NSG में भारत की एंट्री की कम उम्मीद
एजेंसी/ सियोल। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता की उम्मीदें धूूमिल हो चुकी हैं। सियोल में एनएसजी के मुद्दे पर शीर्ष स्तरीय बातचीत समाप्त हो चुकी है। औपचारिक तौर अभी सियोल बातचीत के परिणाम का इंतजार है।
भारत ने एनएसजी में एंट्री के लिए लगातार विरोध कर रहे चीन को मनाने की भरपूर कोशिश की लेकिन अंत तक स्थिति बदल गई और चीन के अलावा 6 अन्य देशों ने भी भारत के खिलाफ आवाज उठाई।
इससे पहले सियोल में गुरुवार देर रात तक हुई बैठक में अब तक 47 देशों का समर्थन मिल चुका था, लेकिन चीन अपने रुख से पीछे नहीं हट रहा था। इस बीच सूत्रों के हवाले से ये खबर आई थी कि स्विट्जरलैंड ने भारत की दावेदारी का विरोध किया है। हालांकि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान एनएसजी पर समर्थन देने का भरोसा दिया था।
चीन की तरफ से वैंग क्यून ने कहा कि एनएसजी में गैर एनपीटी देशों को शामिल करना एक मुद्दा है। एनएसजी में दावेदारी के लिए चीन न तो भारत का विरोध कर रहा है, न ही पाकिस्तान का। मौजूद हालात में भारत की दावेदारी का मसला लंबित ही रहेगा। चीन ने कहा कि एनएसजी में शामिल होने की पांच शर्तों में से पहली शर्त एनपीटी पर हस्ताक्षर करना है। इन शर्तों की चीन ने नहीं बनाया था बल्कि एनएसजी के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से फैसला किया था।
इसके पहले ताशकंद में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से विशेष मुलाक़ात कर समर्थन मांगा। मोदी ने जिनपिंग से कहा कि भारत के आवेदन पर चीन निष्पक्ष रवैया अपनाकर समर्थन करें।
सियोल में जापान ने भारत की सदस्यता का मुद्दा उठाया, लेकिन चीन ने उसका विरोध किया। देर रात डिनर के बाद हुई चर्चा में भी कोई फैसला नहीं हो सका। चीन ने कहा है कि एनएसजी में विरोध के कारण भारत और चीन के द्विपक्षीय रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
इससे पहले ताशकंद में मोदी से मुलाकात में जिनपिंग का रुख भारत के लिए सकारात्मक नजर आया। दोनों नेताओं के बीच करीब 50 मिनट तक अलग बातचीत हुई। बता दें कि मोदी और जिनपिंग गुरुवार को ही शंघाई सहयोग परिषद (एससीओ) की बैठक में शामिल होने ताशकंद पहुंचे थे।
इससे पहले दिन में भी चीन ने मीटिंग में भारत की सदस्यता पर चर्चा का विरोध किया था। वहां मौजूद कूटटनीतिज्ञों की कोशिश के बाद आखिरकार इस मुद्दे पर चर्चा के लिए सहमति बनी और निर्णय लिया गया कि गैर एनपीटी वाले देशों की सदस्यता के राजनीतिक, कानूनी और तकनीकी पहलुओं पर चर्चा की जाएगी।
माना जा रहा है कि भारतीय अधिकारी शुक्रवार को होने वाली मीटिंग से पूर्व भारत के समर्थन में माहौल बनाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। वहीं फोन के जरिए अमेरिका भी भारत की सदस्यता के लिए विभिन्न देशों को मनाने में जुटा है।