उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मियों को खुद की भलाई के लिए बदलना होगा काम का रवैया
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेशवासियों के हित में बिजलीकर्मियों के कार्य बहिष्कार को खत्म कराने के लिए भले ही ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण का फैसला टाल दिया है, लेकिन सरकार के अगले कदम का जिम्मा सीधे-सीधे विभागीय कर्मियों के कंधे पर ही होगा। यदि वे अपना रवैया बदलते हुए मन, वचन और कर्म से जुटकर बिजली चोरी पर अंकुश लगाते न दिखे तो 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में पहुंच चुके ऊर्जा निगम के लिए आगे समझौते की कोई राह नहीं बचेगी।
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विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की लापरवाही से सफेद हाथी बन चुके बिजली विभाग को घाटे और कर्ज पर पालना सरकार के लिए भी आसान नहीं होगा। बिजलीकर्मियों को वेतन तक के लाले पड़ सकते हैं। गांव हो या शहर, जनता चौबीस घंटे बिजली आपूर्ति चाहती है। सरकार की भी यही योजना और संकल्प है, लेकिन आर्थिक रोड़े बड़े होते जा रहे हैं।
पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के निजीकरण के सरकार के फैसले और फिर बिजली कर्मियों के आंदोलन से यह तथ्य भी उभर आए कि आखिर ऊर्जा निगम या सरकार को निजीकरण का विकल्प चुनना क्यों पड़ा। ऊर्जा प्रबंधन के मुताबिक, मौजूदा सरकार ने विभिन्न स्त्रोतों से 3973 मेगावाट बिजली का उत्पादन तो बिजली आपूर्ति के लिए पारेषण क्षमता को बढ़ाकर 24000 मेगावाट तक पहुंचाया है। आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए सरकार ने बिजली विभाग का बजट बढ़ाकर 12,922 करोड़ रुपये किया है।
इसके बावजूद मार्च 2020 तक के बकाये के भुगतान के लिए ऊर्जा निगम को विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से 20,940 करोड़ रुपये का कर्ज लेना पड़ा है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार, यह स्थिति इसलिए आई, क्योंकि खर्च की तुलना में राजस्व वसूली बहुत कम है। प्रतिवर्ष 60 हजार करोड़ रुपये की बिजली खरीदी जाती है। अन्य खर्च मिलाकर करीब 77 हजार करोड़ चाहिए। ऐसे में निगम न्यूनतम 50 हजार करोड़ की वसूली को व्यवस्थाओं के संचालन के लिए जरूरी मानता है, जबकि वित्तीय वर्ष के छह माह में मात्र 18 हजार करोड़ रुपये की वसूली हुई है।
सितंबर में 4200 करोड़ रुपये ही आए जबकि प्रतिमाह कम से कम 5400 करोड़ रुपये वसूलने की जरूरत है। पूर्वांचल की स्थिति यह है कि प्रतिमाह 1150 करोड़ रुपये के बजाय 450 करोड़ रुपये की ही वसूली हो रही है। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष अरविन्द कुमार का कहना कि राजस्व वसूली में सुधार के बिना पर्याप्त व निर्बाध बिजली आपूर्ति कैसे संभव होगी। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे का कहना है कि हम तो प्रबंधन को पूरा सहयोग करने को तैयार हैं।
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