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किसानों के लिए खुशखबरी, कम लागत में अच्छी कमाई का जरिया है जैविक खेती

सुल्तानपुर: रासायनिक खाद के प्रयोग से की जाने वाली खेती के उत्पादों से लोग कतराने लगे हैं। विशेषकर कोरोना संक्रमण के बाद लोग अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने की ओर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ना लाजमी है।

जिसके चलते जैविक खेती की तरफ किसानों का रुझान भी बढ़ा है। अब किसान जैविक खेती के साथ गौशाला का काम भी कर रहे हैं। जैविक खेती से आय दो गुनी होने के साथ-साथ पौष्टिकता से भरपूर फसलें तैयार हो रही हैं।

जैविक खेती जीरो बजट प्राकृतिक खेती है। किसान घर पर ही देसी तरीकों से खाद और कीटनाशक दवाइयां तैयार कर रहे हैं। इस विधि में नाम मात्र की लागत आती है। इन तरीकों को अपनाकर किसान न सिर्फ शुद्ध अनाज का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अपनी खेती की लागत बहुत कम कर रहे हैं। इससे इनकी मिट्टी उपजाऊ हो रही है और इनका खानपान बेहतर हो रहा है।

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गौशाला के साथ जैविक खेती से लाभ ही लाभ

जिले के धंमौर निवासी किसान रघुवंश भूषण प्रताप सिंह ने वैसे तो इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। कुछ वर्षों तक प्राइवेट नौकरी भी की। नौकरी में मन नहीं लगा घर पर अपने खेत में एक गौशाला खोल दी। गौशाला से दूध का उत्पादन तो करते ही हैं इसके अलावा जैविक विधि से खेती कर कम लागत में अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।

रघुबंश सिंह ने बताया कि जैविक विधि से खेती करने के कई फायदे हैं। पहला यह कि लागत पूरी तरह से कम हो जाती है। दूसरी बात यह है कि रासायनिक खादों के प्रयोग न होने के कारण फसल पौष्टिकता से भरपूर होती है। कीटनाशक का भी प्रयोग नहीं होता है।

श्री सिंह ने बताया कि इस बार धान की फसल हमारे शरीर के बराबर हुई थी। पैदावार अच्छी हुई है। इसके पहले फसलों पर रासायनिक खादों, दवाओं के प्रयोग करने से फसल की लागत ही बहुत अधिक हो जाती थी। अब लागत कम होने के कारण आय में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।

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जैविक खाद जीवामृत कैसे करें तैयार

रघुवंश भूषण ने बताया कि एक ग्राम जीवामृत में लगभग 700 करोड़ से अधिक सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। ये पेड़-पौधों के लिए कच्चे पोषक तत्वों से भोजन तैयार करते हैं। इसे तैयार करने के लिए 10 किलो गोबर, 5-10 लीटर गोमूत्र, दो किलो गुड़ या फलों के गूदों की चटनी, एक से दो किलो किसी भी दाल का बेसन, बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की 100 ग्राम मिट्टी।

इन सभी चीजों को 200 लीटर पानी में एक ड्रम में भरकर जूट की बोरी से ढककर छाया में 48 घंटे के लिए में रख देते हैं। मिश्रण को हर दिन चलाना है। इतना जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त हैं। यह घोल सात दिन के लिए ही उपयोगी होता है।

इसे सिंचाई करते समय पानी के साथ खेतों में डालना है। जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है जो पौधों की वृद्धि और विकास में उपयोगी है। इससे जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, फसल में रोग नहीं लगते हैं।

पंचगव्य के उपयोग से खेत में नहीं लगेंगे कीट-पतंग

श्री सिंह ने बताया कि पांच किलो गोबर, 500 ग्राम देसी घी को मिलाकर मटके में भरकर कपड़े से ढक दें। इसे सुबह-शाम चार दिन लगातार हिलाना है। जब गोबर में घी की महक आने लगे तो तीन लीटर गोमूत्र, दो लीटर गाय का दूध, दो लीटर दही, तीन लीटर गुड़ का पानी, 12 पके हुए केले पीसकर सभी को आपस में मिला दें।

इस मिश्रण को 15 से 20 दिन हर दिन मिलाएं। एक लीटर पंचगव्य के साथ 50 लीटर पानी मिलाकर एक एकड़ खेत में उपयोग किया जा सकता है। यह मिश्रण छह महीने तक खराब नहीं होगा। इसके उपयोग से फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ती है, कीट-पतंग भाग जाते हैं।

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