नई दिल्ली: पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने आपने एक ऐतिहासिक निर्णय में इस बात की घोषणा की की सहकारी बैंकों पर भी सरफेसी एक्ट लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को सुनने के बाद तुरंत बाद ही आपके मन में 2 सवाल गूंजे होंगे एक क्या होता है सरफेसी एक्ट और उसके पहले कि किसे कहते हैं सहकारी बैंक ?
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क्या होते हैं सहकारी बैंक?
दरअसल सहकारी बैंक ऐसे छोटे वित्तीय संस्थान होते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य छोटे व्यवसाय के लिए ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना ऐसे बैंक शहरी और गैर शहरी दोनों क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह बैंक सामान्य वाणिज्यिक बैंकों से अलग होते हैं क्योंकि इनकी स्थापना के पीछे का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता था।
ऐसे बैंक अपने सदस्यों को कई प्रकार की बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराते हैं जैसे जमा स्वीकारना ,ऋण देना आदि।यह अपने सदस्यों को सर्वोत्तम उत्पाद और बेहतर सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध होते हैं। रही बात इन बैंकों के स्वामित्व की तो इनका स्वामित्व लोकतांत्रिक रूप से चुने गए निदेशक मंडल द्वारा होता है। यह बैंक आरबीआई द्वारा विनियमित होते हैं और बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के अंतर्गत आते हैं।
वर्तमान में देश में कुल 1540 सहकारी बैंक कार्यरत है जिनमें 8.6 करोड़ जमा करता है और जिनकी कुल बचत 5 लाख करोड़ है।
अब बढ़ते हैं अगले सवाल की ओर की सरफेसी अधिनियम किसे कहते हैं? सरफेसी अधिनियम अर्थात( सेक्रिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन आफ फाइनेंशियल असेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट )। बैंकों के गैर निष्पादन कारी संपत्ति अर्थात नॉन परफॉर्मिंग असेट्स और खराब संपत्ति (बैड एसेस्ट्स)की समस्या को हल करने के उद्देश्य से 2002 में भारत सरकार ने इस एक्ट को पारित किया।
इस अधिनियम के प्रावधानों में विभिन्न संस्थाओं को अपनी खराब संपत्ति की समस्या के प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रकार की शक्तियां और सुझाव किए हैं। इस अधिनियम के तहत बैंक अपने एनपीए के रिकवरी के लिए सख्त एक्शन अपना सकता हैं। अगर कोई लेनदार लोन को वापस करने से मना करता है तो बैंक उसके द्वारा गिरवी रखी हुई संपत्ति को बेचकर अपनी नुकसान की भरपाई कर सकता है।
इस एक्ट के आ जाने से अब अपनी रिकवरी के लिए बैंक को कोर्ट जाने की आवश्यकता नहीं। कहने का तात्पर्य है की सरफेसी एक्ट केवल सुरक्षित लोन पर ही लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहां कि,किसी भी वित्तीय संस्थान के लिए उसके बकाए की रिकवरी एक आवश्यक कार्य होना चाहिए ऐसे में कॉपरेटिव बैंक बिना किसी बैंकिंग सुधार के अपने बकाए को अपना नहीं सकती।
कोर्ट ने आगे कहा कि कॉपरेटिव बैंक बैंक की परिभाषा पर कार्य करते हैं जोकि बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत कार्य करते हैं ऐसे में इस निर्णय के लागू हो जाने से बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट से कोई टकराहट नहीं होगा। कोर्ट ने आगे कहा कि संसद के पास इस प्रकार की वैधानिक क्षमता है की इस एक्ट को कोऑपरेटिव बैंकों पर भी लागू कर सके।
हाल ही में पंजाब महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक अपने बैड लोन के कारण आरबीआई के कोप का भाजन हुआ था जिसके तहत आरबीआई ने इस बैंक के ग्राहकों के 1 दिन में नकद निकासी की सीमा तय कर दी थी ऐसे में सभी कॉपरेटिव बैंक के ऊपर संदेह लगा ऐसे में इस एक्ट के आ जाने से सभी कॉपरेटिव बैंक अपने एनपीए की रिकवरी आसानी से कर सकेंगे और अपने स्थापित उद्देशों को पूरा कर सकेंगे।