ज्ञानेंद्र शर्मादस्तक-विशेषराष्ट्रीयस्तम्भ

अब राजनीति होगी कोरोना के सामने

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ : आज 6 मई को उत्तर प्रदेश विधान परिषद के 11 सदस्य रिटायर हो गए। स्नातक एवं शिक्षक क्षेत्र से चुने गए इन एमएलसी का 6 साल का कार्यकाल आज समाप्त हो गया। यह कोई बहुत बड़ी खबर नहीं है क्योंकि हर दो साल के अंतराल पर ये विधायक रिटायर होते रहते हैं। असली मुद्दा यह है कि आज ये जो सीटें खाली हुई हैं, वे भरेंगी कब? इसी तरह दूसरा सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश के बाहर की राज्यसभा की जो 18 सीटें पिछले महीने खाली हुई थीं, वे कब अपने नए नुमाइंदे पा सकेंगी?

सब कुछ कोरोना माई पर निर्भर होगा। ये कब कृपा करती हैं, इस पर यह बात भी निर्भर करेगी कि अगली अक्टूबर-नवम्बर में बिहार विधानसभा के निर्धारित चुनाव हो पाएंगे कि नहीं। यह भी इसी ‘कृपा’ पर निर्भर होगा कि अक्टूबर-नवम्बर 2020 में ही उत्तर प्रदेश में निर्धारित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संभव हो सकेंगे या नहीं। अब तक तमाम लोगों को ललकारती चली आ रही कोरोना अब नेताओं के राजनीतिक भविश्य के सामने खड़ी होगी और उसका निर्धारण भी करेगी। आजादी के बाद यह पहला मौका होगा जब एक महामारी तमाम छोटे बड़े नेताओं के राजनीतिक भाग्य वांचेगी।

तो क्या विधानपरिषद और राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों में आगे जीतने वाले उम्मीदवारों का कार्यकाल कुछ कम हो जाएगा- क्या उनका कार्यकाल 6 साल से कम हो जाएगा? बिल्कुल नहीं। कोरोना माई की कृपा विजेताओं पर बनी रहेगी। केन्द्रीय चुनाव आयोग के उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा से जब मैंने इस बारे में पूछा तो उन्होंने साफ कहा कि आगे जो चुनाव होंगे, उनमें विजयी सभी प्रत्याशियों के कार्यकाल 6 साल के ही होंगे। उनका कहना था कि जो भी प्रत्याशी आगे जीतेंगे, उनका कार्यकाल उसी तारीख से जोड़ा जाएगा जिसको वे निर्वाचित होंगे, न कि तब से जबकि उनसे सम्बन्धित सीटें रिक्त हुई थीं। 13 मई 1952 में गठित हुई राज्यसभा के सामने किसी महामारी के कारण ऐसी परिस्थति कभी पैदा नहीं हुई कि उसके चुनाव संभव न हो पाएं। संविधान के अनुच्छेद 80/क/ व /ख/ के तहत राज्यसभा में क्रमषः 12 नामांकित सदस्य और 238 राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इस समय राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 245 है जिनमें 12 नामांकित हैं।

उ.प्र. विधान परिषद के जो 11 सदस्य आज रिटायर हुए हैं, उनके स्थान भरने के लिए पिछली 26 मार्च को चुनाव होना था लेकिन महामारी और लाॅकडाउन के चलते इन्हें अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। चुनाव की नई तारीख कब तय हो पाएगी, कोई नहीं जानता। इसी तरह उत्तर प्रदेश से बाहर के विभिन्न राज्यों के 55 राज्यसभा सदस्यों के द्विवार्षिक चुनाव के लिए यही तारीख तय की गई थी। इनमें से 37 निर्विरोध चुन लिए गए थे जबकि 18 के लिए अभी चुनाव होना बाकी है। जिन सीटों के लिए यह चुनाव अभी होना है, उनमें 4-4 गुजरात व आन्ध्र की, 3-3 राजस्थान व मध्य प्रदेश की, 2 झारखण्ड की तथा एक एक मेघालय व मणिपुर की सीटें हैं। उत्तर प्रदेश में 9 और उत्तराखण्ड में 1 राज्यसभा सीटें आगामी 25 नवम्बर को रिक्त होने वाली हैं। हो सकता है कि इन्हीें सीटों के साथ बेनी प्रसाद वर्मा के निधन से रिक्त हुई एक सीट के लिए उपचुनाव भी हो जाय। श्री वर्मा का कार्यकाल 4 जुलाई 2022 को खत्म होने वाला था। लेकिन यह भी हो पाएगा, किसी को नहीं पता।

एक और बड़ा राजनीतिक इम्तिहान भी कोरोना के सामने बाहें फैलाए उपस्थित होगा और वह है बिहार विधानसभा का चुनाव। बिहार विधानसभा का पिछला चुनाव 20 नवम्बर 2015 को हुआ था। और इस तरह अब अगली विधानसभा का गठन 5 साल के कार्यकाल के बाद आगामी 19 नवम्बर 2020 तक हो जाना चाहिए। बिहार में मुख्यतः जनता दल यू और भाजपा की मिलीजुली सरकार है। जिस तरह इन दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा है और एक स्वयंभू राजनीतिक पंडित प्रशांत किशोर पाला बदलते रहे हैं, उसने बहुत सारे दिलचस्प परिदृश्य पटना में पैदा कर रखे हैं। इन पर से पर्दा कब हटेगा, यह भी कोरोना माई को ही तय करना है। तब तक राजनीतिक गुणाभाग और ज्योतिषीय परामर्श जारी रह सकता है। वैसे एक ज्योतिषी की भविष्यवाणी इन दिनों प्रचलित हो रही है जिसमें वे कह रहे हैं कि जुलाई-अगस्त में अभी कोरोना का प्रकेाप जारी रह सकता है लेकिन उसके बाद स्थितियां सामान्य हो जाएंगी और तब नीतीश कुमार को अपना भाग्य आजमाने के लिए अपने अस्तबल से सधे हुए घोड़े छोड़ने पडेंगे।

दिल्ली में विराजमान भारतीय जनता पार्टी के अमित शाह जैसे धुरंधर शतरंजी विषेशज्ञों को भी कोरोना माई की खतरनाक चालों से आहत अपने हाथी घोड़ों की मरहम पट्टी करके उनको महामैच के लिए तैयार करना पड़ेगा। ज्योतिषी सही साबित हुए और कोरोना माई अंतध्र्यान हुईं तो सितम्बर से ही तो वे तीर कमान साधने लग जाएंगे जिनकी मारक क्षमता यह तय करेगी कि भाजपा पिछले साल की महाराष्ट्र और दिल्ली की हार की यादें अपनी चुनाव स्लेट से मिटा पाएगी या स्याही फिर फैलेगी।

और इसी दौर में तो उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनावों की रणभेरी भी तो बजेगी। तो विघ्नहरन कोरोना माई को ही होना है क्योंकि बहुत से लोग कह रहे हैं कि उनके प्रकोप से बचने का इलाज तब तक निकल आएगा।

(लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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