PAK पड़ा अकेला, अमेरिका से पड़ी डांट और चीन ने भी साथ छोड़ा
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अकेला पड़ा पाकिस्तान
उरी में हुए नृशंस आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के संबंधो में आए तनाव का खामियाजा अब पाकिस्तान भुगतता नज़र आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सार्क सम्मलेन में हिस्सा न लेने के फैसले के बाद भूटान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने भी इससे किनारा कर दिया है। एक तरफ अमेरिका ने पाकिस्तान को उसकी हद में रहने की सलाह दे डाली है तो उसके साथी चीन ने भी कश्मीर मुद्दे पर उसके साथ खड़े होने से इनकार कर दिया है। क्या कहता है अमेरिका
अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान से कहा है कि उन्हें हिंसा के जरिए नहीं बल्कि कूटनीति के जरिए आपसी मतभेद सुलझाने चाहिए। हालांकि उसने भी स्पष्ट कहा है कि पाकिस्तान को अपनी हदों का ख्याल रखना चाहिए। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट के मुताबिक अमेरिका, भारत और पाकिस्तान को प्रोत्साहित करते हैं कि वे हिंसा के जरिए नहीं, बल्कि कूटनीति के जरिए आपसी मतभेद सुलझाएं। उन्होंने कहा, हमने हिंसा, खासकर आतंकवादी हमलों की निंदा की है और पाकिस्तान से चाहते हैं कि वो इन्हें लेकर गंभीरता से विचार करें। हालांकि अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मार्क टोनर ने कहा भारत के सार्क सम्मलेन में हिस्सा न लेने के फैसले पर किसी भी तरह की टिपण्णी करने से इनकार कर दिया।
अमेरिकी मीडिया ने भी सुनाई खरी-खरी
अमेरिकी मीडिया ने पाकिस्तान को स्पष्ट सलाह दी है कि उसे भारत के संयम की परीक्षा लेना बंद कर देना चाहिए। वाल स्ट्रीट जर्नल ने स्पष्ट लिखा है कि पाकिस्तान रणनीतिक संयम की भारत की नीति को अधिक समय तक हल्के में लेने की गलती न करे और यदि इस्लामाबाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के प्रस्ताव को खारिज कर देता है तो यह देश को अछूत राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम होगा।वाल स्ट्रीट जर्नल में कल एक लेख में कहा गया, मोदी अभी संयम बरत रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान लगातार इसे हल्के में लेने की गलती न करे। यदि सहयोग का मोदी का प्रस्ताव ठुकरा दिया जाता है तो यह पाकिस्तान को पहले से भी अधिक अछूत राष्ट्र बनाने की दिशा में एक कदम होगा। अखबार के मुताबिक अगर पाकिस्तानी सेना सीमा पार हथियार एवं आतंकी भेजना जारी रखती है तो भारत के प्रधानमंत्री के पास कार्रवाई करने के लिए मजबूत वजह होगी। अखबार ने ये भी चेतावनी दी है कि आतंकवाद के मुददे पर पाकिस्तान कांग्रेस और पहले की भाजपा सरकारों जैसे जवाब की उम्मीद न रखें, इस बार मामला गंभीर हो सकता है।स्टिम्सन सेंटर के साउथ एशिया कार्यक्रम के उपनिदेशक समीर लालवानी ने फॉरेन अफेयर्स में प्रकाशित एक लेख में कहा कि उरी हमले के मददेनजर भारतीय नीति निर्माओं की स्वाभाविक नाराजगी एवं निराशा बड़ी सैन्य कार्रवाई के लिए गति बना रही है। लालवानी ने कहा, लेकिन इस कार्रवाई के लिए दलीलें, भले ही सही नहीं हों, लेकिन बड़ी चर्चा का विषय हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी सैन्य प्रतिक्रिया बदले की इच्छा को संतुष्ट कर सकती है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह भारत सरकार के राजनीतिक हितों, विश्वसनीयता, प्रतिष्ठा के संदर्भ में कारगर होंगी या नहीं।कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के जॉर्ज पेरकोविच ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में लक्ष्यों के खिलाफ छोटे स्तर पर जैसे को तैसा की कार्रवाई करने के बजाए भारत के लिए सबसे कारगर तरीका यह है कि वह पाकिस्तान को दंडित करने के लिए पर्याप्त राजनीतिक और आर्थिक दबाव बनाने के वास्ते शेष दुनिया को राजी करे ।मोदी की तारीफ कर रहा है अमेरिकी मीडिया
वाल स्ट्रीट जर्नल और न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाकिस्तान के खिलाफ जल्दबाजी में कोई भी सैन्य कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लेने के लिए मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि हालांकि उन्होंने सैन्य कार्रवाई नहीं की लेकिन उन्होंने इसकी जगह संकल्प लिया कि यदि पाकिस्तानी सेना आतंकवादी समूहों का समर्थन करना बंद नहीं करती है तो वह पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करने के लिए कदम उठाएंगे। अखबारों के मुताबिक मोदी अब 1960 की सिंधु जल संधि को रद्द करने पर विचार कर रहे हैं जो सिंधु नदी के जल पर पाकिस्तान के अधिकारों की रक्षा करती है। इसके अलावा मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने का फैसला भी एक कड़ा संदेश देता है। पाकिस्तान को 1996 में यह दर्जा दिया गया था लेकिन भारत के लिए अभी तक उसका व्यवहार नहीं बदला है।