा- ‘हम भारत को दो करोड़ डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास बहुत पैसा है। वे दुनिया में सबसे अधिक टैक्स वसूलने वाले देशों में हैं। उनके टैरिफ भी बहुत अधिक है। मैं भारत और उनके प्रधानमंत्री का बहुत सम्मान करता हूं लेकिन वोटर टर्नआउट के लिए दो करोड़ डॉलर क्यों देना?’ ट्रंप की भाषा से साफ है कि भारत को अब वह कारोबारी की नज़र से देख रहे हैं।

ट्रंप, ईरान का चाबहार बंदरगाह और भारत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नज़र ईरान के चाबहार बंदरगाह पर पड़ चुकी है। ट्रंप ने अपने विदेश मंत्री को ईरान के चाबहार बंदरगाह पर दिये गये प्रतिबंध में छूट को खत्म करने या संशोधित करने के लिए आजाद कर दिया है। अब अगर अमेरिकी विदेश मंत्री ने यह छूट खत्म की तो इससे भारत के हित प्रभावित होंगे। चाबहार बंदरगाह एक ऐसी परियोजना है जिस पर भारत ने लाखों डॉलर खर्च किए हैं। यह बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक और कूटनीतिक हित की दृष्टि से भी बेहद अहम है। इसकी मदद से भारत पाकिस्तान को दरकिनार कर अ़फ़गानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच पाता है।

क्या है चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट
चाबहार, ईरान का एक शहर है जहां एक मुक्त बन्दरगाह है। यह ओमान की खाड़ी के किनारे स्थित है। इस शहर के अधिकांश लोग बलूच हैं। मध्य युगीन यात्री अल-बरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार (मध्य एशिया से) भी कहा था। चाबहार का मतलब होता है चार झरने। चाबहार एक ऐसा बंदरगाह है जो भारत के लिए बहुत अहमियत रखता है। इसके माध्यम से भारत के लिए समुद्री और सड़क मार्ग से अफगानिस्तान पहुंचने का मार्ग आसान हो जाता है। खास बात यह है कि यहां तक पहुंचने के लिए भारत को पाकिस्तान के रास्ते की आवश्यकता नहीं पड़ती और वह मध्य एशिया से आसानी से कारोबार कर सकता है। 2015 में भारत-ईरान और अफगानिस्तान के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। इस समझौते के तहत इस बंदरगाह का इस्तेमाल कर भारत मध्य एशिया से कच्चे तेल व यूरिया का परिवहन बेहद कम लागत में कर सकता है। यही नहीं, चाबहार भारत की कनेक्टिविटी योजनाओं का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी के लिए भी अहम है। इस कॉरिडोर के तहत भारत, ईरान, अ़फ़गानिस्तान, अर्मीनिया, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज़, रेल और सड़क मार्ग का 7200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क तैयार किया जाना है।

नर्म थी बाइडन सरकार
2016 में चाबहार को लेकर भारत और ईरान के बीच एक और समझौता हुआ। इसके अनुसार चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती बंदरगाह को भारत विकसित और उसे संचालित करेगा। शाहिद बेहेस्ती ईरान का दूसरा सबसे अहम बंदरगाह है। 2024 तक भारत इसमें 400 करोड़ रुपये लगा चुका था। इस समझौते को मई 2024 में अगले दस साल के लिए बढ़ा दिया गया। यह समझौता इंडिया पोट्र्स ग्लोबल लिमिटेड और पोट्र्स एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइज़ेशन ऑ़फ ईरान के बीच हुआ था। इस समझौते के तहत तय हुआ कि इंडिया पोट्र्स ग्लोबल लिमिटेड करीब 120 मिलियन डॉलर निवेश करेगी। साथ ही इसमें निवेश के अतिरिक्त भारत की ओर से 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद की भी बात है। इससे यह समझौता करीब 370 मिलियन का हो गया है। समझौता होते ही अमेरिका सक्रिय हो गया। उस वक्त अमेरिका में जो बाइडन सरकार थी और अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि ‘ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहेंगे। अगर कोई भी कंपनी ईरान के साथ व्यापारिक समझौते पर विचार कर रही है तो उस पर संभावित प्रतिबंधों का खतरा बना रहेगा और इस मामले में भारत को विशेष छूट नहीं दी जाएगी।’

भारत के हित होंगे प्रभावित
अमेरिका और ईरान के रिश्ते जगजाहिर हैं। ट्रंप प्रशासन ने 4 फरवरी को जो एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पास किया, उसका म़कसद ईरान सरकार पर दबाव डालना और परमाणु हथियार बनाने के सभी रास्तों को बंद करना है। ऑर्डर में कहा गया है कि ‘ईरान अस्तित्व में आने के बाद से अमेरिका और उसके सहयोगियों के ़िखला़फ रहा है। दुनियाभर में आतंकवाद को बढ़ाने में ईरान मदद करता है। उसने हिज़बुल्लाह, हमास, तालिबान, अल-़कायदा और दूसरे आतंकवादी संगठनों की सहायता की है।’ राष्ट्रपति ट्रंप ने विदेश मंत्री मार्को रुबियो को यह छूट दी है कि वे ईरान को प्रतिबंधों में दी गई छूट को रद्द या संशोधित कर सकते हैं। इस आदेश में ़खासतौर पर ईरान के चाबहार बंदरगाह का ज़िक्र किया गया है। अब कयास लग रहे हैं कि चाबहार पोर्ट को लेकर ईरान को जो छूट पहले मिल रही थी, अब वह खत्म या कम हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भारत इससे बुरी तरह से प्रभावित होगा। उसका लाखों डॉलर इस प्रोजेक्ट पर लग चुका है। अमेरिका का टारगेट भले भारत न हो लेकिन यह सा़फ है कि बाइडन प्रशासन के समय भारत को छूट मिली हुई थी, वो ट्रंप के शासन में नहीं मिलेगी। फिलहाल भारत अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अगले कदम का इंतज़ार कर रहा है। चाबहार प्रोजेक्ट पर अमेरिका की सख्ती का मतलब न केवल भारत के व्यापारिक हितों का नुकसान है बल्कि उसके सामरिक और कूटनीतिक हित भी प्रभावित होंगे और भारत यह कभी नहीं चाहेगा।

भारत की फंडिंग रोक कर ट्रंप का नया ड्रामा
पीएम नरेन्द्र मोदी के अमेरिकी दौरे से लौटने के बाद से ही ट्रंप रोना रो रहे हैं कि अमेरिका ने भारत के चुनावों में मतदान बढ़ाने यानी ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए 21 मिलियन डॉलर खर्च कर दिए। इस खुलासे ने देश में राजनीतिक वाद-विवाद शुरू कर दिया है। फंडिंग के पीछे के मकसद पर सवाल उठाते हुए खुद ट्रंप ने कहा, ‘हमें भारत में मतदान पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की क्या ज़रूरत है? मुझे लगता है कि बाइडन सरकार किसी और को चुनाव जिताने की कोशिश कर रही थी। हमें भारत सरकार को बताना होगा..।’ इसके ठीक चार दिन बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘मेरे मित्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत को ‘वोटर टर्नआउट’ के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए जा रहे हैं मैं भी तो मतदान बढ़ाना चाहता हूं।’ ये दो बयान ट्रंप की अस्थिर मानसिक हालत को बयान करते हैं। दरअसल अपने पहले बयान में ट्रंप कहना चाहते थे कि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में न आने पाए, इसके लिए बाइडन सरकार ने भारत में मतदान जागरूकता अभियान में पैसे लगाए। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस भुगतान को ‘बाहरी हस्तक्षेप’ बताया है। बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी पर इस हस्तक्षेप की कोशिश करने का आरोप लगाया। उधर, कांग्रेस ने इस आरोप का खंडन करते हुए ट्रंप के दावों को ‘बेतुका’ बताया। बहरहाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि ट्रंप प्रशासन के लोगों द्वारा दी गई जानकारी चिंताजनक है और सरकार इसकी जांच कर रही है। दरअसल, दुनिया भर के देशों की राजनीति को कंट्रोल करने के लिए अमेरिका उन देशों को भारी फंडिंग करता रहा है। यह फंडिंग कभी जागरूकता अभियान के नाम पर होती है तो कभी चुनावों में मतदान बढ़ाने या राजनीतिक प्रक्रिया सुदृढ़ीकरण के नाम पर। इसके लिए अमेरिका के पास एक अलग से यूएसएआईडी एजेंसी है जो 60 के दशक से चल रही है। अब ट्रंप की नई सरकार में एलन मस्क की अगुवाई में बनी डीओजीई इस फंडिंग की समीक्षा कर रही है और इस एजेंसी को ही खत्म करने जा रही है।

मस्क ने इसे ‘आपराधिक संगठन’ का नाम दिया है। ट्रंप किसी सूदखोर बनिए की तरह भारत के टैरिफ से परेशान हैं। हर मंच पर भारत के ज्यादा टैरिफ का रोना रोते रहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से वापस लौटने के कुछ दिन बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, ‘हम भारत को दो करोड़ डॉलर क्यों दे रहे हैं? उनके पास बहुत पैसा है। वे दुनिया में सबसे अधिक टैक्स वसूलने वाले देशों में हैं। उनके टैरिफ भी बहुत अधिक हैं। भाजपा नेता अमित मालवीय ने 2024 के आम चुनाव से पहले लंदन में एक कार्यक्रम में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण की एक क्लिप साझा की। क्लिप में गांधी को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसे प्रमुख लोकतंत्र ‘इस बात से अनजान हैं कि लोकतांत्रिक मॉडल का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो चुका है।’ राहुल का इशारा भारत की तरफ था। मालवीय ने एक्स पर अपने पोस्ट में आरोप लगाया, ‘राहुल गांधी लंदन में थे और विदेशी ताकतों- अमेरिका से लेकर यूरोप तक, से भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आग्रह कर रहे थे।’ यही नहीं, राहुल गांधी 1 जून, 2023 को वाशिंगटन, डीसी में नेशनल प्रेस क्लब में बोलते हुए भारतीय लोकतंत्र के भविष्य, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए थे। इसके बाद भाजपा ने राहुल गांधी पर विदेश में भारत को बदनाम करने का आरोप लगाया था। जैसा कि एक वरिष्ठ बेजेपी नेता ने दस्तक टाइम्स से कहा, ‘राहुल का लोकतंत्र पर ये विलाप इसी तरह की फंडिंग के लिए था ताकि वह मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोक सकें।’

बहरहाल, इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने एक खोजी रिपोर्ट में कहा कि 21 मिलियन डॉलर की राशि भारत के लिए नहीं बल्कि बांग्लादेश के लिए मंजूर की गई थी। अखबार द्वारा प्राप्त रिकार्ड के अनुसार, इसे जुलाई 2025 तक तीन वर्षों के लिए चलाया जाना था और इस पर 13.4 मिलियन डॉलर पहले ही खर्च किए जा चुके हैं। जबकि ट्रंप ने फरवरी में तीन बड़े मंचों से यह दोहराया कि फंडिंग भारत के मतदान को प्रभावित करने के लिए दी गई थी। बांग्लादेश को फंडिंग अलग से की गई। जैसा कि ट्रंप ने कहा, ‘29 मिलियन अमेरिकी डॉलर का उपयोग राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने और उनकी मदद करने के लिए किया गया, ताकि वे बांग्लादेश में कट्टरपंथी वामपंथी कम्युनिस्ट के लिए वोट कर सकें।’

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