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इजरायल में लगी एक हफ्ते की इमरजेंसी , लेबनान के खिलाफ़ निर्णायक लड़ाई

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : इजरायल इस वक्त लेबनान और हिजबुल्ला के खिलाफ़ निर्णायक लड़ाई लड़ रहा है और ऐसा लग रहा है कि वह हिजबुल्लाह के आंतकियो को नेस्तनाबूत करने के पहले चैन की सांस नही लेगा। ताजा मामले में इजरायल के एयर स्ट्राइक में लेबनान में करीब 500 लोगों की मौत हो गई है और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। प्रतिशोध की आग में इजरायल इस समय ये भी नही देखना चाहता कि इन हमलों में बच्चों की जान जा रही है , महिलाओं की जान जा रही है, मानवाधिकार तार तार हो रहे हैं। मृतकों में 51 बच्चे और 69 महिलाएं हैं। लेकिन इजरायल के पास अपने तर्क हैं। उसका मानना है कि जब फिलिस्तीन, लेबनान के इस्लामिक लड़ाके इजराइलियों को निर्मम तरीके से निशाना बनाते समय ये सब नही सोचते तो क्या इजरायल ने ही नैतिकता, मानवता, अच्छे व्यवहार का ठेका ले रखा है। इसलिए इजरायल ने बेरूत सहित लेबनान के 12 शहरों में 1300 जगहों पर बम वर्षा की है जिसमें 800 टारगेट हिजबुल्लाह के थे।

लेबनान पर एयर स्ट्राइक के बाद इजरायल ने अपने यहां भी एक हफ्ते का आपातकाल लगा दिया है। 30 सितंबर तक इजरायल में स्पेशल होम फ्रंट सिचुएशन ( Special Home Front Situation) की घोषणा कर दी गई है। इसे ही इमरजेंसी कहते हैं। इसके साथ ही हिजबुल्लाह के सीनियर कमांडर अली कराकी के मारे जाने की खबर सामने आई है। इजरायल अब नेतन्याहू के नेतृत्व में परिणामों से बेफिक्र होकर हमले कर रहा है।

हिजबुल्लाह से दुश्मनी की क्या है वजह:

इजरायल और लेबनान के बीच दुश्मनी की शुरुआत को 1970 के दशक की घटनाओं में देखा जा सकता है। 1975 के आस-पास लेबनान में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। इसका फायदा उठाकर PLO के लोगों ने लेबनान के दक्षिणी हिस्से से इजराइल को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इसके बाद इजराइल ने जवाबी कार्रवाई करते हुए जून 1982 में लेबनान के दक्षिणी हिस्से में कब्जा कर लिया। इजराइल के साथ समझौते के बाद PLO ने लेबनान छोड़ दिया लेकिन इजराइल ने इस पर कब्जा नहीं छोड़ा। इजराइल पर आरोप लगते हैं कि इसने लेबनान के सिविल वॉर में प्रॉक्सी संगठनों को समर्थन किया, सब्र और शातिला नरसंहार में भी मदद की। इजराइल पर आरोप हैं कि उसने दक्षिणपंथी मिलिशिया की मदद की जिससे लेबनान में 2 दिनों में करीब साढ़े 5 हजार फिलिस्तीनी शरणार्थियों और लेबनानी नागरिक मारे गए।

इसी बीच ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई, जिसके बाद ईरान की सत्ता में आई सरकार ने आस-पास के क्षेत्रों में शिया मुस्लिमों को मजबूत करना और उन्हें हथियार देना शुरू कर दिया। 1980 के दशक की शुरूआत में ईरान के समर्थन से हिजबुल्लाह नामक संगठन बना, जिसे इस क्षेत्र में इजराइल को पीछे धकेलने का जिम्मा दिया गया।

कैसे हुआ हिजबुल्लाह का उदय :

हिजबुल्लाह का अर्थ है “अल्लाह की पार्टी”। हिजबुल्लाह बतौर राजनीतिक दल 1982 में लेबनान के शिया समुदाय के बीच उभरा। इसका गठन मुख्य रूप से इजरायल के दक्षिणी लेबनान पर कब्जे के जवाब में हुआ था। इजरायल ने 1982 में लेबनान में प्रवेश किया, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठनों को दबाना था। 1983 में, हिजबुल्लाह ने बेरूत में अमेरिकी और फ्रांसीसी सेना के ठिकानों पर आत्मघाती बम हमले किए, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इन हमलों ने संगठन को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई और इसे आतंकवादी संगठन के रूप में देखा जाने लगा।इजरायल ने भी हिजबुल्लाह के खिलाफ कई सैन्य कार्रवाइयां कीं, जिनमें हवाई हमले और दक्षिणी लेबनान में उसके ठिकानों पर हमले शामिल थे। 1992 में, हिजबुल्लाह के नेता अब्बास मुसावी की हत्या के बाद, संगठन ने अपने नेतृत्व में हसन नसरल्लाह को चुना, जिसने हिजबुल्लाह को और अधिक संगठित और प्रभावी बनाया।

हिजबुल्लाह ने किया था गुरिल्ला युद्ध पद्धति पर काम :

जब 1982 में, इजरायल ने फिलिस्तीनी संगठन पीएलओ (PLO) के खिलाफ लेबनान पर हमला किया और दक्षिणी लेबनान के हिस्सों पर कब्जा किया, तब हिजबुल्लाह का गठन हुआ। इस संगठन का उद्देश्य इजरायल को लेबनान से बाहर करना और शिया मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना था। हिजबुल्लाह ने अपनी विचारधारा को ईरानी क्रांति के शिया इस्लामिक सिद्धांतों पर आधारित किया और ईरान के नेतृत्व वाले शिया इस्लामिक शासन को अपना आदर्श माना। हिजबुल्लाह ने इस समय इजरायली सेनाओं के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू किया और धीरे-धीरे दक्षिणी लेबनान में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया।

हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच सबसे बड़ा संघर्ष 2006 में हुआ, जिसे “2006 लेबनान युद्ध” कहा जाता है। इस युद्ध की शुरुआत तब हुई जब हिजबुल्लाह ने इजरायली सैनिकों का अपहरण कर लिया और इसके जवाब में इजरायल ने बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू किया। यह युद्ध लगभग एक महीने तक चला, जिसमें हजारों नागरिकों की मौत हुई और लेबनान के बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा।

लेबनान भारी तबाही से आज तक नहीं उबर पाया। युद्ध के अंत में, हिजबुल्लाह ने खुद को एक मजबूत प्रतिरोध बल के रूप में पेश किया और उसकी लोकप्रियता लेबनान के शिया समुदाय के बीच और बढ़ी। हालांकि, इजरायल ने भी दावा किया कि उसने हिजबुल्लाह की सैन्य क्षमता को कमजोर किया है।

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