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पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद सियासी हलचल तेज

नई दिल्ली । पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Former Chief Minister Vasundhara Raje and Prime Minister Narendra Modi) की मुलाकात के बाद (After the meeting) सियासी हलचल तेज हो गई (Political stir Intensifies) ।

इस मुलाकात को केवल शिष्टाचार भेंट नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे भविष्य की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में इसे उस लंबे सिलसिले की अगली कड़ी माना जा रहा है, जहां मुलाकातें संकेत बनकर उभरती हैं। वसुंधरा राजे को लेकर पिछले कुछ समय से चर्चा थी कि उन्हें किसी बड़े संवैधानिक पद पर भेजा जा सकता है। वर्ष 2022 में उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में उनका नाम प्रमुखता से सामने आया था, लेकिन अंतिम क्षणों में जगदीप धनखड़ को मौका मिला।

अब धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह पद फिर से खाली हुआ है। ऐसे में पार्टी के भीतर यह विचार चल रहा है कि राजस्थान से किसी वरिष्ठ नेता को उपराष्ट्रपति बनाकर जाट समुदाय को साधा जाए। लोग कयास लगा रहे हैं कि वसुंधरा राजे और ओम माथुर इस दौड़ में शामिल हैं, लेकिन वसुंधरा राजे या उनके समर्थकों की ओर से इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया गया है।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने प्रधानमंत्री मोदी के अलावा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर और जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल से मुलाकात की। इन मुलाकातों को राज्य में चल रही विकास योजनाओं और केंद्रीय सहयोग से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री से वसुंधरा राजे की मुलाकात को पार्टी के अंदर समन्वय और संतुलन साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात दोहरे संकेत दे रही है—एक ओर यह वसुंधरा राजे की संभावित राष्ट्रीय भूमिका का संकेत हो सकती है, तो दूसरी ओर राजस्थान की राजनीति में संतुलन साधने की कवायद भी मानी जा सकती है।

वसुंधरा खेमे के नेताओं में लंबे समय से यह नाराज़गी है कि सरकार बनने के डेढ़ साल बाद भी उन्हें अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों के लिए भी यह मुलाकात अहम मानी जा रही है। जानकारों का कहना है कि वसुंधरा अपने खेमे के नेताओं के लिए हिस्सेदारी सुनिश्चित करना चाहती हैं। धनखड़ के जाने के बाद बीजेपी के लिए जाट समुदाय को साधना एक बड़ी चुनौती बन सकता है। ऐसे में पार्टी को ऐसा चेहरा चाहिए जो पूरे राज्य में प्रभाव रखता हो और जो जाट सहित अन्य प्रभावशाली समुदायों में स्वीकार्य भी हो। इस कसौटी पर वसुंधरा राजे का नाम स्वाभाविक रूप से चर्चा में आता है।

राजनीति में मुलाकातें अक्सर इत्तेफाक नहीं होतीं। मोदी और वसुंधरा की यह बैठक भी एक संकेत हो सकती है—या तो एक संभावित राष्ट्रीय जिम्मेदारी का, या फिर राजस्थान में पार्टी संगठन और सरकार के बीच नया राजनीतिक संतुलन साधने की रणनीति का। अब देखना यह है कि दिल्ली की इस मुलाकात का असर राजस्थान की सियासत में कब और कैसे दिखता है।

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