पहली बार श्रद्धालुओं को नहीं मिला मंदिर में प्रवेश, ऑनलाइन कराए जा रहे दर्शन
उज्जैन: उज्जैन में नागपंचमी के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर के मंदिर में द्वितीय तल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट शुक्रवार मध्यरात्रि को खोले गए और महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विनीत गिरी महाराज के सान्निध्य में भगवान नागचंद्रेश्वर की पूजा-अर्चना की गई। पहली बार मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं दिया गया है। लोगों को भगवान नागचंद्रेश्वर के अपने घरों में ही ऑनलाइन दर्शन कराये जा रहे हैं।
बता दें कि महाकालेश्वर मंदिर के द्वितीय तल पर श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर के पट साल में एक बार चौबीस घंटे सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलते हैं। हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है, लेकिन 300 साल में पहली बार यहां श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया है। कोरोना के चलते श्रद्धालुओं की सुरक्षा, शासकीय अनुदेशों के अनुपालन, भौतिक दूरी बनाये रखने व अन्य एसओपी को दृष्टिगत रखते हुए आम लोगों को अपने घरों से ही विभिन्न प्रसार मध्यमों लोकल केबल, फेसबुक पेज, मंदिर की वेबसाईट, ट्विटर व विभिन्न चैनलों के माध्यम से भगवान नागचन्द्रेश्वर के दर्शन कराए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि नागचन्द्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा स्थापित है, प्रतिमा में फन फैलाए नाग देवता के आसन पर भगवान शिव -पार्वती बैठे हैं। बताया जाता है कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान श्री भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजित हैं। साथ में दोनों के वाहन नंदी एवं सिंह भी विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं। कहते हैं कि यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। नागपंचमी के अवसर पर मंदिर के पट शुक्रवार की रात्रि 12 बजे पट खुले और इसके बाद विशेष पूजा-अर्चना हुई।
नागपंचमी पर्व पर भगवान नागचन्द्रेश्वर की प्रथम पूजा पंचायती महानिर्वाणी अखाडे के महंत विनीत गिरी एवं कलेक्टर व महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति अध्यक्ष आशीष सिंह द्वारा संपन्न कराई और अभिषेख भी किया गया।
ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि करीब 300 साल पहले सिंधिया राजवंश ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इसके बाद से ही मंदिर में उत्सव आदि परंपराओं की शुरुआत मानी जाती है। भगवान महाकाल की विभिन्न सवारी और नागपंचमी पर नागचंद्रेश्वर मंदिर में साल में एक बार भक्तों के प्रवेश की परंपरा भी इन्हीं में से एक है, लेकिन इस बार कोरोना के कारण यहां भक्तों को प्रवेश नहीं दिया गया है।