नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार को लेकर दिल्ली में बुधवार को बड़ा मंथन हुआ। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में हुई इस बैठक में एक ओर जहां 17 दलों की मौजूदगी ने सियासी गलियारों में सभी का ध्यान खींचा। वहीं, आम आदमी पार्टी का शामिल नहीं होना भी चर्चा का विषय रहा। हालांकि, इससे पहले साल 2017 में कांग्रेस की तरफ से बुलाई गई बैठक में आप को न्योता नहीं दिया गया था। जबकि, 2022 में पार्टी ने खुद ही बैठक से किनारा कर लिया। अब आप की इस दूरी के तीन कारण नजर आते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और पंजाब की राजनीति में कांग्रेस को हाशिए पर धकेलने वाली आप अब उसके साथ मंच साझा करने में सहज महसूस नहीं करती। इसके संकेत 2011 में सामने आए इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) से मिलते हैं, जिसने UPA को करारी चोट दी थी। कांग्रेस IAC से मिले झटके से उबर नहीं पाई और इसी के एक वर्ग ने आप का गठन किया। 2019 आम चुनाव में जब दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की बात थमी, तो रिश्ते और बिगड़ गए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, आप को लगता है कि उसकी भ्रष्टाचार विरोधी, आधुनिक छवि अन्य पार्टियों की पारंपरिक तरीकों के साथ मेल नहीं खाती। हालांकि, इससे पहले भी ऐसे कई मौके आए जब पार्टी संयुक्त कार्यक्रमों से सक्रिय रही। कर्नाटक में अरविंद केजरीवाल, एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में पहुंचे। 2019 में तृणमूल कांग्रेस की तरफ से आयोजित रैली का भी वह हिस्सा बने। इसेक अलावा 2019 में जंतर मंतर पर ‘लोकतंत्र बचाओ’ रैली भी की थी, जिसमें कांग्रेस के आनंद शर्मा समेत कई नेता थे। हालांकि, स्थिति 2019 की हार के बाद बदल गई थी, जिसके चलते पार्टी ने नई रणनीति पर विचार किया। एक ओर जहां केजरीवाल का बनर्जी, टीआरएस के केसीआर, डीएमके के स्टालिन से मिलना जारी है। वहीं, आप नेताओं का कहना है कि पार्टी पहले की तरह साझा कार्यक्रमों से दूरी बनाएगी।
बुधवार को हुई बैठक टीएमसी ने बुलाई थी। खबर है कि यह भी आप के शामिल नहीं होने का एक बड़ा कारण है। दोनों पार्टियों के बीच बीते एक सालों में संबंध तनाव में हैं। इसका एक कारण गोवा चुनाव भी है, जहां टीएमसी की एंट्री ऐसे समय पर हुई, जब आप अपनी सियासी जमीन तलाश रही थी। इसके अलावा दोनों पार्टियां कांग्रेस के सियासी रूप से कमजोर होने के बाद विपक्ष के तौर पर स्थापित होने की कोशिश में हैं।