समाज व राष्ट्र से जुड़ी समस्याओं से पलायन की अनुमति नहीं देता धार्मिक पीठ : योगी
ब्रह्मलीन दिग्विजयनाथ महाराज एवं ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ जी महाराज की पावन स्मृति में चल रहे साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह का समापन
गोरखपुर : गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन संत दिग्विजयनाथ महाराज एवं ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ महाराज की पावन स्मृति में चल रहे साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह के समारोप को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक धार्मिक पीठ अपने आप को केवल एक पूजा पद्धति तक ही सीमित नहीं रख सकती। देश और समाज की ज्वलंत समस्याओं से अपने आपको अलग नहीं कर सकती। धर्म, हमें कभी भी देश और समाज से जुड़ी समस्याओं से पलायन करने की आज्ञा नहीं देता है। इसलिए हम अपने आप को उनके साथियों के साथ जूझने के लिए तैयार करें। समाज और राष्ट्र से जुड़ी समस्याओं को हम अपनी समस्या मानें। धार्मिक स्थलों को उनके अनुरूप स्थापित करें और ढालें। गोरक्ष पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि समाज से जुड़ी समस्याओं की वज़ह से यदि हम पलायन करेंगे तो जन विश्वास को खो देंगे। राष्ट्र से जुड़ी हुई किसी भी समस्या से यदि हम मुंह मोड़ने का प्रयास करेंगे तो मिट जाएंगे। वर्तमान और भावी पीढ़ी कभी भी हमें माफ नहीं करेगी।
सनातन धर्म का हिस्सा है गोरक्षपीठ की परंपरा
योगी ने कहा कि गोरक्षपीठ की परंपरा, भारत की सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण कड़ी का हिस्सा है। एक आश्रम की पद्धति कैसी होनी चाहिए, कैसे संचालित होनी चाहिए, समाज के प्रति देश और धर्म के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए ? इस पीठ के आचार्य बखूबी जानते हैं। यही वज़ह है कि अपने पूर्व आचार्यों के उन सभी मूल्यों और आदर्शों पर चल रहे हैं और उनका अक्षरशः पालन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भौतिकता के पीछे जब मानवता भाग रही हो, उन स्थितियों में भी अपने मूल्यों और आदर्शों को अक्षुण्ण बनाए रखा जाय। देश, काल और परिस्थिति के अलावा समाज की आवश्यकता के अनुरूप उस प्रकार के कार्यक्रमों को किया जाय। समाज के हर पक्ष को जोड़ा जाय। इन कार्यों से ही जुड़कर गोरक्षपीठ अपने उत्तर दायित्व का निर्वहन का पूरा प्रयास कर रहा है।
पराधीनता में शिक्षा की अलख को जगाया
योगी ने कहा कि आजादी के पूर्व जब यह देश पराधीन था, तब शिक्षा की अलख जगाने के लिए अपने सीमित साधनों से इस अभियान के साथ एक धार्मिक पीठ जुड़ गया था। देश की आजादी के लिए उस समय की आवश्यकताएं क्या हैं, पूज्य संतों ने उस कालखंड में अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग भूभाग में आंदोलन को चलाया। उनको नेतृत्व प्रदान किया। बढ़-चढ़कर भागीदारी की। गोरक्षपीठ ने पराधीनता को दूर करने के लिए समाज के हर पक्ष से खुद को जोड़े रखा। इस धार्मिक पीठ ने धर्म के माध्यम से समाज को उच्च प्राथमिकता का संदेश देने का काम किया। गोरक्षपीठ ने पराधीनता को कभी बर्दाश्त नहीं किया। पराधीनता के उस कालखंड से गोरक्षपीठ अलख जगा रहा है। समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है।
आजादी के बाद भी अपना दायित्व नहीं भूला पीठ
उन्होंने कहा कि इस पीठ ने आजादी के पूर्व देश के स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उसका सघन अभियान चलाया। अब आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण के वर्तमान अभियान को एक नई गति दे रहा है। गोरक्षपीठ निरंतर अपने आचार्यों के सानिध्य में इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाता रहा है। अब भी यह प्रवाहमान है। उन्होंने कहा कि युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ महाराज और युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ महाराज का निरंतर यही प्रयास रहा कि हमें देश काल, समाज और युग के अनुकूल अपने आपको ढाला। ऐसे मनीषियों के स्थापित आदर्शों के अनुरूप देश और धर्म की रक्षा के लिए उस प्रकार के अभियान का हिस्सा भी बनना पड़ेगा।