–उदय चौहान
झारखंड में लोकसभा के चुनाव की तैयारियां जोर पकड़ने लगी हैं। एनडीए ने सभी 14 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। उधर, इंडिया गठबंधन भी जोर-शोर से सीट शेयरिंग के पेंच को सुलझाने और उम्मीदवारों की घोषणा करने की कवायद में जुटा है। इन सब के बीच सूबे में एक बार फिर राजनीति में परिवारवाद को लेकर सवाल उठने लगे हैं। देश की राजनीति में हाल के वर्षों में परिवारवाद चर्चित मुद्दा रहा है। पहले भाजपा और इसके बाद विपक्ष भी इस मुद्दे को उठा रहा है लेकिन परिवारवाद से कोई भी दल या राज्य अछूता नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड में भी कई नेता अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत बचाने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं लेकिन उनकी राजनीतिक पूंजी परिवार ही रही है। पारिवारिक पृष्ठभूमि ने ही इन्हें यहां तक पहुंचाया है और आगे भी यह अपने परिवार की राजनीतिक विरासत के बल पर ही आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे कुछ नेताओं की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली है।
हजारीबाग
जयप्रकाश भाई पटेल : हजारीबाग के कांग्रेस प्रत्याशी जयप्रकाश भाई पटेल को भी राजनीति विरासत में मिली है। जेपी पटेल के पिता टेकलाल महतो झामुमो के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनके देहांत के बाद पुत्र जेपी पटेल ने राजनीतिक विरासत संभाली। पहले विधायक बने, उसके बाद मंत्री और अब कांग्रेस का दामन थाम कर लोकसभा चुनाव में उतरे हैं।
मनीष जायसवाल : पहले हजारीबाग और फिर झारखंड की राजनीति में मनीष जायसवाल को नाम और पहचान पिता बादल जायसवाल से ही मिली। यह बताने की जरूरत नहीं कि बादल जायसवाल पहले भाजपा के नेता रहे, फिर बाबूलाल मरांडी के साथ झारखंड विकास मोर्चा में गए। इसके बाद भाजपा में लौट आए। मनीष जायसवाल पर भाजपा ने भरोसा जताया है और हजारीबाग लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है।
खूंटी
कालीचरण सिंह मुंडा : खूंटी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के टिकट पर दम ठोक रहे कालीचरण मुंडा को भी राजनीति विरासत में मिली है। पिता मुचिराय मुंडा अविभाजित बिहार के समय बनी झारखंड क्षेत्रीय कांग्रेस के पहले अध्यक्ष थे। भाई नीलकंठ सिंह मुंडा भी खूंटी से ही भाजपा विधायक हैं। कालीचरण मुंडा भाजपा के कद्दावर नेता अर्जुन मुंडा के खिलाफ मैदान में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने अर्जुन मुंडा को कड़ी टक्कर दी थी।
दुमका
सीता सोरेन : झारखंड के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार से आती हैं। सीता सोरेन झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन के सबसे बड़े बेटे स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। वह पति के असामयिक निधन के बाद राजनीति में आईं। शिबू सोरेन के राजनीतिक कद व संघर्ष के बल पर ही सीता भी जामा से तीन बार विधायक बनीं। अब अपनी पार्टी झामुमो को छोड़कर भाजपा के टिकट पर दुमका से प्रत्याशी बनी हैं। दुमका झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ है।
सिंहभूम
गीता कोड़ा : सिंहभूम लोकसभा क्षेत्र से इस बार कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा के टिकट से चुनाव मैदान में उतरी गीता कोड़ा को भी राजनीति विरासत में मिली है। पति मधु कोड़ा के जेल जाने के बाद उन्होंने मोर्चा संभाला। पहले विधायक बनीं, फिर 2019 में सिंहभूम से सांसद बनीं। वह इस बार फिर सांसद बनने के लिए भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
राजमहल
विजय हांसदा : विजय हांसदा राजमहल से सांसद हैं। वह इस बार फिर झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। विजय हांसदा को भी राजनीति विरासत में मिली है। पिता थॉमस हांसदा झारखंड कांग्रेस के बड़े नेता थे। वह राजमहल से सांसद और विधायक रहे। उनके निधन के बाद विजय हांसदा ने परिवार की राजनीतिक विरासत को संभाला।
कोडरमा
अन्नपूर्णा देवी : कोडरमा से भाजपा प्रत्याशी अन्नपूर्णा देवी अपने पति रमेश यादव के देहांत के बाद मजबूरी में राजनीति में आयीं। पहले राजद के टिकट पर कोडरमा से विधायक फिर मंत्री बनीं और भाजपा के टिकट से 2019 में कोडरमा से जीतकर संसद और केन्द्र की मोदी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनीं। विनोद सिंह : कोडरमा से माले प्रत्याशी विनोद सिंह पिता महेंद्र सिंह की असामयिक निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने आए। महेंद्र सिंह वामपंथी विचारधारा के कद्दावर नेता थे। राजनीति में आए विनोद सिंह ने भी अपने अलग अंदाज से पार्टी और राजनीतिक विरासत को संभाला। विनोद सिंह बगोदर विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए। इस बार कोडरमा से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
14 लोकसभा सीटों पर क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दलों में टक्कर
झारखंड में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं। बिहार से सटे इस राज्य में मुख्य मुकाबला स्थानीय पार्टियों के बीच होती है। इनमें झारखंड मुक्ति मोर्चा, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन पार्टी शामिल हैं। इनके अलावा छोटी-बड़ी दस से ज्यादा स्थानीय पार्टियां यहां चुनाव में हिस्सा लेती हैं। बता दें कि स्थानीय पार्टियों के अलावा राज्य में जेडीयू, राजद, बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम जैसी बड़ी पार्टियां भी लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारती हैं। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में मुख्य रूप से राजमहल, दुमका, गोड्डा, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद, रांची, जमशेदपुर, सिंहभूम, खुंटी, लोहरदगा, पलामू और हजारीबाग की सीटें शामिल हैं। वहीं राज्य में कुल 81 विधानसभा सीटें हैं। झारखंड वर्ष 2000 में बिहार से अलग होकर एक अलग राज्य बना था। झारखंड की सीमा उत्तर में बिहार से, उत्तर-पश्चिम में उत्तर प्रदेश से, पश्चिम में छत्तीसगढ़ से, दक्षिण में ओडिशा से और पूर्व में पश्चिम बंगाल से लगती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी का 67.8 फीसदी हिस्सा हिंदू धर्म को मानता है, 14.5 फीसदी मुस्लिम और 4.3 फीसदी आबादी ईसाई धर्म को मानती है।