लॉकडाउन के हमारे गुमनाम नायक
मुम्बई: भारत मे लॉक डाउन हुए 50 दिन पूरे हो चुके हैं। हम सब जानते हैं कि आज इस लॉक डाउन के वक्त में पुलिस, डाक्टर, नर्स, सफाई कर्मि यह सब हमारे नायक है। हम हमेशा इनकी ही बात करते हैं, तारीफ करते है, इसमे कोई शक भी नहीं है कि इन सबके काम सचमुच काबिल-ए-तारीफ़ है। कल जब लॉक डाउन खत्म होगा तो प्रशासन और समाज इनका अभिनंदन करेगा,इनको बधाईयाँ देगा।
आज आपको मै कुछ गुमनाम नायकों के बारे में बताना चाहता हूँ। कल जब लॉकडाउन खत्म होगा तो न समाज और न प्रशासन या फिर हम ही इनको अभिनंदन, बधाई या फिर शाबाशी नहीं दे रहे होगे या फिर हमे ये गुमनाम नायक याद भी न रहें?
आप जानते हैं, ये गुमनाम नायक कौन है? ये आज हर घर मे है, जी हाँ …मै मेरे, आपके, हमारे बच्चो की बात कर रहा हूँ। हमारे गुमनाम नायक है…हमारे बच्चे। जो इस लॉकडाउन के समय रोज हमारे आप पास मंडराते है लेकिन हम उनको पहचान नहीं पा रहे हैं। हम उन पर ध्यान नही देते। हमारे बच्चे ही हमारे गुमनाम नायक है, हमारे हीरो है।
मेरे भी दो बच्चे है। बेटी तो थोडी शांत है,गंभीर है लेकिन बेटा बहुत शरारती है, शरीर में जैसे कोई स्प्रिंग लगा है, एक जगह तो टिकना जैसे जानता ही नहीं है। दोनो आपस में दिन भर गुत्थम-गुत्थी किये रहते हैं, मेरा मनोरंजन होता रहता है। इनकी हालत ऐसी है कि दोनों को एक दुसरे के साथ भी नही रहना है,मगर एक दुसरे के बगैर भी नही रहना है। एक दुसरे के जानी दोस्त भी है तो कभी एक दुसरे के जानी दुश्मन भी बन जाते हैं।
जब से लॉकडाउन हुआ है, इन्होने अपने कदम घर की देहलिज के बाहर तक नहीं रखे हैं, शुरुआत में थोडा परेशान तो हुए थे लेकिन अब बखूबी उन्होंने लॉकडाउन के साथ एडजस्टमेंट कर लिया है हमारे ये बच्चे जो दिन भर धमा-चौकड़ी मचाए रखते थे, हमारी नाक मे दम कर देते थे, घर में एक पल के लिए इनके पांव न टिकते थे, हमेशा शोर मचाते थे, हर वक्त खेलने के लिए घर से बाहर भागे रहते थे, बार-बार बुलाने पर भी घर नहीं आते थे तो डांट डपट कर बुलाना पडता था, वक्त बे वक्त चॉकलेट, खिलौनो के लिए जिद्द मे मचल जाते हैं, अपने शोर से माहौल को गुजायमान रखते थे, झगड़ा-मारपीट, ओरहन, निवेदन, प्रतिवेदन से हमारा सर खा जाते थे! मीठा, चटपटा, चॉकलेट, नमकीन खाने के लिए हमेशा जिनकी जीभ लपलपाती थी, अब मन मसोर कर रहते हैं आज शांत हो कर एक जगह घर मे बैठे हैं, टीवी या मोबाइल फोन से चिपके अनमने होकर अपना समय व्यतीत कर रहे है। दिल तो आज भी उनका शरारते करने को करता है, खेलने को करता है लेकिन उनके खेलने के लिए घर का मैदान छोटा है, खोटा है। न बाहर जा सकते हैं, ना उनके दोस्त ही बाहर से आ सकते हैं। आप सोच भी नही सकते हैं कि वे किस दौर से गुजर रहे हैं। हम तो बडे है, वयस्क है, तथाकथित समझदार हैं, जिंदगी से जूझना जानते हैं, जूझते भी है लेकिन ये तो मासूम बच्चे है, ये कुछ नही जानते फिर भी जुझ रहे हैं, लड रहे हैं।
इस वक्त अवसाद (डिप्रेशन) मे जाने का सबसे ज्यादा खतरा किसको है, आप जानते हैं?…हमारे बच्चो को ..जी हाँ ….क्यो कि उनको उनका प्राकृतिक माहौल नही मिल पा रहा है। उनको धमचौकडी करने को नही मिल पा रहा है। एक असहाय पंक्षी की तरह घर के पिंजरे में कैद है, उस पर बात बे बात हमारी डांट सुनते हैं,हमारी घुडकी झेलते हैं। आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि उनके मासूम दिल पर क्या गुजरती होगी? कितने उदास हो जाते होंगे, टूट जाते होंगे। जब अपने माता-पिता से भी उनको भावनात्मक सहारा नहीं मिलता होगा,वो भी तब जब वे अपने जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं।
आपको पता है, एक माता—पिता होने के नाते हमे इस वक्त उनके साथ क्या करना चाहिए? मैं अपने बच्चो के साथ क्या करता हूँ? मैं अपने बच्चों के साथ बच्चा बन जाता हूँ, दिनभर मस्ती करता हूँ, उनके जैसा बनने की कोशिश करता हूँ। हम कैरम, लूडो खेलते हैं। उनको कभी पढने के लिए नहीं कहता हूँ, वैसे भी मैं अपने बच्चों पर पढाई करने के लिए कभी दबाव नहीं बनाता हूँ, कभी नहीं लेकिन उनको रोज कोई ना कोई प्रेरक कहानी जरूर सुनाता हूँ, उनका उत्साह बढाता हूँ। मेरे बचपन मे मेरे पिताजी भी यही करते थे। मारना तो दूर उनको कभी डाटता नहीं हूँ, उनकी हर शरारत स्नेह से झेल लेता हूँ, वैसे मैं अपने बच्चों पर आज तक कभी हाथ नहीं उठाया हूँ। अब तक मेरा काम डांट-डपट कर ही चल जाता था, लॉक डाउन मे तो डांटने की भी गलती कभी नहीं किया।
दिन मे एक दो बार उन से प्यार से गले जरूर मिलता हूँ, उनको गले लगाता हूँ, इस दौरान उनकी पीठ सहलाता या थपथपाता हूँ, टीवी पर क्या देखना है, क्या नहीं इसका निर्णय मै उनको ही लेने देता हूँ लेकिन कितनी देर देखना है, यह निर्णय मेरा होता है।
उनके नादानी भरे चुटकुले पर हंसी न भी आ रही हो, तो भी जोर-जोर से दिल खोल कर हंसता हूँ, उनका उत्साह बढाने के लिए दोबारा सुनाने का निवेदन करता हूँ, फिर जोर-जोर से हंसता हूँ, कई बार लोट-पोट होने की एकटिंग भी कर लेता हूँ। ऐसा करने पर मेरे बच्चो को अच्छा लगता है, वे बहुत खुश होते हैं, उनकी खुशी देखते ही बनती है।
लूडो,कैरम मे जान बूझ कर कई बार हार जाता हूँ, उनको जीतने देता हूँ। मेरा घर काफी बडा है, तो हम लुका-छुपी भी खेलते हैं, पकडा-पकड़ी भी खेलते हैं, देर—रात घर की टाईट बंद करके भूत-भूत भी खेल लेता हूँ लेकिन इन खेलो मे मै जल्दी थक जाता हूँ, उम्र भी हो गई है, मानसिकता मे वयस्कता भी आ गई शायद? उनके जैसी फुर्ती नही है, बेटा नौ साल का है, बहुत फुर्तिला है। बेटी मेरे जैसी थोडी आलसी है।
आप सभी पाठकों से गुजारिश करूंगा कि जब लॉक डाउन खत्म हो तो आप अपने बच्चों का अभिनंदन करें, उनको शाबाशी दें, उनको एक छोटी सी पार्टी देकर उनका शुक्रिया अदा करें।…..मै भी ऐसा ही करने वाला हूँ।
एक सलाम, बच्चों के नाम