ज्योतिष : इस वर्ष यानि 2020 में रक्षाबंधन तीन अगस्त को है। रक्षाबंधन पर श्रीकृष्ण और द्रोपदी का जिक्र करना अनिवार्य हो जाता है। श्रीकृष्ण ने द्रोपदी के स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध और अन्य राजाओं से द्रोपदी की रक्षा की थी। वह अपना सुदर्शन चक्र निकालकर सभी को भयभित कर देते हैं।
सुदर्शन चक्र को देखकर शिशुपाल और दुर्योधन सहित सभी भयभित होकर वहां से चले जाते हैं। इस पर श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र और बलराम का हल गायब हो जाता है और तब श्रीकृष्ण अर्जुन की ओर देखकर मुस्कुराते हैं और उसके पास आकर कहते हैं वीर धनुर्धर तुम निर्भय होकर द्रोपदी को लेकर यहां से जाओ। ये आज से तुम्हारी हुई। हम देखते हैं कौन तुम्हारा पीछा करता है। यह सुनकर द्रोपदी हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से कहती हैं-आज आपने हमारे प्राणों की रक्षा की है इसके लिए मैं आपको प्रणाम करती हूं और जीवनभर आपकी आभारी रहूंगी केशव। यह कहकर द्रौपदी श्रीकृष्ण के चरण छू लेती हैं। तब श्रीकृष्ण उसे उठाकर कहते हैं-और हम जीवन भर तुम्हारी रक्षा करते रहेंगे देवी द्रोपदी। यह सुनकर द्रोपदी कहती हैं- वचन दे रहे हो द्वारिकापति इसे निभाओगे भी? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- अवश्य निभाऊंगा पांचाली। आज से मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन मानता हूं और वचन देता हूं कि किसी भी सहायता के लिए जब भी मुझे याद करोगी तो हमें उसी क्षण अपने पास पाओगी। यह सुनकर द्रोपदी फिर से प्रणाम करती है तो श्रीकृष्ण कहते हैं सौभाग्यवती भव:। इस तरह श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को बहन बनाकर उसकी हर मौके पर रक्षा की।
वहीं युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ के दौरान जब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काटकर उसका वध कर दिया था। इस कार्य के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में चोट लग गई तथा खून की धार बह निकली। यह सब द्रोपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया फलस्वरूप खून बहना बंद हो गया। तब श्रीकृष्ण ने कहा था यह पल्लू का टुकड़ा तुम्हारे बहुत काम आएगा द्रोपदी। ब्याज सहित लौटाऊंगा। तब द्रोपदी यह समझ नहीं पाई थी। फिर कुछ समय पश्चात जब पांडव जुए में इंद्रप्रस्थ हार गए तब उन्होंने द्रोपदी को भी दांव पर लगा दिया। इस कारण दुःशासन ने द्रोपदी को उसके बाल सहित पकड़ा और भरी सभा में चीरहरण के लिए ले आया। उस समय द्रोपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया और द्रोपदी की साड़ी को इतना लंबा कर दिया की दु:शासन खींचते खींचे थक हारकर गिर पड़ा।