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पेट्रोल-डीजल होंगे सस्ते! 1 फीसदी तक घट सकतीं हैं ब्याज दरें, RBI का बड़ा ऐलान

नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा आयात शुल्क (टैरिफ) में भारी बढ़ोतरी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर दिखाई देने लगा है। इस नीति का असर भारत समेत दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट के रूप में देखा गया है। चीन जैसे देशों ने ट्रम्प की कार्रवाई का जवाब देते हुए अमेरिकी उत्पादों पर भारी शुल्क लगा दिया है। इससे यह चिंता जताई जा रही है कि अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ सकती है जिसका असर दुनिया की आर्थिक रफ्तार पर भी पड़ेगा जिसमें भारत भी शामिल है।

भारत में मंदी का खतरा और सस्ती बचत की संभावना

गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से भारत की आर्थिक रफ्तार भी सुस्त हो सकती है। हालांकि इस स्थिति के एक सकारात्मक पहलू की भी संभावना है। टैरिफ युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का खतरा बढ़ सकता है और इससे बचने के लिए भारत को अपनी घरेलू मांग को बढ़ाने के उपाय करने होंगे। ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरों में कटौती करना एक प्रभावी तरीका हो सकता है।

EMI में कमी और सस्ते पेट्रोल-डीजल की उम्मीद

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने हाल ही में अपनी बैठक शुरू की है जिसमें 9 अप्रैल को फैसले की घोषणा हो सकती है। उम्मीद जताई जा रही है कि रिजर्व बैंक रेपो रेट में 0.25% की कटौती कर सकता है हालांकि यह उम्मीद अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर 27% टैरिफ लागू होने के बाद बढ़कर 0.50% तक पहुंच सकती है। अगर यह कटौती होती है तो इसका फायदा आम नागरिकों को सस्ती ईएमआई और लोन के रूप में मिलेगा।

इसके अलावा वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट के कारण पेट्रोल और डीजल के दाम घटने की संभावना है। बीते हफ्ते में क्रूड के दाम 12% घट चुके हैं जिससे ऑयल मार्केटिंग कंपनियों की लागत कम हुई है। सरकार पर भी पेट्रोल और डीजल के दाम घटाने का दबाव बढ़ सकता है ताकि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाया जा सके। इससे उन चीजों की कीमतें भी कम हो सकती हैं जिनकी ढुलाई के लिए तेल का इस्तेमाल होता है।

रिजर्व बैंक पर दबाव और महंगाई में राहत

अर्थशास्त्रियों के मुताबिक भारतीय उत्पादों पर चीन और अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने से भारतीय मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को 0.3% का घाटा हो सकता है और सर्विसेज एक्सपोर्ट में 0.2% की कमी आ सकती है। इसके कारण भारतीय जीडीपी की ग्रोथ को 0.5% का झटका लग सकता है। इस मंदी से बचने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक पर दबाव बढ़ सकता है कि वे घरेलू खपत को बढ़ाने के उपाय करें जैसे कि सस्ता लोन उपलब्ध कराना।

हालांकि महंगाई एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि ब्याज दरों में कटौती के परिणामस्वरूप महंगाई बढ़ने का खतरा हो सकता है लेकिन एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महंगाई दर अक्टूबर से दिसंबर तक 4% से नीचे रह सकती है जिससे रेपो रेट घटाने की राह आसान हो सकती है।

ब्याज दरों में कटौती से अर्थव्यवस्था को मिल सकता है संजीवनी

दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर अमेरिका और अन्य देशों ने अपनी टैरिफ नीति जारी रखी तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी का खतरा बढ़ सकता है। इस मंदी से बचने के लिए भारत को घरेलू मांग को बढ़ाने के उपाय करने होंगे और इसके लिए सबसे आसान तरीका ब्याज दरों में कटौती है।

रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक रेपो रेट में और कटौती कर सकता है जिससे बैंकों के पास ज्यादा कैश आएगा और लोन सस्ते होंगे। गोल्डमैन सैक्स का मानना है कि बैंकों में कैश की स्थिति सुधरने से भारतीय अर्थव्यवस्था को 0.10% का सपोर्ट मिल सकता है। वहीं कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भी भारत की आर्थिक वृद्धि को 0.1% का अतिरिक्त समर्थन मिल सकता है।

भारत की आर्थिक स्थिति पर टैरिफ वॉर का गहरा असर पड़ सकता है लेकिन रिजर्व बैंक की तरफ से ब्याज दरों में कटौती और सस्ती तेल की उम्मीद से भारतीय नागरिकों और अर्थव्यवस्था को राहत मिल सकती है। समय के साथ सरकार और रिजर्व बैंक के फैसले इस मंदी के दौर से निकलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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