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Jharkhand : हेमंत सोरेन के मास्टर स्ट्रोक के आगे विपक्ष पस्त

उदय चौहान

मिशन 2024 को लेकर सूबे में सत्ताधारी दल और विपक्ष की ओर से लगातार कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जनता के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के लिए रैलियां की जा रही हैं। विपक्ष दल भाजपा और आजसू जहां एक ओर हेमंत सोरेन सरकार को भ्रष्टाचार और अपराध के मुद्दे पर घेर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी झामुमो इडी की कार्रवाई को सरकार के खिलाफ साजिश और विपक्ष की हताशा कह रही है। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, एक-दूसरे के खिलाफ सियासी हमले तेज होते जा रहे हैं। इन सब के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी एक के बाद एक कुछ बड़े फैसले लेकर विपक्ष को सियासी तौर पर हाशिए पर लाने की कोशिश की है। जनता की नब्ज को भांपते हुए कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिससे प्रदेश के राजनीतिक समीकरण इंडिया गठबंधन के पक्ष में आ सकता है। 1932 खतियान आधारित नीति, नौकरियों में ओबीसी, एसटी, एससी आरक्षण में बढ़ोतरी को लागू करना मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।

झारखंड में हमेशा से 1932 आधारित स्थानीय नीति का मुद्दा आदिवासियों और मूलवासियों की भावना से जुड़ा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आगामी चुनाव में हेमंत सोरेन के इन फैसलों से इंडिया गठबंधन को फायदा मिलने की उम्मीद है। एसटी, एससी और ओबीसी की श्रेणी के आरक्षण में कुल 17 फीसदी का इजाफा कर इंडिया इन वर्गों का कम से कम 10 फीसदी वोट अपने पक्ष में करना चाहती है। जानकारों की मानें तो हेमंत सोरेन अपने कोर वोटर 26.2 फीसदी आदिवासी, धर्मांतरित इसाई समेत 19 फीसदी अल्पसंख्यक पर फोकस करके अब तक के कई निर्णय लिए गए हैं। इसी कड़ी में 1932 खतियान का मसला है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में करीब 50 फीसदी ओबीसी हैं। 2019 विधानसभा में झामुमो को करीब 28 लाख वोट मिले थे। झामुमो का अगला लक्ष्य 38 से 40 लाख वोट हासिल करना है।

इसके साथ ही सहयोगी दल कांग्रेस और राजद ने पड़ोसी राज्य बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी जातीय जनगणना कराने का आग्रह किया है। जानकारों की मानें तो सरकार भी इस मुद्दे पर विचार कर रही है। और इसके राजनीतिक पहलू पर भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है। सरकार झारखंड में जातीय गणना कराने पर विचार कर रही है। विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जाएगा। जातियों को जनसंख्या के आधार पर नियुक्ति से लेकर अन्य लाभ मिल सके, इसके लिए जाति आधारित जनगणना कराने की मांग लगातार उठती रही है। खास तौर पर राज्य की नियुक्तियों में ओबीसी को आरक्षण के मामले में विधानसभा में स्वर उठते रहे हैं। सत्ता पक्ष के विधायक भी इस मुद्दे पर सदन में और सदन के बाहर अपनी आवाज उठाते रहे हैं।

कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व खुलकर इस मामले का समर्थन कर रहा है। इसलिए आने वाले समय में झारखंड में भी जातीय जनगणना करायी जाएगी इसकी प्रबल संभावना है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सताधारी गठबंधन अपने पक्ष जातीय गणित को सेट करने के लिए यह कदम उठा सकता है। झारखंड भाजपा ने इस मुद्दे पर अभी अपना स्टैंड क्लियर नहीं किया है, हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि देश को आर्थिक उन्नति की जरुरत है और देश के लोगों की एक ही जाति है और वह है गरीबी। बहरहाल, झारखंड की सियासी फिजा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अब तक बहुत ही सधी हुई चाल चली है और विपक्ष के हर प्रहार को कुंद करने का भरसक प्रयास किया है। वहीं, विपक्षी भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी भ्रष्टाचार, अपराध और धर्मांतरण के मुद्दे पर सरकार दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

हेमंत सोरेन गुजर रहे राजनीति के सबसे मु्श्किल दौर से
2019 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जेएमएम की अगुवाई में पांचवीं बार सरकार बनी और हेमंत सोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। जेएमएम की यह अब तक की सबसे लंबी चलने वाली सरकार है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि इस सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन को अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है।
खनन घोटाले में ईडी की पूछताछ, खनन लीज पट्टा मामले में चुनाव आयोग से लेकर अदालतों तक में सुनवाई, विधानसभा सदस्यता पर संकट, राजभवन से टकराव, भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग में करीबियों की गिरफ्तारी जैसे मामलों के चलते वह वर्ष 2022 में कई बार गंभीर मुश्किलों में घिरते दिखे। कई बार तो ‘कुर्सी अब गई, तब गई’ वाली हालत बनती दिखी, लेकिन, इन तमाम मुश्किलों के बीच उन्होंने सियासी मोर्चे पर शानदार स्कोर किया। वर्ष 2023 में भी हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी के लिए कानूनी मोर्चे पर चुनौतियां बनी रहेंगी। खनन पट्टा, शिबू सोरेन की संपत्ति की जांच जैसे मामले अदालतों में हैं। मनी लांड्रिंग में ईडी की जांच में अभी कई पन्ने खुलने बाकी हैं।

ईडी-सीबीआई की रेड पर सीएम हेमंत सोरेन ने उठाए सवाल
हेमंत सोरेन ऐसी चुनौतियों का सामना करने को तैयार दिखते हैं। बीते 28 दिसंबर को पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में ईडी मुझे भी गिरफ्तार कर ले। षड्यंत्रकारी ताकतों ने जब मेरे पिता शिबू सोरेन को गिरफ्तार कर जेल भेजा था तो मैं किस खेत की मूली हूं। लेकिन मैं ऐसे षड्यंत्रों से नहीं घबराता। आदिवासी के इस बेटे को डराने की कोई भी साजिश सफल नहीं होगी। जब बीजेपी राजनैतिक स्तर पर हमसे लड़ नहीं पा रही है तो, हमारे पीछे ईडी-सीबीआई को लगा दिया गया है। लेकिन हमें अपने काम और जनता पर विश्वास है। हमने बीजेपी को पहले ही राज्य में हाशिए पर पहुंचा दिया है। दरअसल, यह सच है कि हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा बीते कुछ महीनों में लिए गए जनप्रिय फैसलों की बदौलत झामुमो ने राज्य में सियासी तौर पर कम्फर्ट बढ़त हासिल कर ली है।

इन फैसलों ने राज्य में जेएमएम की बढ़ाई साख
झारखंड में 1932 के खतियान (भूमि सर्वे) पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी, ओबीसी-एसटी-एससी आरक्षण के प्रतिशत में वृद्धि, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विस्तार न देने की तीस वर्ष पुरानी मांग पर सहमति, राज्यकर्मियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम, आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं के वेतनमान में इजाफा, पुलिसकर्मियों को प्रतिवर्ष 13 माह का वेतन, पारा शिक्षकों की सेवा के स्थायीकरण, सहायक पुलिसकर्मियों के अनुबंध में विस्तार, मुख्यमंत्री असाध्य रोग उपचार योजना की राशि पांच लाख से बढ़ाकर दस लाख करने, पंचायत सचिव के पदों पर दलपतियों की नियुक्ति जैसे फैसलों से सरकार ने अपनी लोकप्रियता का सेंसेक्स बढ़ाया है।

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