नागौर-गंगानगर बेसिन में पोटाश के भण्डार
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा : राजस्थान के नागौर-गंगानगर बेसिन से अच्छी खबर सामने आई है। अभीतक पूरी तरह आयात पर निर्भर पोटाश के क्षेत्र में राजस्थान में पोटाश के विपुल भण्डार मिलने की संभावना सुकून भरी है। पिछले दिनों राजस्थान की राजधानी जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उपस्थिति में केन्द्र सरकार के उपक्रम मिनरल एक्स्पलोरेशन कारपोरेशन लिमिटेड, राजस्थान सरकार और राजस्थान स्टेट मिनरल एण्ड माइंस लिमिटेड के बीच हुए त्रिपक्षीय करार से पोटाश की खोज और उसके खनन को प्रोत्साहन मिलेगा। मुख्यमंत्री गहलोत के अनुसार आरंभिक जानकारी के अनुसार नागौर-गंगानगर बेसिन में 2400 अरब टन पोटाश के भण्डार होने की संभावना है।
पोटाश की खोज में देश में पहली बार सोल्यूशन तकनीक का उपयोग किया जाएगा। माना जा रहा है कि प्रदेश में करीब एक लाख करोड़ के पोटाश का भण्डार है। भारतीय भूविज्ञान के आरंभिक सर्वे के अनुसार धरातल से 500 से 700 मीटर गहराई पर 30 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पोटाश के भण्डार है। श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर क्षेत्र में यह भण्डार है और इसे नागौर-गंगानगर बेसिन के नाम से जाना जाता है।
पोटाश का उपयोग खासतौर से खेती में उर्वरक के रूप में, ग्लास, बारूद, रसायन, पेट्रोरसायन, फोटोग्राफी व औषधि आदि में किया जाता है। दुनिया के देशों में रूस, बेलारूस, कनाडा, चीन, इजराइल आदि देशों में पोटाश का खनन हो रहा है। देश में अभी पोटाश का उत्पादन कहीं नहीं हो रहा, वहीं यह माना जा रहा है कि राजस्थान की नागौर गंगानगर बेसिन में पोटाश के विपुल भण्डार है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश का 95 प्रतिशत पोटाश इस क्षेत्र में उपलब्ध है। वहां खनन गतिविधियां आरंभ होने पर देश की पोटाश की जरूरत को देश में ही पूरा किया जा सकेगा। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में सालाना दस हजार करोड़ रु. के पोटाश का आयात हो रहा है। राजस्थान में पोटाश के खनन से विदेशों से आयात पर होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत होगी, वहीं आसपास के क्षेत्र में औद्योगिक निवेश के नए द्वारा खुलेंगे। क्षेत्र में उर्वरक उद्योग के साथ ही ग्लास आदि के उद्योग खुलेंगे। इससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
अच्छी बात यह है कि राजस्थान में बाड़मेर जिले में रिफायनरी का काम तेजी से चल रहा है और रिफायनरी के पास ही राज्य सरकार द्वारा एंसेलिरी इकाइयों की स्थापना करने में जुटी है। इससे इन इकाइयों की पोटाश की जरूरत भी होगी तो वह यहां से पूरी हो सकेगी। राजस्थान के खनिज मंत्री प्रमोद जैन भाया का मानना है कि प्रदेश में खनिजों की खोज और खनन गतिविधियों में तेजी लाई जा रही है। इससे प्रदेश में वैज्ञानिक तरीके से खोज व खनन में तेजी आई है वहीं राजस्व में बढ़ोतरी और रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होने लगे हैं। राजस्थान खनिज संपदा के दोहन में अब शीर्ष स्तर पर आता जा रहा है।
राजस्थान के माइंस के प्रमुख सचिव अजिताभ शर्मा का मानना है कि पोटाश की खोज के लिए देश में पहली बार सोल्यूशन तकनीक का उपयोग किया जाएगा। अभीतक देश में इस तकनीक का प्रयोग खनन क्षेत्र में नहीं हुआ है। त्रिपक्षीय करार के साथ ही एमईसीएल द्वारा संभाव्यता अध्ययन का काम शुरू कर दिया जाएगा और माना जा रहा है कि करीब 8 से 9 माह में खोज का कार्य पूरा हो जाएगा। इससे यह भी आशा बंधी है कि साल के अंत तक देश में पोटाश के खनन गतिविधियां आरंभ करने की औपचारिकताएं पूरी करनी की स्थिति आ जाएगी और इसके बाद जल्दी ही पोटाश का खनन शुरू हो सकेगा।
आज सबसे अधिक पोटाश की आवश्यकता खेती के क्षेत्र में हो रही है। रासायनिक उर्वरक उत्पादन कंपनियां इफको, कृभको, इंडियन पोटाश लिमिटेड, नागार्जुन फर्टिलाइजर, गुजरात-नर्मदा, चंबल और अन्य उर्वरक उत्पादक कंपनियां विदेशों से आयात पर निर्भर है। सरकार को पोटाश के आयात के लिए इन निर्माता कंपनियों के साथ ही काश्तकारों को सब्सिडी देनी पड़ती है। जब देश में ही पोटाश का उत्पादन होने लगेगा तो बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा तो बचेगी ही काश्तकारों व इस क्षेत्र में कार्यरत उद्योगों की भी जरूरत भी पूरी हो सकेगी।
आशा की जानी चाहिए कि एमईसीएल तय समय सीमा में पोटाश की संभाव्यता अध्ययन पूरा कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दे देगी। उसके आधार पर पोटाश के ब्लॉकों की ऑक्शन प्रक्रिया आरंभ हो सकेगी। केन्द्र व राज्य के बीच बेहतर समन्वय बनाते हुए इस कार्य को आगे बढ़ाया जाएगा। पोटाश का खनन कार्य शुरू होने से देश और प्रदेश में पोटाश के क्षेत्र में नया दौर आरंभ होगा। राजस्थान सरकार, खान और भूविज्ञान विभाग और इससे जुड़े अधिकारियों की टीम को पूरे उत्साह के साथ इस कार्य को पूरा करना होगा ताकि देश में पोटाश का उत्पादन आरंभ हो सके। इसके लिए आवश्यक तैयारियां यदि समय रहते की जाती है तो संभाव्यता रिपोर्ट आते ही इससे आगे की गतिविधियों को शुरू करने में अनावश्यक विलंब नहीं होगा और पोटाश का उत्पादन आरंभ हो सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)