देहरादून (सत्यनारायण मिश्र): उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को यदि एक रूपक में ढाला जाए, तो वे हैं हलवाहा नायक – वह कुशल किसान, जो मिट्टी की सोंधी खुशबू को सीने में बसाए, विकास का हल चलाता है। जैसे हलवाहा खेत की मेड़ पर सधे कदमों से चलता है, वैसे ही धामी सत्ता की पगडंडी पर संतुलन बनाए रखते हैं। उनकी जड़ें खटीमा की मिट्टी में गहरी हैं, पर उनका दृष्टिकोण हिमालय सा ऊंचा है।
जैसे हलवाहा खाद्यान्न की नर्सरी को सहेजकर भविष्य की फसल बोता है, वैसे ही धामी उत्तराखंड के लिए आत्मनिर्भरता और संस्कृति के बीज बो रहे हैं। उनके हाथ में सत्ता की लगाम बैलों की रस्सी सी है – न दबाव में ढीली, न अहंकार में कसी। यूनिफॉर्म सिविल कोड और धर्मांतरण विरोधी कानून जैसे कठिन फैसलों को वे उसी सहजता से लागू करते हैं, जैसे हलवाहा हल की मूठ थामकर खेत जोतता है।

धामी का नेतृत्व ‘हुड़किया बौल’ की धुन सा है – जिसमें परंपरा की मधुरता है, तो आधुनिकता की लय भी। वे न मिट्टी छोड़ते हैं, न आकाश की उड़ान भूलते हैं। जैसे हलवाहा बारिश का इंतजार करता है, पर खेत की तैयारी में कमी नहीं छोड़ता, वैसे ही धामी चुनौतियों के बीच भी उत्तराखंड को प्रगति पथ पर ले जा रहे हैं। एक वाक्य में पुष्कर सिंह धामी – वह हलवाहा, जो मिट्टी से संवाद करता है, और विकास की फसल उगाता है। “
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)