स्तम्भ

राजधर्म निभाएं कैप्टन अमरिंदर

राकेश सैन

शास्त्रों ने अयोग्य राजाओं के तीन लक्षण बताए हैं, किंकर्तव्यविमूढ़ता यानि जो हालत कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन की थी, कर्तव्यविमूढ़ता की श्रेष्ठ उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह कहे जा सकते हैं जो अपने सहयोगियों के भ्रष्टाचार पर मौन धारण किए रहे और धर्मविमूढ़ता की ताजा मिसाल हैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह। पंजाब धीरे-धीरे अराजकता की ओर बढ़ रहा है और कैप्टन अमरिंदर अपने को किसान हितैषी दिखाने की लालच में अपनी संवैधानिक जिम्मेवारियों की तरफ पीठ करके बैठे दिखाई दे रहे हैं।

राजधर्म निभाएं कैप्टन अमरिंदर

केंद्रीय कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में पंजाब में आराजकता की स्थिति बनती दिख रही है। उक्त पंक्तियां लिखे जाने तक पंजाब में 1624 मोबाइल टावर पूरी तरह क्षत्रिग्रस्त किए जा चुके हैं और बहुत सा सामान खुर्दबुर्द हो चुका है। प्रदर्शनकारी एक निजी टेलीकॉम कंपनी के शोरूमों व मॉल्स को घेर रहे हैं और पतंजलि के बिक्री केंद्र भी घेरने की बात की जा रही है। केवल इतना ही नहीं राज्य की राजनीति में पहले ही अछूत घोषित हो चुकी भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों पर नक्सली अंदाज में हमले हो रहे हैं। राज्य सरकार इन घटनाओं पर मौन धारण किए हुए है और पुलिस कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी लिपाई पुताई हो रही है।


राजनीति में मिथ्या कथन व मिथ्या सिद्धांत स्थापित करने के क्या दुष्परिणाम निकल सकते हैं उसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पंजाब में जीओ कम्पनी के मोबाइल टावरों से हो रही तोडफ़ोड़, रिलान्यस कम्पनी के केन्द्रों की हो रही घेराबन्दी। भारी भरकम चुनावी चंदे लेने के बावजूद उद्योगपतियों को राजनीतिक बुराई और गरीब विरोध प्रचारित करने का काम लगभग हर राजनीतिक दल ने किया है। वर्तमान में अंबानी-अडानी को इस बुराई का प्रतीक बना कर पेश किया जाता है। ऐसा करते समय नेता भूल जाते हैं कि उनके कहे का असर नीचे तक होता है और जनसाधारण उसी दृष्टि से व्यवहार करते हैं। केंद्र सरकार के नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर भी यही दुष्प्रचार किया जा रहा है कि यह सबकुछ इन्हीं अंबानियों-अडानियों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है। हालांकि उक्त उद्योगपतियों का कृषि सुधार कानूनों से कोई लेना देना नहीं परंतु राजनीतिज्ञों द्वारा स्थापित मिथ्या सिद्धांतों व दुष्प्रचार का ही असर है कि इन कंपनियों के आधारभूत ढांचों से तोडफ़ोड़ की जा रही है और इनके खिलाफ अभियान चलाए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि मोबाइल टावरों पर तोडफ़ोड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके बावजूद तोडफ़ोड़ का सिलसिला नहीं रुक रहा है। पंजाब में जिओ के 9000 टावर हैं और इन्हें निशाना बनाए जाने के कारण शिक्षा क्षेत्र सहित दुकानदार, व्यापारी और वर्क फ्रॉम होम कर रहे कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। सबसे ज्यादा समस्या नेट बैंकिंग को लेकर आई है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लोग परेशान हुए हैं। दूरसंचार सेवाओं में बाधा पहुंचाए जाने पर अपेक्स इंडस्ट्री बाडी सेलुलर आपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सीओएआइ) के डायरेक्टर जनरल एसपी कोचर ने कहा कि दूरसंचार सेवाएं करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन हैं। अन्य क्षेत्रों के साथ साथ कोविड-19 के कठिन समय में आनलाइन सेहत सलाह लेने वाले लोग भी शामिल हैं।

निवर्तमान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हर साल पूंजीनिवेश दिवस मनाते और देश के प्रसिद्ध उद्योगपतियों, व्यवसाइयों को राज्य में निवेश करने को प्रोत्साहित करते रहे हैं। यह क्रम आज भी जारी है परंतु सवाल पैदा होता है कि राज्य में अराजकता यूं ही जारी रही तो कौन उद्योगपति राज्य में निवेश करना चाहेगा ? राज्य में दो दशकों तक चले खालिस्तानी आतंक की काली आंधी ने देश के सीमांत क्षेत्र को विकास की दृष्टि से इतनी करारी चोट मारी है जिससे राज्य के लोग आज भी कराह रहे हैं। इस साल कोरोनाकाल के बाद शुरू हुए किसान आंदोलन ने दाद में खुजली का काम किया। पहले तो किसान रेल पटडिय़ों पर धरना दिए बैठे रहे जिससे उद्योग जगत के साथ-साथ सामान्य व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा और अब तोडफ़ोड़ की बढ़ रही घटनाओं ने व्यवसाइयों में भय की लहर पैदा कर दी है परंतु मुख्यमंत्री संकट को देख कर रेत में सिर छिपाने का प्रयास कर रहे हैं।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा को पंजाब में लगभग बंगाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की आड़ में कुछ शरारती तत्वों ने गांवों की सीमाओं पर बोर्ड व पोस्टर लगा दिए कि इस गांव में भाजपाईयों का आना मना है। लोगों की इस असंवैधानिक गतिविधियों को नजरंदाज करने का परिणाम यह हुआ कि आज सरेआम भाजपाईयों को निशाना बनाया जा रहा है, सोशल मीडिया पर उन्हें भारी-भरकम गालियां निकाली जा रही हैं। पंजाब भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के काफिले पर हमला हो चुका है। 25 दिसंबर को वाजपेयी जी की जयंती पर बठिंडा में कुछ लोगों ने नक्सली शैली में समारोहस्थल पर आतंक फैलाया और बहुत से स्थानों पर इन समारोहों का विरोध हुआ। संगरूर में कुछ प्रदर्शनकारियों ने विश्व हिंदू परिषद् की बैठक के दौरान भी बवाल किया जो राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए गए धन संग्रह अभियान के तहत बुलाई गई थी।

राज्य में हो रही इस तोडफ़ोड़ को हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि कोरोनाकाल के बाद जिस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का चीन से मोहभंग और भारत के प्रति रुख हुआ है उससे संदेह पैदा होना स्वभाविक है कि बात सामान्य नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है। कोई न कोई शक्ति तो है जो भारत को अशांत व अस्थिर साबित कर उसे बदनाम करने के प्रयास में है। देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में इसी तरह की गतिविधियों से उद्योगपतियों व व्यवसाइयों को डराया धमकाया जाता रहा है और पंजाब-हरियाणा में चल रहे किसान आंदोलन में नक्सली घुसपैठ की खबरें किसी से छिपी नहीं। चाहे हर प्रदर्शनकारी नक्सली नहीं है परंतु लगता है कि वामपंथी शक्तियां किसानों के भड़के हुए आक्रोश का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर रही हैं।

इतना सब होने के बावजूद कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की अपराधियों के प्रति लुंजपुंज कार्रवाई बताती है कि वे अपने राजधर्म से विमुख हो चुके हैं। यह सर्वविदित है कि दो दिन पहले अपना 136वां जन्मदिन मना चुकी कांग्रेस पार्टी वृद्धावस्था में राजनीतिक वियाग्रा की तलाश कर रही और किसान आंदोलन में अवसर खोज रही है। यही कारण लगता है कि कैप्टन ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते जिससे कांग्रेस की छवि ऐसी बने कि वह आंदोलन को तारपीडो कर रही है। देश की नौकरशाही की यह विशेषता रही है कि वह अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा उनके इशारों से पहले ही भांप लेती है और यही कारण है कि राज्य में हुड़दंग मचाने वालों के प्रति पुलिस का रवैया आंख मूंदे गांधी जी के त्रिमूर्ति बंदर जैसा रहा है।

पुलिस केस तो दर्ज कर रही है परंतु अनाम लोगों पर और जाहिर है जब केस ही अनाम लोगों पर हो तो गिरफ्तारी किसकी होती होगी। पंजाब देश का सीमांत राज्य है और सीमावर्ती क्षेत्र सदैव राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रों के अड्डे माने जाते हैं। पांच नदियों के नाम पर बना पंजाब पहले ही नक्सलवाद, खालिस्तानी आतंकवाद और अलगाववाद की आग झेल चुका है। दुखद तो यह है कि यह आग बुझी हुई जरूर दिख रही है परंतु राख में कभी-कभी चिंगारियां भी महसूस होती रही हैं। ऐसे में अगर अपराधियों व तोडफ़ोड़ करने वालों से नरमी दिखाई जाती रही और राजधर्म की उपेक्षा हुई तो इसका दुष्परिणाम भुगतने के लिए हमें तैयार रहना होगा।

(यह लेखक के स्वतंत्र विचार है)

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