आईना देखकर ग़ुरूर फज़ूल, बात वो कर जो दूसरा न करे
मुज़्तर खैराबादी के इस शेर को हकीकत का अमलीजामा पहनाने वाले एक ख़ास सख्शियत की याद आ गयी। दरअसल साल 2018 मेरे मुम्बई प्रवास का दौर था। 2019 के लोकसभा चुनाव की आहट जोरों पर थी, फ़िल्म इंडस्ट्री भी इससे अछूती न थी। तमाम छोटे छोटे प्रोड्यूसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंचवर्षीय कार्यों को केंद्र में रखकर अपने प्रोजेक्ट डिज़ाइन कर रहे थे।
ऐसे ही एक प्रोड्यूसर का मेरे पास भी कॉल आया कि मैं कुछ दमदार लिखकर दूं। मैं पार्टी बेस पॉलिटिकल राइटिंग नहीं करता था सो मैंने उन्हें मना कर दिया। किन्तु फ़ोन वार्ता के दौरान उसने मुझे रिसर्च के लिए जो कुछ नाम सुझाये उसमें एक नाम जनकवि हलधर नाग का था। इस नाम के साथ जो एक शार्ट डिस्क्रिप्शन बताया गया था उसने मेरे मन में बड़ी उत्सुकता पैदा कर दी थी।
मैंने हलधर नाग के बारे में जब जानना शुरू किया तो पन्ना दर पन्ना मैं हैरानी से भरता चला गया था। आज इस सावन मास की खूबसूरत संगीतमय झमाझम बारिश में न जाने कैसे कैसे ख़्यालों से गुज़रते हुए मेरा मन जनकवि हलधर नाग पर जा टिका। सावन जैसे रूहानी मौसम में इस तरह की यादें बेतुकी लगती हैं लेकिन हैदर अली आतिश का ये खूबसूरत शेर
“अजब तेरी है ऐ महबूब सूरत,
नज़र से गिर गए सब ख़ूबसूरत।।”
मेरी मनोदशा को पूर्णतयः व्यक्त करता है।
शक्ल से बदसूरत, दांत बेतरतीब और भद्दे, खुले खुले लंबे बाल तन पर कम से कम कपड़ा, पांव तो एक दम नंगा। ये आदमी देखा गया साल 2016 में राष्ट्रपति भवन प्रांगण में। अवसर था राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह। इस बेतरतीब आदमी को देखकर वहां मौजूद वेल मेंटेन सभी लोग हैरान थे। ये आदमी भी हैरान था सबको देखकर।
तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान दौड़ते हुए इस आदमी के पास आये और बोले-“हलधर बाबू, हलधर बाबू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपसे मिलने के लिए इधर ही आ रहे हैं।” सुनकर हलधर को भी थोड़ी उत्सुकता हुई सामने नरेंद्र मोदी आ चुके थे। उन्होंने हाथ मिलाते हुए हलधर से कहा “आपने ओडिशा के आकाश को और अधिक चमकदार बना दिया है हलधर बाबू।”
हलधर नाग बताते हैं जब उद्घोषक ने पुरस्कार मिलने वाले व्यक्तियों के नाम की घोषणा की तब पद्मश्री सम्मान के लिए हलधर नाग का नाम बोला गया। पद्मश्री भारत का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। उद्घोषक की पुकार पर हलधर नाग ऊपरोक्त वर्णित दशा में ही मंच पर गए तो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें एक बार नीचे से ऊपर तक देखा और श्रद्धा व सम्मान में हलधर के सामने मुस्कराए।
कोसली कवि हलधर नाग का जन्म साल 1950 में बरगढ़, उड़ीसा में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। जब हलधर तीसरी कक्षा में पढ़ते थे तब इनके सिर से पिता का हाथ हमेशा के लिए उठ गया और इनकी पारंपरिक पढ़ाई भी हमेशा के लिए बंद हो गयी। हलधर खुद का और परिवार का सिर्फ भरण करने हेतु दो वक्त की रोटी के बदले दो साल तक एक होटल में बर्तन धोते रहे। इस दशा को देखकर तत्कालीन ग्राम प्रधान का दिल पिघल गया और उन्होंने पास के कॉलेज कैंटीन में इन्हें नौकरी पर रखवा दिया।
हलधर नाग ने वहां दस साल तक नौकरी की, बर्तन धोए खाना आदि बनाया। फिर नौकरी के दौरान इनके प्रारब्ध ने इनका रिश्ता कुछ इस तरह से कॉपी किताबों से जोड़ा कि वही सिलसिला अब तक चलता चला आ रहा है। दरअसल हुआ कुछ यूं कि कॉलेज में विद्यार्थियों और उनकी ज़रूरतों को देखते हुए हलधर के मन में एक दिन विचार आया कि क्यों न एक छोटी सी स्टेशनरी खोली जाय।
दौड़ भागकर हलधर नाग ने बैंक से एक हज़ार रुपये का क़र्ज़ लेकर एक छोटी सी स्टेशनरी शुरू कर दी। एक कॉपी में उस दौरान हलधर नाग कुछ लिखते भी रहते थे। इत्तेफ़ाक़ से एक दिन एक पत्रकार महोदय कॉलेज किसी काम से आये थे और हलधर की दुकान तक आ गए। हलधर अपनी कॉपी में कुछ लिख रहे थे। पत्रकार चूंकि बड़े प्रपंची होते हैं, हर बात में पूछताछ उनका पेशा है। सो उन्होंने वहां भी वही किया। पत्रकार महोदय के आग्रह पर जब हलधर ने कॉपी दिखाई तो उसमें कोसली भाषा में कुछ लिखा था।
लोकल पत्रकार होने के नाते महोदय कोसली भी जानते थे। पत्रकार ने पढ़ा तो एक दिलचस्प कविता लिखी नज़र आयी। पत्रकार साहब उसे लेकर चले गए। अपने अखबार में उन्होंने हलधर नाग के नाम से उस कविता को छाप दिया। उसका शीर्षक दिया “डोडो बारगाछ” अर्थात एक पुराना बरगद का पेड़। कविता बहुत प्रसिद्ध हुई। अब हलधर नाग को आसपास के इलाकें में कविता सुनने के लिए बुलाया जाने लगा और इस तरह होटल में काम करने वाले हलधर बन गए जन कवि हलधर नाग।
हलधर बाबू नई नई कविताएं लिखते रहे और प्रसिद्धि की बुलंदियों को छूते रहे। कहते हैं हीरे की परख जौहरी को ही आती है। वही हुआ भी इस हीरे को बीबीसी नामक जौहरी ने परखा और इन पर एक डॉक्यूमेंट्री बना डाली और तब जनकवि हलधर नाग ओडिसा की सीमा से निकलकर अनुदित होने लगे। इनकी कविताओं पर अंग्रेज़ी अनुवाद किये गए। तमाम ख्यातियाँ इनकी झोली में आती रहीं और हलधर नाग इन ख्यातियाँ को अपने 5×7 के एक छोटे से कमरे में ढेर बनाकर रखते रहे। एक पत्रकार ने एक बार जब इनके घर जाकर साक्षत्कार किया तो इन सम्मान प्रसस्ति पत्रों को इस कदर ढेर में पड़ा देखकर हैरान रह गया।
हलधर नाग ने खुद तो पारंपरिक पढ़ाई नहीं कि है लेकिन इस प्रतिभाशाली मानव पर संबल यूनिवर्सिटी में छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। पांच रिसर्चर ने अपने रिसर्च का विषय जनकवि हलधर नाग की कविताओं को ही बनाया है। संबल यूनिवर्सिटी ने हलधर नाग के समस्त लिटरेरी कार्यों को संकलित कर हलधर ग्रंथावली के नाम से प्रकाशित भी किया है। आज भी हलधर नाग साधारण से भी साधारण बेस भूषा और रहन सहन में रहते हैं। उनके जीविकोपार्जन का मुख्य माध्यम आज भी चना और गुघुनी बेचना है।
हलधर नाग के गांव में केंद्र सरकार एक रिसर्च सेंटर स्थापित करना चाहती है। इस संबंध में जब एक पत्रकार ने जनकवि से पूछा तो वह हंसते हुये कोसली में बोले कि पता नहीं लेकिन सुना हमने भी है कि 25 लाख का कोई प्रोजेक्ट लगने वाला है। उसी पत्रकार ने पूछा कि आप इतने राजनेताओं से मिलते हैं आप अपने आर्थिक दशा को सुधारने के लिए कभी किसी राजनेता से कुछ कहते नहीं है? तो जनकवि ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया कि “जो इंसान पांव में चप्पल तक नहीं पहनता उसे किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत हो सकती है भला !”
बस यही अदा है हलधर नाग की क़ि मैं ही नहीं प्रसिद्ध व्यक्तित्व गुलज़ार साब ने भी उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए प्रोड्यूसर भारतबाला के virtual bharat चैनल के साथ मिलकर एक वीडियो बनाया है। जिसकी शुरुआत गुलज़ार साब अपने अंदाज में “मैं तुम्हारे नाम एक ख़त लिख रहा हूँ हलधर’ बोलते हुए करते हैं। ये पंक्तियां भी हलधर नाग की एक कविता है। ईश्वर से कामना है कि यूँ ही सम्मानों का सिलसिला चलता रहे और जनकवि हलधर की प्रतिभा का और सुंदर सुंदर रूप हम देख सकें।
(लेखक फ़िल्म स्क्रीन राइटर, फ़िल्म समीक्षक, फ़िल्मी किस्सा कहानी वाचक है)