आज ही के दिन ज्योतिबा फुले ने बनाया था सत्य शोधक समाज
दस्तक विशेष ( विवेक ओझा) : जब भी आधुनिक भारत के सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण क्रांति की बात होती है तब ज्योतिबा फुले का नाम विशेष रूप से सामने आता है और इसके साथ नाम आता है उनके द्वारा गठित “सत्य शोधक समाज” का । सत्यशोधक समाज का गठन 24 सितंबर 1873 को हुआ था। महात्मा ज्योतिबा फुले ने इस संस्था के माध्यम से समाज में एक नई वैज्ञानिक और तार्किक अभिवृत्ति के विकास पर बल दिया। इस संस्था के विचारों ने कर्मकांड, जात पात में बटे समाज के दिमाग की नसों को हिला कर रख दिया।
जाति प्रथा, पुरोहितवाद, स्त्री-पुरुष असमानता और अंधविश्वास के साथ समाज में व्याप्त आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामाजिक परिवर्तन की जरूरत भारत में शताब्दियों से रही है और इस लक्ष्य को लेकर आधुनिक युग में सार्थक, सशक्त और काफी हद तक सफल आंदोलन चलाने का श्रेय प्रथमत: ज्योतिराव फुले को ही जाता है जिन्हें ज्योतिबा फुले नाम से भी जाना जाता है। 11 मई, 1888 को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्त्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
सत्य शोधक समाज की स्थापना :
सामाजिक न्याय, समानता, बराबरी के हक़ के लिए सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन को संगठित रूप से आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर, 1873 को ‘सत्य शोधक समाज’ की नींव रखी। उन दिनों समाज सुधार का दावा करने वाले कई संगठन काम कर रहे थे। उनमें ‘ब्रह्म समाज’ (राजा राममोहन राय), ‘प्रार्थना समाज’ (केशवचंद सेन), पुणे सार्वजनिक सभा (महादेव गोविंद रानाडे) आदि प्रमुख थे, लेकिन ये सभी संगठन जाति व्यवस्था में ऊंचे पायदान पर बैठे लोगों से संबंधित थे । दलितों, अछूतों के उत्थान के लिए समर्पित संगठन की कमी को ज्योतिबा फूले ने ही पूरा किया। वे चाहते थे कि समाज में जाति रहे, लेकिन उसका चेहरा उतना क्रूर और अमानवीय न हो कि मानवीय गरिमा ही खत्म हो जाए। सत्य शोधक समाज की स्थापना निम्न जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को शिक्षा देने तथा समाज की शोषक परंपरा से अवगत कराने के उद्देश्य से की गई थी।
सत्य शोधक समाज के तहत तहत सती प्रथा, महिलाओं को शिक्षा का अधिकार, विधवा विवाह, बाल विवाह, अंधविश्वास, छुआछूत, उत्पीड़न पिछड़ों को शिक्षा से वंचित रखने जैसे मुद्दों पर सार्थक संघर्ष किया गया। ज्योतिबा फुले के साथ उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने मिलकर महिला मंडल, बाल हत्या प्रतिबंध, मजदूरों के लिए रात्रि पाठशाला भी खोला था। दोनों ने मिलकर भारतीय समाज को समतामूलक समाज बनाने पर आजीवन काम किया।