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देश की अर्थशास्त्रियों की खुदरा महंगाई पर राय, इस बार राहत के आसार

नई दिल्‍ली : देश की खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में मोटे तौर पर 4.87% पर अपरिवर्तित रहने की संभावना है, जबकि पिछले महीने यह 4.85% थी। मिंट के सर्वेक्षण (Survey) में शामिल 22 अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान जताया है। अर्थशास्त्रियों के अनुमान 4.70% और 5.10% के बीच भिन्न-भिन्न थे। केवल चार ने मुद्रास्फीति दर 5% से अधिक होने का अनुमान लगाया था। औसत अनुमान 4.85 फीसदी निकलकर आया है। खुदरा महंगाई का आधिकारिक डाटा 13 मई को जारी होगा।

सर्वे में शामिल बार्कलेज की क्षेत्रीय अर्थशास्त्री श्रेया सोधानी ने कहा कि मार्च के बाद से खाद्य पदार्थों की कीमतों पर दबाव बढ़ रहा है, खासकर भोजन के लिए, जो काफी हद तक मौसमी है। हालांकि, अनुकूल आधार से इनकी भरपाई होने की संभावना है। इसे देखते हुए मुख्य मुद्रास्फीति में नरमी जारी रह सकती है।

वहीं, अर्थशास्त्री सुजन हाजरा ने कहा कि गर्मियों की शुरुआत के साथ आमतौर पर खराब होने वाले खाद्य पदार्थों, विशेषकर सब्जियों की कीमतों पर दबाव बढ़ जाता है। हालांकि, अगर मौसम विज्ञान विभाग का सामान्य से अधिक मानसून का पूर्वानुमान सच होता है, तो कुछ राहत की उम्मीद की जा सकती है।

यूनियन बैंक की मुख्य आर्थिक सलाहकार कनिका पसरीचा का अनुमान है कि अप्रैल में मुख्य मुद्रास्फीति 3.1% के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ सकती है। लेकिन इसके लिए वैश्विक कमोडिटी कीमतों (विशेष रूप से तेल और सोने) के रुझानों पर बारीकी से नजर रखनी होगी। खुदरा महंगाई में उतार-चढ़ाव को देखते हुए आरबीआई सतर्क रुख अपना सकता है।

भारत में महंगाई मापने के दो आधार हैं। पहला खुदरा और दूसरा थोक महंगाई है। खुदरा महंगाई दर आम ग्राहकों की ओर से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको उपभोक्ता मूल्य सूचकांक भी कहते हैं। वहीं, थोक मूल्य सूचकांक का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।

यह कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं। कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, निर्माण लागत के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी खुदरा महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर खुदरा महंगाई की दर तय होती है।

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