अन्तर्राष्ट्रीय

श्रीलंका में 21 वें संविधान संशोधन के जरिये राष्ट्रपति की असीमित शक्तियों को ख़त्म करने का प्रस्ताव

विवेक ओझा

नई दिल्ली: दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति या जो भी राष्ट्राध्यक्ष रहे हों , उन लोगों ने अपने अधिकारों को असीमित करने के लिए संसद में कानून पारित किए , संवैधानिक संशोधन पारित किए , किसी ने इसके लिए जनमत संग्रह करा डाला । चीन , रूस जैसे कई अन्य देशों का उदाहरण यहां दिया जा सकता है। इसी कड़ी में दक्षिण एशियाई देश श्रीलंका में भी ऐसा ही कुछ हुआ जब श्रीलंका के 21 वें संविधान संशोधन को लागू करने की मांग हो रही है। श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि नए 21 वें संविधान संशोधन के जरिये राष्ट्रपति और कैबिनेट मंत्रियों को संसद के प्रति जिम्मेदार बनाने की सोच है। 21 वां संविधान संशोधन के जरिये 20 A को अमान्य घोषित किये जाने की संभावना है क्योंकि इससे राष्ट्रपति गोटाबाया को असीमित शक्तियां मिलीं थीं ।

इस संशोधन के जरिए यह प्रावधान किया गया था कि श्रीलंका के कैबिनेट मिनिस्टर को उनके पद से तभी हटाया जा सकता है जब श्रीलंका का प्रधानमंत्री मृत्यु, त्यागपत्र या अन्य कारण से प्रधानमंत्री के पद पर न रहे। दूसरी स्थिति यह बनाई गई कि उन्हें पद से तब हटाया जा सकता है जब श्रीलंका की संसद की सरकारी नीति या बजट को ख़ारिज कर दे या फिर श्रीलंका की संसद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे। राष्ट्रपति को प्रधाममंत्री की सलाह पर काम करने का भी प्रावधान इसमें था।

कई ऐसे देश होते हैं जहां पार्लियामेंट्री और जुडिशियल सुप्रीमेसी को लेकर जंग होती है ,तो कभी विधायिका और कार्यपालिका एक दूसरे से श्रेष्ठ और ताकतवर बने रहने की होड़ में रहते हैं। इससे सेपेरेशन ऑफ पॉवर , शक्तियों के केंद्रीकरण , शासन के तीनों अंगों पर चेक्स एंड बैलेंस बिगड़ जाता है , ऐसा ही कुछ हुआ है श्रीलंका में। 21 वें संशोधन को समझने के लिए श्रीलंका के 19 और 20 वें संशोधन को समझना जरूरी है। श्रीलंका में 19 वां संविधान संशोधन 2015 में तब पारित किया गया था जब वहां के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे थे। इस संशोधन ने श्रीलंका के राष्ट्रपति की वहां के प्रधानमंत्री को पद से हटाने की शक्तियों को खत्म कर दिया था। उस समय श्रीलंका के संविधान के अनुच्छेद 46 ( 2) और 48 में संशोधन किया गया था ।

अब अगर बात करें श्रीलंका के 20वें संविधान संशोधन ( 20 A) की तो इसे अक्टूबर 2020 में पारित किया गया था और इसने 19वें संविधान संशोधन ( 19 A) को खत्म कर उसका स्थान ले लिया और इसने एक बार फिर से राष्ट्रपति की शक्तियों को असीमित स्तर पर बढ़ा दिया। संसदीय परिषद के लिए स्वतंत्र संवैधानिक परिषद का उन्मूलन भी कर दिया। इस संविधान संशोधन के जरिये दोहरी नागरिकता ( dual citizenship ) वाले लोगों को चुनावी अधिकार देने का एक विवादास्पद प्रावधान भी जोड़ा गया। 20 A ने श्रीलंका के विधायी कार्यपालिका और न्यायिक संतुलन बिगाड़ कर रख दिया और शक्तियों का केंद्रीकरण कार्यपालिका के हाथ में कर दिया। इसके अलावा इसके अलावा कई रूढ़िवादी और रेडिकल बौद्ध समूहों ख़ासकर सिंहला बौद्धों ने दोहरी नागरिकता वालों के श्रीलंका की संसद में सदस्य बनने का रास्ता साफ करने वाले प्रावधान 20 A की आलोचना की गई।

20 वें संशोधन ने नियंत्रण और संतुलन की धारणा को ही नकार दिया। इसके बाद अब फिर से 21 वें संविधान संशोधन के माध्यम से श्रीलंका में राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण करने की कोशिश हो रही है। कुल मिलाकर कहें तो भीषण आर्थिक और राजनीतिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका के वरिष्ठ राजनेताओं ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ एक बैठक की। इस दौरान मुख्य संवैधानिक संशोधनों पर चर्चा की गई और इस बात पर सहमति जताई गई कि राष्ट्रपति को मिलीं निरंकुश शक्तियों की सीमित करने वाले संविधान के 21वें संशोधन संशोधन को जल्द से जल्द पारित किया जाना चाहिए। 

( लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं )

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