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बिहार में जाति जनगणना पर सियासत जारी, सुप्रीम कोर्ट में आज होगी सुनवाई

नई दिल्ली: बिहार जातीय गणना की रिपोर्ट और जातियों-समुदायों की आबादी के आंकड़े जारी भले ही जारी हो चुके हैं, लेकिन इसको लेकर सियासत अभी भी जारी है। बिहार में जाति जनगणना को लेकर दायर याचिका पर 6 अक्टूबर यानी कि आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। याचिकाकर्ता ने सोमवार को जारी बिहार सरकार के जाति सर्वेक्षण को चुनौती देते हुए दावा किया है कि यह निजता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण के आंकड़े प्रकाशित कर दिए हैं। लिहाजा, इस मामले पर सुनवाई की जानी चाहिए।

बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ से अधिक है, जिसमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी है। वहीं अनारक्षित यानी सवर्ण वर्ग की आबादी 15.52 फीसदी है। जातीय गणना सर्वे में कुल 13,07,25,310 लोग शामिल हुए। बिहार के अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने 2 अक्टूबर को यह जानकारी दी थी। सर्वेक्षण में पाया गया कि बिहार की आबादी भारी मात्रा में हिंदू है, जिसमें बहुसंख्यक समुदाय कुल आबादी का 81.99 प्रतिशत है, इसके बाद मुस्लिम 17.70 प्रतिशत हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जाति आधारित गणना का प्रस्ताव विधानमंडल में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। बिहार विधानसभा के सभी 9 दलों की सहमति से यह निर्णय लिया गया कि राज्य सरकार अपने संसाधनों से जाति आधारित जनगणना कराएगी और इसकी मंजूरी पिछले साल 6 जू को मंत्रिपरिषद से दी गई थी। इसी फैसले के आधार पर राज्य सरकार ने अपने संसाधनों से जाति आधारित जनगणना कराई है। उन्होंने कहा कि जाति आधारित जनगणना से न सिर्फ जातियों का पता चलता है बल्कि सभी की आर्थिक स्थिति की भी जानकारी हासिल होती है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि सभी वर्गों के विकास और उत्थान के लिए आगे भी कार्रवाई की जाएगी।

बता दें कि देश में आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी। बिहार मंत्रिमंडल ने पिछले साल दो जून को जाति आधारित गणना कराने की मंजूरी देने के साथ इसके लिए 500 करोड़ रुपए का बजट पेश किया था। बिहार सरकार के जाति आधारित गणना पर पटना हाईकोर्ट ने रोक भी लगा दी थी। हालांकि, एक अगस्त को कोर्ट ने ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए बिहार सरकार के जाति आधारित गणना करने के फैसले को सही ठहराया था।

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