दस्तक-विशेषबिहारराज्य

सियासत की चाल

पटना से दिलीप कुमार

बिहार में विधानसभा चुनाव में अभी भले ही एक साल से अधिक का समय है, लेकिन दलों के साथ राजनेता भी अभी से अपनी राजनीतिक गोटियां सजाने लगे हैं। मुख्य रूप से भाजपा, जदयू और राजद तो पूरी तरह से चुनावी मूड में हैं। प्रदेश कमेटी की घोषणा से लेकर पदाधिकारियों का चयन इसी तरह से किया जा रहा है। नेता भी टिकट की आस में एक दल छोड़ दूसरे में जा रहे हैं। सबसे अधिक हलचल राजद में दिख रही है। हाल के दिनों में वहां से एक बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। ये पार्टी के लिए कितने खास थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें लालू का ‘हनुमान’ कहा जाता था। पूर्व मंत्री व राजद के वरिष्ठ नेता श्याम रजक ने पिछले दिनों पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दिया तो कई सवाल खड़े होने लगे। कहा जा रहा है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। तेजस्वी अपने हिसाब से बहुत सी चीजें तय कर रहे हैं। इसमें वरिष्ठों का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। इसी कारण बहुत से लोग नाराज बताए जा रहे हैं। श्याम रजक के इस्तीफे के बाद जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने जिस तरह कहा कि आगे-आगे देखते जाइए अभी और विकेट गिरना बाकी है। इससे साफ है कि जदयू से राजद के कई नेता संपर्क में हैं। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद के नाम लिखे अपने त्यागपत्र में श्याम रजक में उन पर जिस तरह तंज कसा है, उससे भी साफ है कि पार्टी में क्या चल रहा है। उन्होंने लिखा है, मैं शतरंज का शौकीन नहीं था, इसलिए धोखा खा गया। आप मोहरे चल रहे थे और मैं रिश्ते निभा रहा था। श्याम रजक ने नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए कहा कि काम तो उन्होंने किया है। आज बिहार का नाम देश में बढ़ रहा है। उसमें नीतीश का भी एक रोल है।

कभी श्याम रजक और रामकृपाल यादव की जोड़ी लालू प्रसाद के आवास में राम-श्याम की जोड़ी के नाम से मशहूर थी। रामकृपाल ने 2014 में पाटलिपुत्र से टिकट नहीं मिला तो पार्टी छोड़ दी थी। फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और लालू की बेटी मीसा भारती को हराकर लोकसभा पहुंचे थे। कुछ उसी राह पर श्याम रजक चले हैं। वैसे रजक इससे पहले भी राजद छोड़े थे। राबड़ी देवी के शासनकाल में श्याम रजक मंत्री थे। 2009 में जमुई लोकसभा सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जदयू के प्रत्याशी से हार गए थे। इसके बाद वे नीतीश कुमार के साथ चले गए। 2010 में फुलवारी से जदयू के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़कर जीते और मंत्री बने थे। बीते 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें जदयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था तो राजद में लौट गए थे। यहां वे बड़ी आस लेकर आए थे। सांसद या एमएलसी बनने की आस थी, जो पूरी नहीं हुई। वे समस्तीपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ना चाहते थे, लेकिन यह सीट बंटवारे में कांग्रेस के खाते में चली गई और उनका सपना टूट गया था। वे राजद के कार्यक्रमों में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ अगली पंक्ति में बैठते थे। इसके बाद भी किसी सदन का हिस्सा नहीं होने का उन्हें दुख था। अब अगले साल विधानसभा का चुनाव है और कहा जा रहा है कि वे फुलवारी सीट से लड़ना चाहते हैं। लेकिन समस्या यह है कि पिछली बार महागठबंधन में फुलवारी की सीट माले के हिस्से में थी। तब श्याम रजक को टिकट नहीं मिला था। इस बार भी उन्हें लग रहा था कि फुलवारी से राजद की ओर से उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा। यही कारण है कि उन्होंने पार्टी छोड़ना मुनासिब समझा।

चाचा-भतीजे पर लगाम
भाजपा चाचा पशुपति पारस और खुद को मोदी का हनुमान कहने वाले भतीजे पर संतुलन बिठाने के साथ दोनों पर लगाम कसने रखने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी के तहत काफी समय से उपेक्षा के शिकार और लोकसभा चुनाव के समय किनारे कर दिए गए राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस को उसने साधना शुरू कर दिया है। उनसे भाजपा के बड़े नेता मिलने-जुलने लगे हैं। यह ऐसे ही नहीं शुरू हुआ है। हाल के दिनों में लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान ने जिस तरह से केन्द्र सरकार को कुछ मुद्दों को लेकर आंखें दिखानी शुरू की हैं, उससे भाजपा सतर्क हो गई है। चिराग ने पहले नौकरियों में केन्द्र सरकार की लेटरल एंट्री का खुलकर विरोध किया। जब इंडिया गठबंधन के सभी दल एक सुर से इसका विरोध कर रहे थे, तब चिराग भी इसमें अपना सुर मिला रहे थे। इसके अलावा चिराग ने अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण के लिए उप वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था का विरोध भी किया। जबकि केन्द सरकार अनुसूचित जाति-जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की सुप्रीम कोर्ट की सलाह की समीक्षा कर रही थी।

केन्द्र ने इसे अस्वीकार भी कर दिया। भाजपा सबसे अधिक उस समय चिराग को लेकर सतर्क हो गई, जब उसने झारखंड चुनाव में भाजपा से कुछ सीटों की मांग की। पिछले दिनों लोजपा (रामविलास) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक रांची में हुई। इसमें चिराग ने झारखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ने की घोषणा की। लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय सचिव सह झारखंड प्रभारी अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि झारखंड की सभी 81 सीटों पर हमारी तैयारी है। गठबंधन हुआ तो हम 10 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, नहीं तो पार्टी अपना निर्णय लेगी। इस तरह देखा जाए तो चिराग पासवान ने अभी से भाजपा पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। जबकि गठबंधन में शामिल जदयू ने अभी इस तरह का कोई बयान नहीं दिया है। साथ ही सहयोगी टीडीपी व अन्य दल भी किसी मुद्दे पर भाजपा से अलग नहीं दिखे। चिराग ही इस तरह काम कर रहे हैं। उन पर लगाम लगाने के लिए चाचा पशुपति पारस को आगे बढ़ाने का काम भाजपा ने शुरू किया है। इसी रणनीति के तहत पहले भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पारस से उनके घर मिले। इसके बाद केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से पारस की मुलाकात हुई। इसके बाद माना जा रहा है कि भाजपा पारस को आगे बढ़ाने का काम करेगी। उनकी पार्टी को मजबूती देने का काम करेगी, ताकि चिराग को लेकर संतुलन बना रहे। हो सकता है कि आने वाले दिनों कुछ नई घोषणा और बात भी सामने आए।

जदयू का समीकरण
विधानसभा चुनाव को देखते हुए जदयू अपने सभी समीकरण बिठाने लगी है। नीतीश कुमार की एक के बाद एक भर्ती संबंधी घोषणाएं, जिलों का दौरा, विकास कार्यों का निरीक्षण यह बताने के लिए काफी है कि पार्टी पूरी तरह से तैयारी में जुटी है। पार्टी में जातीय समीकरण भी बिठाया जा रहा है, ताकि कोई कसर नहीं रहे। पिछले दिनों जदयू के प्रदेश नेतृत्व ने पुरानी कमेटी भंग कर 115 सदस्यीय जिस कमेटी की घोषणा की उसमें जातीय समीकरण का रंग पूरी तरह से दिखा। इसमें 10 उपाध्यक्षों की सूची में तीन और 49 महासचिवों की सूची में 10 नाम अतिपिछड़ा वर्ग से रखा गया। इसी तरह 46 सचिवों की सूची में एक दर्जन नाम अति पिछड़ा वर्ग का था। इस तरह से देखा जाए तो अति पिछड़ा पर पार्टी ने पूरा ध्यान दिया है। राज्य में पिछड़ा व अतिपिछड़ा मिलाकर इनकी आबादी करीब 63 प्रतिशत है। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने में यह बड़ी भूमिका निभाते हैं। नीतीश कुमार ने कमेटी में इस वर्ग का खास ख्याल रखा है।

इसके अलावा कमेटी में कुछ लोगों को विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना को ध्यान में रखते हुए पद नहीं दिया गया है। साथ ही कई को राष्ट्रीय कमेटी से प्रदेश की कमेटी में लाया गया है। इनमें एक नाम विधान पार्षद रवींद्र प्रसाद सिंह का है। चुनाव को ध्यान में रख उन्हें राष्ट्रीय कमेटी से प्रदेश कमेटी में लाया गया है। इसके अलावा काराकाट के पूर्व सांसद महाबली सिंह को भी प्रदेश उपाध्यक्ष का पद दिया गया। आधी आबादी के वोट को ध्यान में रखते हुए कई महिलाओं को प्रदेश पदाधिकारी बनाया गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जदयू की घोषित यह नई कमेटी चुनावी कमेटी ही है। जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा कहते हैं कि कमेटी में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।

Related Articles

Back to top button