चैत्र नवरात्र : सप्तमी को कालरात्रि और भवानी गौरी के दरबार में उमड़ी भीड़
दरबार में गुड़हल फूल, लाल चुनरी, नारियल, फल किया अर्पित, भोर से ही गूंज रहा देवी का जयकारा
वाराणसी : वासंतिक चैत्र नवरात्र के सातवें दिन शुक्रवार को भी श्रद्धालु जगदम्बा की आराधना में लीन रहे। श्रद्धालुओं ने भोर से ही नवदुर्गा के सातवें स्वरूप शुभंकरी कालरात्रि और गौरी स्वरूप भवानी गौरी का विधिवत दर्शन पूजन किया। दर्शन पूजन का क्रम पूरे दिन चलता रहा। कालिका गली में स्थित कालरात्रि के दरबार में गूंजती घंटियों की आवाज और रह-रहकर जयकारा-”सांचे दरबार की जय से परिसर और गली गुजांयमान रही। इस दौरान देवी की स्तुति-वंदना पचरा के साथ दरबार माला-फूल, धूप-बत्ती और लोहबान की गंध से महकता रहा। दरबार में हाजिरी लगाने आये श्रद्धालुओं ने माता के दरबार में माला, गुड़हल के पुष्प, चुनरी, नारियल, फल, मिष्ठान, सिंदूर, रोली, इत्र और द्रव्य अर्पित कर घर परिवार में सुख शान्ति की अर्जी लगाई।
आदिशक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है। माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र है। पुराणों के अनुसार माता के इस स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था। देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है। चंड-मुंड के संहार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा भी कहा जाता है। विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है। अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में राक्षस का कटा सिर, हाथ में अस्त्र-शस्त्र । मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है। माता का वाहन गर्दभ है।
उधर, गौरी स्वरूप में माता भवानी गौरी का दर्शन पूजन के लिए भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही। विश्वनाथ गली अन्नपूर्णा मंदिर के निकट श्रीराम मंदिर में स्थित दरबार में पहुंचे श्रद्धालुओं ने विधि विधान से भवानी गौरी का विधिवत दर्शन पूजन किया। काशी में ऐसी मान्यता है कि भवानी गौरी के दर्शन पूजन से व्यक्ति के अंदर से भय समाप्त हो जाता है। माता भगवती के दिव्य स्वरूप की आराधाना और उपासना से उसमें तप, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य भाव में निरन्तर वृद्धि होती है।