नई दिल्ली । केंद्रीय साइबर नियामक निकाय नहीं होने के चलते राजनीतिक दल प्रचार, गलत सूचना और फर्जी खबरें फैलाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग करते रहे हैं। ऐसे में उद्योग विशेषज्ञों ने ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से निपटने के लिए एक नोडल साइबर नियामक नियुक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया है। कई देशों ने अपने स्वयं के साइबर नियामक नियुक्त किए हैं, जब वे देश के कानूनों का उल्लंघन करते हैं, खासकर बड़े चुनावों से पहले।
यूपी साइबर क्राइम, पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ साइबर सलाहकार नितिन पांडे ने आईएएनएस को बताया, प्रचार, गलत सूचना और फर्जी खबरों में जनता की राय का ध्रुवीकरण करने की क्षमता होती है। अक्सर यह देखा जाता है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल राजनीतिक दल, समुदायों और धर्मों के खिलाफ हिंसक उग्रवाद और अभद्र भाषा को बढ़ावा देने के लिए करते हैं और अंतत: लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए किया जाता है।
पांडे ने बताया कि ऐसे असामाजिक तत्व पेड ट्विटर यूजर्स के बॉट्स का इस्तेमाल कर गलत सूचना फैलाते हैं।
उन्होंने कहा, आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल्स के साथ, डीप फेक, बदली हुई आवाजें, वीडियो और टेक्स्ट बनाना बहुत आसान हो गया है। और चूंकि ये संदेश इतनी बड़ी संख्या में प्रसारित होते हैं, इसलिए कई लोग उन्हें सच मान लेते हैं।
जैसे ही भारत किसी भी बड़े राज्य के चुनाव की तैयारी करता है, विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ-साथ व्यक्तिगत उम्मीदवार भी लाखों मतदाताओं को लुभाने के लिए व्हाट्सऐप का भारी दुरुपयोग करने लगते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, विभिन्न राजनीतिक दलों के आईटी सेल अपने राजनीतिक संदेश के साथ मतदाताओं के स्मार्टफोन तक पहुंचने के लिए लाखों व्हाट्सऐप ग्रुप और प्रसारण सूची तैयार करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और साइबर कानून विशेषज्ञ विराग गुप्ता ने आईएएनएस को बताया, व्हाट्सऐप इस तरह के अनधिकृत बल्क मैसेजिंग का एक बड़ा लाभार्थी है, भले ही चुनाव आयोग ने पारंपरिक अभियानों पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। इस तरह के अनधिकृत तरीके से चुनावों को प्रभावित करना भारतीय दंड संहिता और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत एक अपराध है।
पांडे ने कहा कि जरूरत आ गई है कि लोगों को पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में मीडिया और सूचना साक्षरता पर एक ठोस शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, कई ऑनलाइन फैक्ट चेकिंग प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं। किसी भी नफरत फैलाने वाली या फर्जी खबर पर विश्वास करने से पहले इसकी क्रॉस-चेकिंग करनी चाहिए।
आईटी अधिनियम की धारा 66ए को भारत में सोशल मीडिया कानून के लिए अधिनियमित किया गया है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि) के दुरुपयोग को रोकने के लिए जवाबदेही बढ़ाने के लिए फरवरी 2021 में नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता) नियमों की घोषणा की गई थी।
गुप्ता के अनुसार, राजनीतिक दल और मार्केटिंग कंपनियां कानून को दरकिनार करने के लिए बॉट, ऑटोमेशन स्क्रिप्ट, एल्गोरिदम और समय अंतराल का उपयोग कर रही हैं।
हाल ही में, मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों को भी आपराधिक मामलों में आरोपी के रूप में माना जा सकता है।
गुप्ता ने कहा, इस संदर्भ में, चुनाव आयोग को अपने कानूनों और नियमों के इस तरह के प्रणालीगत और बड़े पैमाने पर उल्लंघन के लिए उम्मीदवारों, पार्टियों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत बनाए गए नियमों के उल्लंघन के लिए ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की जा सकती है।