दस्तक-विशेष

बागी बलिया सिरमौर रहा जंगे-आजादी का!!

के. विक्रम राव

स्तंभ: बगावत का पर्याय रहा बलिया जनपद। कल (19 अगस्त 2022) जब अपनी तीन-दिन की स्वतंत्रता का 80वां जश्न वह मना रहा था तो आजादी का अमृतोत्सव तब जाज्वल्यमान हो उठा। समारोह के मुख्यपात्र योगी आदित्यनाथ, जो इस घटना के तीन दशक बाद जन्मे, की वाणी रूंधी थी। तबका मुक्त बलिया चित्तू पाण्डेवाला सबके मानस पटल पर उकेरित हो उठा। ब्रिटिश संसद सन्न थी जब बताया गया था कि बलिया आजाद हो गया। फिर लंदन में ही तीन दिन बाद ऐलान हुआ कि ‘‘बलिया पुनः जीत कर साम्राज्य का अंग बना दिया गया है।‘‘

पूर्वांचल में ब्रिटिश सत्ता का पाशविक संहार लोमहर्षक था। इसकी यथार्थवादी रिपोर्टिंग प्रयागराज के पत्रकार और तब राष्ट्रवादी दैनिक ‘‘दि नेशनल हेरल्ड‘‘ के संवाददाता पीडी टंडन ने करी थी। उसे मांज कर संपादक के. रामा राव ने मुख्य समाचार (बैनर हेडिंग में) छापा था। उसके शब्द थे ‘‘बलिया का नरसंहार।‘‘ तभी रामा राव लखनऊ जेल से रिहा हुये थे। बंद अखबार दोबारा खुला था। (फोटो दी है)। इस समाचार पर चौथी बार संयुक्त प्रांत के ब्रिटिश गवर्नर सर मारिस हैलेट ने हेरल्ड पर पचास हजार रूपये का जुर्माना थोपा। मगर संपादक ने हंसी में उड़ा दिया। गोविन्द वल्लभ पंत तबतक प्रथम मुख्यमंत्री नामित हो रहे थे। तो क्या स्वाधीन सरकार राष्ट्रवादी दैनिक से जुर्माना वसूलती ?

लेकिन ऐसोसिएटेड जरनल के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू ने संपादक द्वारा दी गयी इस हेडलाइन और रिपोर्ताज पर खिन्नता व्यक्त की। नामित प्रधानमंत्री की मान्यता थी कि ब्रिटिश राज के प्रति नरमी बरती जाये चूंकि वे भारत छोड़कर घर वापस जा रहे थे। मगर संपादक का आग्रह था कि बलिया के इन गोरे कसाईयों को माफ नहीं किया जा सकता है। अंततः संपादक ने त्यागपत्र दे दिया। वे मद्रास (आज चेन्नई) के नये दैनिक के संपादक बन कर दक्षिण चले गये। बलिया में जो नृशंस कार्य अंग्रेज शासकों ने किये उसका अखबारी वर्णन नीचे दिया है। इसे पढकर हर भारतीय के रोंगटे खड़े हो जायेंगे। वितृष्णा हो जायेगी। आक्रोश भी। अगस्त 1942 की घटनाओं का वर्णन कुछ यूं छपा था:

‘‘बलिया में बिलथरा रोड पर ट्रेन लूट ली गयी, इंजन तोड़ दिया गया। डाकखाने, बीज गोदाम और थानों पर हमला हुआ। बीजगोदाम पर गोली चली। कौशल कुमार को थाने पर झंडा लगाते समय गोली मार दी गयी। लोगों को थानों में बंद कर उन पर गोली चलायी गयी। चित्तू पाण्डेय ने जिलाधीश का पद ग्रहण किया। क्रांति के मददगारों का घर जलाया गया, लोगों को मुर्गा बनाया गया। चूतड़ों और अण्डकोशों पर लाठी से ठोकर मारी गयी। पेड़ों पर चढ़ा कर नीचे से संगीन भोंका गया। एक हवाई जहाज डराने के लिये ऊपर से घुमाया गया। मठ पर तिरंगा फहराने के लिये गोली चलायी गयी। महंत 40 फीट ऊंचाई से कूद पड़े और उनकी टांग टूट गयी। जबकि वह स्वयं 10 हजार चंदा सरकार को दे चुके थे। चंडी प्रसाद को गोली मारी गयी इसलिये कि वह 1921 में कांग्रेस के सदस्य थे। बांसडीह में गोली चली। रामकृष्ण सिंह और बागेश्वर को इतना पिटवाया गया कि उनकी मृत्यु हो गयी। खेती का बाजार लूट लिया गया। जो लोग भागकर खेतों में चले गये उनपर भी गोली चलायी गयी। आतंक का इतना विकराल रूप हो गया था कि चौकीदार ही कप्तान सा हो गया था। उपाध्याय ने लिखा है: ‘‘कुछ अधिक खतरनाक बंदियों के लिये और खतरनाक यातनाएं होती थीं गुप्तांग पर मिर्च लगाना और पुरूषेन्द्रिय पर छड़ी मारना तथा उसे रगड़ना। पुलिस की आज्ञा पाकर पुरूषेन्द्रिय को भंगी हाथों से रगड़ता, पहले तो वीर्य निकलता किन्तु रगड़ते-रगड़ते खून निकलता। देवनाथ उपाध्याय के अनुसार 64 व्यक्ति बलिया में शहीद हुये। गाजीपुर के सादात और जमानियां में गोलियां चलीं और कुछ व्यक्ति शहीद हुए।‘‘

बलिया के शहीदी समारोह के संदर्भ में योगी आदित्यनाथ जी से जुड़ी हम पत्रकारों की एक घटना भी उल्लेखनीय है। गोरखपुर में सितम्बर 2011 में हमारे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्यूजे) की राष्ट्रीय परिषद अधिवेशन का उद्घाटन सांसद योगीजी ने किया था। हमारे साथी लोग वहीं से नेपाल जा रहे थे। योगीजी ने हमारे कार्यक्रम में एक विशेष स्थल जुड़वा दिया था। वह था चौराचौरी जहां सत्याग्रही (फरवरी 1921) हिंसक हो गये थे। परिणामतः महात्मा गांधी ने अपना प्रथम असहयोग सत्याग्रह वापस ले लिया। यहां गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शताब्दी समारोह की अध्यक्षता की थी। हमारे आईएफडब्ल्यूजे के प्रतिनिधियों का इस शहीदी स्थल की सम्यक यात्रा योगीजी नेे करायी थी। इस स्मारक का निर्माण इंदिरा गांधी ने फरवरी 1982 में कराया और तब मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह मुझे वहां लिवा ले गये थे। मैं ‘‘टाइम्स आफ इंडिया‘‘ का यूपी ब्यूरो का प्रमुख था। अखबार तब दिल्ली से छपकर लखनऊ भेजा जाता था।

आज भारत अपने शहीदों के प्रति समुचित आभार अमृतोत्सव वर्ष में व्यक्त कर रहा है। प्रमुदित हुये सारे देशभक्त।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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