अब दलित नेताओं को बटोरने में लगे अखिलेश, दद्दू प्रसाद सपा में शामिल

नई दिल्ली (दस्तक टाइम्स): समाजवादी पार्टी ने तय कर लिया है कि वह अगला विधानसभा चुनाव किस रणनीति के तहत लड़ेगी। सपा पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और पसमांदा गठजोड़ को मजबूत कर रही है। उसका निशाना कमजोर व बिखर चुकी बसपा है। सपा ने धूमधाम से बसपा के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद को पार्टी में शामिल कर लिया। प्रसाद बांदा के रहने वाले हैं और बुंदेलखंड में दलितों पर इनकी अच्छी पकड़ है। अब दद्दू साइकिल पर सवार हो गए हैं।
दद्दू प्रसाद यूपी की राजनीति में एक जाना-पहचाना पुराना नाम हैं। वह बहुजन समाज पार्टी में लंबे समय तक सक्रिय रहे और पार्टी के मजबूत स्तंभ माने जाते थे। वे मायावती सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और दलित राजनीति में उनका खासा प्रभाव माना जाता है। उनके आने से समाजवादी पार्टी को आगामी चुनावों में एक बड़ा राजनीतिक फायदा मिल सकता है।

दद्दू प्रसाद ने राजनीति की शुरुआत 1982 में DS-4 से की थी। दद्दू प्रसाद बसपा से तीन बार के विधायक रहे हैं। उन्होंने चित्रकूट जिले की विधानसभा की सुरक्षित सीट मानिकपुर से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और तीनों बार जीते। इस लगातार जीत से उनका कद बढ़ गया और 2007 में मायावती ने उन्हें बसपा सरकार में ग्राम्य विकास मंत्री और जोनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन बाद में उनका मायावती से मनमुटाव हो गया और उन्हें किनारे डंप कर दिया गया। दरअसल 2012 में नए परिसीमन के दौरान मऊ मानिकपुर सीट सामान्य कर दी गई थी और नरैनी विधानसभा सुरक्षित कर दी गई। मायावती ने 2012 में मऊ मानिकपुर से दद्दू का टिकट काट चंद्रभान को दे दिया था। 2012 में दद्दू के ऊपर भितरघात का आरोप लगा और मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।
2017 में अपनी पार्टी से मऊ मानिकपुर से चुनाव लड़े, महज 9 हजार वोट पाए। उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी। तब उनका चुनाव चिन्ह चारपाई था। तब से दद्दू राजनीति में निष्क्रिय रहे। इस दौरान वे कभी चंद्रशेखर से मिले, कभी अखिलेश से। लेकिन अब उनकी सक्रिय राजनीति में वापसी हुई है। सपा उनकी पुरानी सीट मानिकपुर से उन्हें चुनाव लड़ा सकती है। हालांकि 2022 से ही दद्दू के सपा में आने की तेज चर्चा थी। 2022 में सपा नरैनी विधानसभा से उन्हें टिकट देना चाहती थी। लेकिन पटेल यानी कुर्मी समाज ने विरोध किया तो अखिलेश ने दद्दू का टिकट काट दिया था। दरअसल दस्यु ददुआ के मरने के बाद पटेल समाज दद्दू से नाराज रहता है। बसपा की सरकार में ही ददुआ मारा गया गया था, तब दद्दू कैबिनेट मंत्री थे। दद्दू पर आरोप है कि ददुआ के एनकाउंटर में उनका भी हाथ था। अब अखिलेश पटेल यानी कुर्मी वोट कैसे मैनेज करेंगे ये अहम सवाल है।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं, लेकिन उससे पहले ही राज्य की राजनीति में जबरदस्त हलचल शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों ने अभी से अपनी रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं और जोड़-तोड़ की सियासत भी तेज हो चुकी है। सपा ने दद्दू प्रसाद के अलावा मुस्लिम समाज के वरिष्ठ नेता व नगर पालिका अध्यक्ष सलाउद्दीन, पिछड़ा वर्ग में अच्छी पकड़ रखने वाले बुलंदशहर के नेता देवरंजन नागर और पूर्वांचल में सक्रिय पिछड़ा वर्ग के नेता जगन्नाथ कुशवाहा को भी पार्टी में शामिल किया। सपा की ये कोई नई पहल नहीं है। कभी बसपा का बड़ा चेहरा रहे इंद्रजीत सरोज से लेकर बाबू सिंह कुशवाहा तक सपा में शामिल हो चुके हैं। ये सब मायावती की कोर टीम का हिस्सा रहे हैं। सपा बसपा के कई और बड़े नामों पर डोरे डाल सकती है।