भाजपा को दक्षिण में जड़ें जमाने से रोकेंगी प्रियंका
-अजय सिंह
18वीं लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उत्तर भारत के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो भारतीय जनता पार्टी की जड़ें यहां खासी मजबूत हैं। चुनाव परिणाम भी इसकी गवाही दे रहे हैं। उधर, दक्षिण भारत में भी भाजपा भले ही सीटों के लिहाज से कुछ खास न कर पायी हो लेकिन उसके वोट शेयर में वृद्धि दर्ज की गयी है। इससे यह बात तो तय हो गयी है कि भाजपा के रणनीतिकारों का अब पूरा जोर दक्षिण भारत में तेजी से भगवा झण्डा फहराने पर है। इस बीच, कांग्रेस नेतृत्व ने लम्बी माथापच्ची के बाद यह तय किया कि उसके युवा नेता राहुल गांधी यूपी की रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद बने रहेंगे और केरल की वायनाड सीट से इस्तीफा देंगे। कांग्रेस नेतृत्व ने यह निर्णय कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को उत्तर प्रदेश में मिली एक प्रकार से अप्रत्याशित सफलता के बाद लिया है। पार्टी को यह लगता है कि उत्तर प्रदेश में वह समाजवादी पार्टी के कंधों पर सवार होकर अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुन: हासिल कर सकती है। ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का इसी राज्य यानि उत्तर प्रदेश में सक्रिय रहना आवश्यक है। उधर, कांग्रेस आलाकमान ने बहुत सोच-समझकर केरल की वायनाड सीट से गांधी परिवार की ही प्रियंका गांधी को मैदान में उतारने का फैसला किया है। अब प्रियंका गांधी अपने बड़े भाई राहुल गांधी द्वारा छोड़ी गयी वायनाड सीट से उपचुनाव लड़ेंगी। साफ है कि इसके पीछे कांग्रेस आलाकमान की यह सोच है कि राहुल गांधी को उत्तर भारत में तो प्रियंका गांधी को दक्षिण भारत में सक्रिय करने से भाजपा को चोट पहुंचायी जा सकती है। रणनीतिकारों का मानना है कि उत्तर भारत में राहुल गांधी जहां भाजपा को कमजोर करने पर फोकस करेंगे तो वहीं प्रियंका गांधी दक्षिण में भाजपा को जड़ें जमाने से रोकने का काम करेंगी।
दरअसल, अठारहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे दक्षिण भारत के राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं। दक्षिण भारत में कमजोर माने जाने वाली बीजेपी ने इस बार कर्नाटक और तेलंगाना के साथ आंध्र प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया है। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के गढ़ कहे जाने वाले केरल में भी बीजेपी ने पहली बार एक सीट जीत कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। हालांकि तमिलनाडु में भाजपा की दाल नहीं गली। तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन ने राज्य की सभी 39 सीटें जीती है। गठबंधन ने केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की एकमात्र सीट पर भी जीत दर्ज की है। कांग्रेस ने तमिलनाडु और पुडुचेरी में 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इन सभी दस सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार तमिलनाडु को मथा लेकिन इसके बाद भी बीजेपी राज्य में एक सीट भी नहीं जीत सकी। वहीं यहां यह उल्लेखनीय है कि भाजपा राज्य के 10 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। जबकि भाजपा की पूर्व सहयोगी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) ने राज्य के करीब 29 सीटों पर दूसरा स्थान प्राप्त किया। एआईएडीएमके की पूर्व अध्यक्ष और सीएम जयराम जयललिता का 2016 में निधन होने के बाद से पार्टी के ‘बुरे दिन’ चल रहे हैं। वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में एआईएडीएमके ने राज्य की 39 में से 37 सीटें जीती थीं। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने राज्य के सभी 39 सीटें जीती थीं।
उधर, भाजपा ने कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से करीब 17 सीटें हासिल कर राज्य में अपना दबदबा बरकरार रखा है। पार्टी ने 2019 में 28 में से 25 सीटें जीती थीं। पिछली चुनाव के मुकाबले राज्य में बीजेपी की सीटें कम हुई हैं। याद हो कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को विधानसभा चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा था और कांग्रेस ने कर्नाटक में अकेले बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के चुनाव परिणामों ने भाजपा के घाव पर मरहम लगाया है। वहीं भाजपा की सहयोगी दल जनता दल (सेक्युलर) ने दो सीटें जीत कर भाजपा की स्थिति को और मजबूत कर दिया। इसी प्रकार यदि आंध्र प्रदेश की बात की जाये तो यहां की 25 लोकसभा सीटों ने एनडीए के पक्ष ने भारी जनादेश दिया। यहां एनडीए को 21 सीटें मिली हैं। भाजपा सहयोगी और पूर्व सीएम चंद्र बाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने राज्य की 16 सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं दक्षिण भारत के एक और महत्वपूर्ण प्रदेश केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ की तूती बोली। यह राज्य दो पक्षीय चुनाव के लिए जाना जाता है। यहां यूडीएफ और एलडीएफ के बीच मुकाबला होता है। इस बार कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने अधिकतर सीटें जीती हैं।
भाजपा को पहली बार केरल में एक सीट मिली है। अभिनेता से नेता बने सुरेश गोपी ने त्रिशूर लोकसभा क्षेत्र से 70 हजार से अधिक वोटों के भारी अंतर से जीत हासिल की है। चौंकाने वाली बात यह रही कि सत्ताधारी माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हो पाई। सीपीएम उम्मीदवार ने अलाथुर में 20 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है। इसके पीछे यह प्रमुख वजह थी कि वामपंथी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता उठ खड़ी हुई थी। दक्षिण भारत के इन नतीजों से साफ पता चलता है कि भाजपा ने यहां अपनी छाप छोड़ी है। पार्टी को अकेले बहुमत नहीं मिलने की वजह से सरकार बनाने के लिए दक्षिणी राज्यों सहित अपने सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा। बस, इन्हीं आंकड़ों को देखते हुए कांग्रेस ने अभी से भाजपा को दक्षिण में पांव पसारने से रोकने की तैयारी कर ली है और इसकी कमान प्रियंका गांधी को सौंपी गयी है।