राष्ट्रभक्ति केवल भावना नहीं, जीवन व्यवहार भी है
स्तम्भ: सन् 1983 से संघ परिवार में हममें से कइयों के अभिभावक श्री यशवंत राव केलकर ने बताया था कि “ संघ, संघ परिवार के बाद संघ महापरिवार तक की दूरी तय करना है।” ऐसे सभी लोग या समूह जो समाज के अंतिम हिस्से के हक़ और हित के लिये रचनात्मक हैं या आंदोलनात्मक तरीकों से काम कर रहे हैं और शांतिपूर्ण कार्यपद्धति पर आग्रह रखते हैं, वे संघ महापरिवार के अंग माने जाने चाहिये। उनसे आदरपूर्वक संवाद स्थापित करने की जरुरत है।
उसी प्रकार यशवंत राव जी संघ स्वयंसेवकों की तीन किस्में बताते थे।
पहली श्रेणी में ऐसे स्वयंसेवक हैं जो संघ के नहीं है जैसे स्वामी विवेकानंद, ऋषि दयानंद, वीर सावरकर, महात्मा गाँधी आदि जो कभी संघ की शाखा मे नही गए, गणवेश नही पहना, गुरुदक्षिणा नही की पर देशभक्ति, त्यागपूर्ण जीवन मे किसी भी स्वयंसेवक से कमजोर नही माने जायेंगे। दूसरी श्रेणी मे वैसे लोग है जो संघ की शाखा से संस्कार पाए हैं और उन्ही संस्कारों के प्रकाश में उनका जीवनयापन रहा है।
दुर्भाग्य से ऐसी तीसरी श्रेणी मे यत्रतत्र दिखती है जिसमे ऐसे लोग है जो अपने को संघ का स्वयंसेवक कहते है पर उनके जीवन में स्वयंसेवक का जीवन व्यवहार अत्यंत क्षीण है।
पहली श्रेणी को “वे स्वयंसेवक हैं, संघ के नहीं” ऐसा कहते थे। दूसरी श्रेणी को वे कहते थे “स्वयंसेवक है संघ के भी हैं।” तीसरी श्रेणी को वे “स्वयसेवक नहीं, संघ के हैं, ऐसा श्रेणीकरण वे करते थे।”उनका निर्देश रहता था कि पहली और दूसरी श्रेणी पर ध्यान दो, तीसरी के प्रति उत्साह न दिखाओ।