Ram Mandir : नल-नील जैसी कहानी, मजदूर कहते हैं- यह राम का काम, इसमें मिलती है खुशी
अयोध्या : जामवंत बोले दोउ भाई। नल नीलहि सब कथा सुनाई॥ राम प्रताप सुमिरि मन माहीं। करहु सेतु प्रयास कछु नाहीं॥ जामवंत ने नल-नील भाइयों को कहा मन में श्री राम को स्मरण कर सेतु तैयार करो, रामप्रताप से बिना कठिनाई के बन जाएगा। जन्मभूमि का 10 नंबर गेट। रामलला तक रामकोट के रास्ते जाने वाला रास्ता। पुलिस की 3 बैरिकेडिंग पार कर सड़क उस गेट तक पहुंचती है, जहां से रोज 4 से 6 हजार मजदूर पिछले कई सालों से राममंदिर बनाने आते और जाते हैं। मैटल डिटेक्टर वाले गेट से गुजरते आधार कार्ड दिखाते हैं। ये मजदूर खास हैं, क्योंकि इनके हिस्से राममंदिर बनाने की जिम्मेदारी आई है।
समय होगा लगभग एक बजे दुपहरी का। सिर पर पीली प्लास्टिक वाली टोपी, नारंगी जाली वाली हाफ सदरी पहने कई जोड़ी कदम बिना हांफे 20 मिनट तक इस गेट से बाहर आए जा रहे हैं। ये वक्त खाने की छुट्टी का है। मजदूरों की यह लाइन एक नीले कंटेनर वाले लेबर मोहल्ले में जाकर खत्म होती है। बाहर कुछ चार-छह ठेलों पर रोटियां-पूड़ियां बन रहीं थीं। लखीमपुर से आए पृथ्वीपाल से बात होने लगी। आधी पूड़ी का एक कौर मुंह में डालते हुए कहने लगे, काम तो वहां भी बहुत मिल रहा था, पर यह रामनाम का काम है।
बक्सर के सुनील मिश्रा यहां से पहले हैदराबाद में थे। कहते हैं, कंपनी वहां ज्यादा पैसे देती थी, पर यहां काम करके खुशी होती है। बिहार यूपी के अलावा यहां राजस्थान के सबसे ज्यादा मजदूर हैं। पत्थर वाला काम वही कर रहे हैं। मानसिंह लगभग कॉलर ऊंची करने वाले अंदाज में कहते हैं, काशी में कॉरिडोर का पत्थरवाला दरवाजा भी मैंने ही बनाया था। उनके साथ राजस्थान से आए कई मजदूर तीन शिफ्ट में ड्यूटी कर रहे हैं। नाइट शिफ्ट भी लगने लगी है। विनोद कहते हैं, इंजीनियर बहुत जल्दबाजी कर रहा है आजकल, प्राण प्रतिष्ठा तक सब पूरा जो करना है।
वैसे तो 8000 मजदूरों का रजिस्ट्रेशन राममंदिर के लिए हुआ था। कुछ पहले आए थे, फिर कुछ लौट गए। जो अभी हैं इन्हें भी 10-15 तारीख तक काम पूरा करना है। फिर प्राण प्रतिष्ठा तक काम बंद रहेगा और ये अपने घर छुट्टी चले जाएंगे। इनका सुपरवाइजर कहता है- इन्हें राम के काम में इतना आनंद आ रहा है कि वापस जाना ही नहीं चाहते। काम करते जब तब रामभजन गुनगुनाने लगते हैं। किसी के गले में रामनाम लिखा पट्टा है, तो किसी के गले में मफलर। पट्टा-मफलर दोनों ही धूल में सने हैं। हाथ में औजार हैं। इलेक्ट्रिसिटी का काम करने वाले दो लोग इसी गेट पर अस्थायी पास का इंतजार कर रहे हैं। आपस में बतिया रहे हैं। रोज पास लेना होगा, राममंदिर है ये, कोई डिब्बा में बम ले आए तो…। नल-नील की कहानी सी दुनिया है, इस लेबर कैंप की। ये देश के सबसे मजबूत हाथ हैं, जो कुछ गढ़ते है और इनकी मजबूत छाती में दुबकी धड़कने, इन दिनों रामधुन बुदबुदाती हैं।