अन्तर्राष्ट्रीयदस्तक-विशेष

कतर और भारतीय डिप्लोमेसी

विवेक ओझा

कतर में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए इंडियन नेवी के आठ पूर्व अधिकारियों को सजा-ए-मौत मिलने के बाद भारत सरकार हरकत में है। इसे भारत सरकार की कूटनीतिक परीक्षा की घड़ी माना जा रहा है। कतर का आरोप है कि इन अधिकारियों ने सबमरीन प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारियां इजरायल को लीक की हैं। इंडियन नेवी से रिटायर्ड होने के बाद ये अफसर दोहा स्थित दहरा ग्लोबल खमीस अल अजमी कंपनी में काम करते थे। कंपनी टेक्नोलॉजी और कंसल्टेसी सर्विस प्रोवाइड करती थी। यह कतर की नौसेना के कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के कार्य में संलग्न थी। कतर की इंटेलिजेंस एजेंसी स्टेट सिक्योरिटी ब्यूरो ने बहुत ही जल्दी में इस कंपनी से जुड़े आठ पूर्व भारतीय अफसरों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें सीधे सॉलिटरी कनफाइनमेंट यानी ऐसे एकांत सेल में बंद कर दिया। इन्हें न तो किसी से मिलने की छूट होती है और न ही किसी से बात करने की। ये वो आठ अफसर हैं जो कभी भारतीय नौसेना के लिए काम कर चुके हैं, लेकिन अपनी गिरफ्तारी से पहले वो कतर की कंपनी के लिए काम कर रहे थे। ये आठों पूर्व भारतीय नौसैनिक पिछले साल अगस्त माह से जेल में बंद थे। भारत सरकार का विदेश मंत्रालय कतर के न्यायालय के इस निर्णय से चकित है और इन आठों अधिकारियों की सुरक्षा के लिए सभी संभावित वैधानिक उपाय पर विचार कर रहा है। महावाणिज्य दूतावास (कनस्यूलर स्तर) पर भी भारतीय विदेश मंत्रालय रास्ते तलाश रहा है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि कतर ने दंड देने के आधार को भी स्पष्ट नहीं किया है। ये आठों अधिकारी भारतीय नौसेना में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर 20 साल की सेवा दे चुके हैं और इनमें से एक कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को प्रवासी भारतीय सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। अब सवाल उठता है कि कतर द्वारा ऐसी कार्यवाही के क्या निहितार्थ हैं? सबसे पहले कतर के विवादास्पद चरित्र को समझने की जरूरत है। खाड़ी क्षेत्र में कतर ही ऐसा देश है जिसके ऊपर अलगाववाद और आतंकी गतिविधियों को समर्थन देने, टेरर फंडिंग करने का दोषी माना जाता रहा है।

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इजिप्ट, बहरीन जैसे देशों ने इस मुद्दे पर कुछ वर्षों पर पहले कतर से राजनयिक संबंध भी खत्म कर दिए थे। दूसरा, कतर की नजदीकियां ईरान से हैं और दोनों देशों के ऊपर आतंकी संगठन हिजबुल्लाह को फंडिंग और अन्य समर्थन देने का आरोप लगाया जाता रहा है। 6 सदस्य देशों वाले खाड़ी सहयोग संगठन और अरब लीग ने हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है लेकिन ईरान और कतर इसे राजनीतिक हथियार के रूप में देखते हैं। एक ऐसे समय में जब इजरायल और हमास के बीच खतरनाक जंग जारी है, इस स्थिति में कतर द्वारा भारत से जुड़े राजनयिक विवाद को शुरू करने के पीछे एकाधिक कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है। ईरान को हमास के लिए टेरर फंडिंग करने का जिम्मेदार माना जाता है। ईरान ने हमास को हथियार भी दिए और पैसे भी और फिलिस्तीन के साथ अपनी इस्लामिक बंधुत्व भाव को भी उजागर करता रहा। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री मोदी का इजरायल के साथ खड़े होने की बात करना पश्चिम एशिया की राजनीति करने वाले कुछ देशों को रास नहीं आया। जबकि भारत साफ तौर पर कह चुका है कि वह आतंकवाद के हर स्वरूप का विरोध करता है और चाहता है कि कोई भी देश आत्मनिर्धारण के अधिकार को आधार बनाकर, नृजातीय मांगों के संदर्भ में प्रतिशोधात्मक कार्यवाही को आधार बनाकर या आतंकी गतिविधियों को धार्मिक युद्ध या नव स्वाधीनता संग्राम को आधार बनाकर किसी भी आतंकी हिंसक कार्यवाही को जायज नहीं ठहराया जा सकता।

यही कारण है कि भारत ने वर्ष 1996 में कॉम्प्रिहेंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में किया था ताकि अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा पर राष्ट्रों के बीच सहमति बन सके और किसी भी देश में कोई व्यक्ति या संगठन आतंकवाद को किसी भी आधार पर जायज न ठहरा सके। कतर हमास को फंड देने वाला एक प्रमुख देश है और कतर ही हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजरायली लोगों की रिहाई के लिए मध्यस्थता का कार्य कर रहा है। कतर जीसीसी का सदस्य होने के बावजूद सऊदी अरब और यूएई से दूर होकर अपनी अलग ही राजनीति चला रहा है। इससे कतर की सोच पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। कतर मुस्लिम दुनिया में सऊदी अरब के प्रभुत्व को चुनौती देने वाला एक मात्र देश है।

भारत कतर संबंध को ठीक रखना जरूरी

कतर में 8 लाख भारतीय रहते हैं और यह उस देश का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय भी है। कतर भी भारत को स्पेशल ट्रीटमेंट देता रहा है। भारत अपने कुल लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) आयात का 40 फीसदी कतर से मंगाता है जबकि कतर के कुल एलएनजी निर्यात में भारत की खरीदारी 15 फीसदी है। कतर का गैस भारत के लिए स्वच्छ और सुरक्षित ऊर्जा की गारंटी है। खरीदार के रूप में कतर के लिए भारत बेहद अहम है। 2016 में कतर ने भारत के लिए एलएनजी की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा की कटौती कर दी थी। इससे पहले 2015 में भारत को कतर से 12 डॉलर प्रति मीट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट की दर से लिक्विफाइड नेचुरल गैस खरीदनी पड़ती थी। भारत को इस डील से अरबों डॉलर का फायदा हुआ था।

भारत की सरकारी कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड कतर की रासगैस से एलएनजी मंगाती है। कतर के साथ अच्छे बिजनेस डील की वजह से भारत ने 2003 से लेकर अगले 11 साल तक गैस डील पर 15 अरब डॉलर बचाए थे। इसके साथ ही कतर ने भारत को 12000 करोड़ रुपये की छूट दी थी। ये रकम भारत को बतौर जुर्माना कतर को चुकानी थी। भारत ने साल 2015 में तय समझौते से कम एलएनजी खरीदी थी। इसी के एवज में भारत को यह जुर्माना देना था लेकिन 2015-0216 में पीएम मोदी और कतर के अमीर के बीच हुए समझौते की वजह से कतर भारत को ये छूट देने पर राजी हो गया था।

भारत और कतर के संबंधों के बीच तल्खी नई नहीं है। कई प्रकरण समय समय पर उभरते रहे हैं जिनसे भारत कतर संबंध कहीं न कहीं प्रभावित हुए। पूर्व बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा, इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नाइक, मशहूर पेंटर रहे मकबूल फिदा हुसैन के प्रकरणों से भारत कतर संबंध प्रभावित हुए। जाकिर नाइक भारत में वॉन्टेड है। प्रवर्तन निदेशालय और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने उसे वॉन्टेड घोषित कर रखा है। उस पर भड़काऊ भाषण देने, मनी लॉन्ड्रिंग करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप है और उसे कतर में हुए फीफा वल्र्डकप में आमंत्रित किया गया था जिसपर भारत ने अपनी आपत्ति और नाराजगी जताई थी। जाकिर नाईक को कतर से फंडिंग भी मिलती रही है। पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी को लेकर कतर ने भारतीय राजदूत को तलब कर लिया था। इसके साथ ही नूपुर शर्मा के खिलाफ हुई निलंबन की कार्रवाई का स्वागत किया था।

हिंदू देवियों और पौराणिक चरित्रों पर बनाई गई अपनी पेंटिंग को लेकर विवाद में रहने वाले मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन भी भारत-कतर के बीच कड़वाहट की वजह रहे हैं। असल में साल 2006 में अपनी विवादित रचनाओं पर घिरने के बाद वह खुद भारत से निर्वासित हो गए थे और लंदन में रहने लगे थे। कुछ समय उन्होंने दुबई में बिताया। साल 2010 में मकबूल फिदा हुसैन को कतर के शाही परिवार ने अपने देश की नागरिकता देकर सम्मानित किया था। ऐसा शायद ही किसी भारतीय के साथ हुआ हो कि उसे कतर की नागरिकता का प्रस्ताव मिला है। हालांकि यह कतर का खुद से किया गया फैसला था। हुसैन ने अपनी ओर से न तो आवेदन किया था और न ही ऐसी मंशा व्यक्त की थी। इस नागरिकता के बाद कतर-भारत में सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन एक हल्की कड़वाहट तो आ गई थी।

उल्लेखनीय है कि कतर पूरी दुनिया में अपने आतंकवाद समर्थक रवैये के कारण बदनाम है। यह एक ऐसा देश है, जो इस्लाम के नाम पर दुनिया के लगभग सभी आतंकवादी समूहों को धन मुहैया कराता है। यह दूसरे मुस्लिम देशों के विपरीत आतंकवादी समूहों में शिया या सुन्नी का भी भेदभाव नहीं करता है। कतर पूरी दुनिया के आतंकवादी समूहों का सबसे बड़ा फाइनेंसर है। यह दुनिया के लगभग हर आतंकी समूह को पैसा बांटता है। इसमें हमास, अल कायदा, इस्लामिक स्टेट, हिजबुल्लाह, मुस्लिम ब्रदरहुड, अल नुसरा फ्रंट जैसे आतंकी समूह शामिल हैं। कतर लगातार इन आतंकी समूहों को पैसा देता रहता है। इसका प्रमुख कारण इस्लामी दुनिया में खुद को सबसे बड़ा आका घोषित कराना है। कतर की सऊदी अरब के साथ पुरानी दुश्मनी है। सऊदी को इस्लामी दुनिया का सबसे ताकतवर देश माना जाता है। कतर को इसी बात से चिढ़ है, इस कारण वह आतंकी समूहों को पैसे देने से भी बाज नहीं आता है।

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