हैदराबाद : तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 में वोटिंग से पहले चुनाव प्रचार उफान पर है। चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) हैट्रिक रोकने के लिए बीजेपी और कांग्रेस पूरे दम से ताकत झोंक दी है। कांग्रेस ने कर्नाटक के 75 फीसदी मंत्रियों की ड्यूटी तेलंगाना चुनाव में लगा दी है। बीजेपी की तरफ से खुद पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी लगातार रैलियों में परिवर्तन लाने की अपील कर रहे हैं। छह महीने पहले तक बीजेपी ने अग्रेसिव कैपेंन के जरिये बीआरएस पर हमले शुरू किए थे, मगर चुनाव आते-आते कांग्रेस मुकाबले में आगे बढ़ती नजर आई। वोटिंग से पहले बीजेपी ने फिर तेवर बदले और मुकाबले को ट्रायंगल बना दिया। कांग्रेस और बीजेपी दो बार लगातार सीएम रह चुके केसीआर से मुकाबले के लिए नए नेतृत्व को मैदान में उतारा है। तेलंगाना में कांग्रेस की अगुवाई रेवंत रेड्डी कर रहे हैं, जबकि बीजेपी की तरफ से सेनापति की भूमिका लक्ष्मण और बंदी संजय निभा रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि अगर कांग्रेस या बीजेपी को तेलंगाना में बहुमत मिलता है तो सीएम कौन बनेगा?
कांग्रेस और बीजेपी भले ही पूरे दम से चुनाव मैदान में उतरी है, मगर असल चुनौती नेतृत्व की है। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव का सियासी कद काफी बड़ा है। अलग राज्य की मांग को लेकर केसीआर ने डेढ़ दशक की लंबी लड़ाई लड़ी। 2009 में किया गया उनका आमरण अनशन आज भी तेलंगाना के लोगों के जेहन में है। आज भी अधिकतर समर्थक उन्हें तेलंगाना का मसीहा मानते हैं। इसका नतीजा यह रहा कि 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद केसीआर आम लोगों में लोकप्रिय हो गए। वह कमोबेश अजेय बन गए। अपनी राजनीतिक ताकत के कारण ही केसीआर 2 जून 2014 से अब तक तेलंगाना के सीएम पद पर काबिज हैं। तेलंगाना आंदोलन के 15 साल बाद भी उनकी छवि संघर्ष और जुझारू नेता की है। अपने दस साल के शासन में वह रायथू बंधु और रायथू भीमा जैसी स्कीम लेकर आए, जिसकी चर्चा 2023 के विधानसभा चुनाव में भी हो रही है। चुनाव आयोग ने अभी इस स्कीम पर रोक लगा रखी है। बीआरएस और कांग्रेस इस रोक के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि विपक्ष भी केसीआर की गेंद से ही चुनाव मैदान में चक्कर लगा रहा है।
अगर कांग्रेस या बीजेपी चुनाव जीतती है तो उसके सामने केसीआर जैसे नेतृत्व की जरूरत होगी। कांग्रेस में फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी फ्रंटफुट पर नजर आ रहे हैं, मगर पार्टी में सीएम पद के दावेदारों की लंबी लाइन है। पूर्व मंत्री के जना रेड्डी, मल्लू भट्टी विक्रमार्क, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कैप्टन एन उत्तम कुमार रेड्डी, सांसद कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी और पूर्व उपमुख्यमंत्री दामोदर राजनरसिम्हा भी सीएम की रेस में हैं। हालांकि नेतृत्व के सवाल पर कांग्रेस के नेता अभी खामोश हैं। पार्टी का कहना है कि चुनाव के बाद इसका फैसला विधायक दल तय करेगा। हालांकि ए. रेवंथ रेड्डी ने चुनाव के दौरान ही बड़ा दांव खेलकर पार्टी के भीतर सामने आए दावेदारों पर बढ़त ले ली है। रेवंथ रेड्डी दो विधानसभा सीट कोडंगल और कामारेड्डी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कामारेड्डी सीट से उन्होंने सीएम केसीआर के खिलाफ ही ताल ठोंक दी है। अगर कामारेड्डी से केसीआर को हराने में सफल हुए तो उनका कद बढ़ जाएगा। अगर हार गए तो शहीद ही माने जाएंगे। विधानसभा में एंट्री के लिए उन्होंने कोडंगल से भी पर्चा भरा है।
पिछले दो साल से केसीआर के खिलाफ संघर्ष कर रहे बीजेपी ने भी केसीआर से मुकाबले के लिए युवा चेहरों पर दांव लगाया है। बीजेपी ने वादा किया है कि अगर पार्टी को बहुमत मिलता है तो वह ओबीसी चेहरे को सीएम बनाएगी। इस वादे के मुताबिक बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बंदी संजय, प्रदेश अध्यक्ष जी.किशन रेड्डी, बीजेपी ओबीसी मोर्चा के नेता के. लक्ष्मण और हुजूराबाद के विधायक इटाला राजेंद्र रेस में हैं। इटाला राजेंद्र भी गजवेल में केसीआर को चुनौती दे रहे हैं। सीएम की रेस में बने रहने के लिए उनका जीतना जरूरी है। जबकि बंदी संजय ने दो साल तक केसीआर के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ी। 120 दिनों में 1500 किलोमीटर की पदयात्रा और हिंदुत्व के कारण ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में 48 सीटें जीतकर अपनी साख मजबूत की है। बंदी संजय एक बार फिर करीमनगर से चुनाव मैदान में उतरे हैं। तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) हैट्रिक लगाएंगे या नहीं, यह तो 3 दिसंबर को पता चलेगा। अगर नहीं लगा पाए तो तेलंगाना को नया सीएम बनना तय है।