उत्तराखंडराज्य

उत्तराखंड कांग्रेस में PSD बम कभी भी फट सकता है, दिग्गज तलाश रहे कमल के फूल की राह!

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस में PSD बम कभी भी फट सकता है। इसकी तीव्रता इतनी अधिक हो सकती है कि हाथ’ के साथ ही पूरे तन के परखच्चे उड़ सकते हैं। पार्टी के तमाम दिग्गज और MLAs या तो CM पुष्कर सिंह धामी के संपर्क में हैं या फिर किसी तरह भाजपा में आने की कोशिश में हैं। ‘हाथ’ के एकदम कमजोर हो जाने और कथित टॉप Leadership के रुख से वे बेपनाह नाराज-असंतुष्ट दिखते हैं। वे तकरीबन उम्मीद खो चुके हैं। कांग्रेस विधायकों को लगता हैं की पार्टी का उत्तराखंड में भविष्य अंधकार में हैं। मोदी-पुष्कर Factor को वे उत्तराखंड के नजरिए से घातक संयोजन मान के भविष्य में भी BJP की मज़बूत स्थिति के लिए आश्वस्त दिख रहे हैं।

कांग्रेस के तमाम दिग्गज नामों के साथ ही 6-7 विधायकों को ले के खुद पार्टी के एक बड़े नेता ने ऑफ द रिकार्ड यह बात कही कि सियासत में बने रहने और कामयाब होने के लिए उनके पास BJP में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा। कई लोग BJP के साथ संपर्क में हैं’। किसके संपर्क में हैं, इसका खुलासा उन्होंने नहीं किया लेकिन ये जरूर कहा कि पुष्कर के CM बनने, उनकी कम उम्र,आला कमान का भरोसा और हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद की काट तलाशने में काँग्रेस नेतृत्व के नाकाम रहने और आपसी मार-कुटाई से हाथ को जैसे लकवा मार गया हैं।

विधानसभा चुनाव में काँग्रेस सरकार की हवा ऊपरी तौर पर जबर्दस्त दिखने के बाद जिस तरह पार्टी का सफाया हुआ, उसके लिए निचले और मँझोले ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के बड़े नाम भी आला कमान की खराब नीतियों और निचले ओहदेदारों के साथ खराब बर्ताव को जिम्मेदार मान रहे हैं। कुछ बड़े नेताओं ने आपसी अनौपचारिक बातचीत में कहा कि चुनाव के बाद वे राहुल गांधी से मिल के नतीजों के बारे में बात करना चाह रहे थे। दर्जन भर बार कोशिश करने के बावजूद राहुल ने मिलने के लिए वक्त तक नहीं दिया।

रही-सही कसर नए प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा-नेता विरोधी दल यशपाल आर्य और Deputy Leader भुवन कापड़ी की नियुक्ति ने पूरी कर दी। तीनों कुमायूं से होने और प्रीतम सिंह-मदन बिष्ट सरीखे दमदार चेहरों को एकदम दरकिनार करने से ऐसा लग रहा है की हाई कमान ने उत्तराखंड में पार्टी के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी है। काँग्रेस के असंतुष्टों और बीजेपी के दरवाजे की ओर रुख कर रहे सरदारों का कहना है कि पुष्कर ने जिस तरह BJP को मोदी की छत्रछाया में हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद के हथियार के बूते विधानसभा चुनाव में विपरीत हालात में फतह दिलाई, उससे उनकी लंबी पारी की उम्मीद की जा सकती है।

काँग्रेस सरदारों के मुताबिक चुनाव हार जाने के बावजूद पुष्कर का CM बन जाना, उनकी पार्टी के भीतर ताकत और विश्वास को साबित करता है। साथ ही इससे बीजेपी की अस्थिर सरकार देने की छवि भी बदली है। काँग्रेस में जो हालात हैं, वह दिनों-दिन बदतर होते जा रहे। ऐसे में यह उम्मीद करना कि आगामी 5 सालो बाद भी काँग्रेस अपनी वापसी कर पायेगी, यह दूर की कौड़ी नज़र आती है। कांग्रेस पार्टी के कई विधायक अब अपना भविष्य बीजेपी में ही तलाश रहे है।वे अपनी संख्या इतनी रखना चाह रहे कि दल-बदल विरोधी कानून से बचा जा सके और उनकी विधायकी पर आंच न आए।

दल-बदल विरोधी कानून-(2003) के 91वें संविधान संशोधन के मुताबिक किसी भी दल के कम से कम दो-तिहाई निर्वाचित सदस्यों के अन्य दल में विलय पर ही सदन की सदस्यता बची रहेगी। निर्वाचित निर्दलीय या मनोनीत सदस्य भी अगर किसी दल में शामिल हो जाए तो उनकी सदस्यता तत्काल खत्म हो जाती है। सूत्रों के अनुसार बीजेपी में शामिल होने की मंशा रखने वाले विधायक सिर्फ अपनी संख्या दो-तिहाई तक करने की कोशिश पूरी होने तक रुके हुए हैं। माना यह जा रहा है कि 19 में से कम से कम 13 विधायकों के काँग्रेस छोड़ने की दशा में उनकी सदन की सदस्यता सुरक्षित रहेगी ।

इतनी अधिक तादाद में विधायक जोड़ना खुद असंतुष्टों के लिए भी आसान नहीं रहेगा। अंदरखाने की खबर ये है कि जो भी काँग्रेस विधायक बीजेपी में आएगा,बीजेपी उसको उसकी ही सीट से फिर चुनाव लड़ा सकती है। लेकिन यह तब होगा जब दल-बदल विरोधी कानून के चलते सदस्यता रद्द हो जाती है। काँग्रेस को आशंका है कि जिस तरह बीजेपी उसके विधायकों और अन्य नेताओं पर डोरे डाल रही या फिर उसके ही तमाम जमींदार-सूबेदार-सुल्तान किस्म के लोग पार्टी तक छोड़ने को तैयार दिख रहे, उससे पार्टी बीजेपी के हाथों बुरी तरह रौंद दी जाएगी।

नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता विरोधी दल असंतुष्टों का मनाने-समझाने की कोशिश कर रहे। उनकी सफलता का रंग सुनहरा होता है या काला, ये जल्द ही पता चल जाएगा। पार्टी के पुराने दिग्गजों का कहना है कि उनके नेतृत्व के पास परिपक्वता का अभाव दिख रहा है। हरिद्वार और गढ़वाल की इस कदर बेकदरी पार्टी Leadership की अपरिपक्वता दर्शाती है और क्षेत्रीय असंतुलन को अब सुधारने का भी कोई मौका इतनी जल्दी नहीं मिलने वाला है। जानकारों का मानना हैं कि इन परिस्थितियों में न करण और न यशपाल को बदला नही जा सकता ।

Related Articles

Back to top button