देहरादून (गौरव ममगाईं)। कल यानी 28 नवंबर की दोपहर जब देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू सिलक्यारा टनल रेस्क्यू आपरेशन पूरा हुआ तो उत्तराखंड ही नहीं, पूरे देश ने राहत की सांस ली। 41 श्रमिक भाईयों के हंसते चेहरे देखकर देशवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि, 16 दिन तक उत्तराखंड समेत पूरा देश श्रमिकों की चिंता में डूबा रहा, इस बीच दिवाली और उत्तराखंड की दिवाली माने जाने वाली ‘ईगास’ पर्व भी यूं ही गुजर गया था। अब जब इतना बड़ा रेस्क्यू सफलतापूर्वक पूरा हो गया है तो अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास पर ‘ईगास’ मनाने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री धामी बड़े ही उत्साह के साथ पारंपरिक रूप में ईगास मनाएंगे। इसमें कई मंत्री व विधायकों के भी शामिल होने की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री धामी ने नहीं मनाई थी दिवाली व ईगासः
दरअसल, सिलक्यारा टनल हादसा दिवाली की सुबह हुआ था। श्रमिकों के टनल में फंसने की खबर सुनते ही सीएम धामी ने दिवाली न मनाने का फैसला किया था। इसके 11 दिन बाद 23 नवंबर को ईगास का पर्व भी आया। ईगास पर्व के दिन संभावना जताई गई थी कि शायद शाम तक रेस्क्यू पूरा हो जाए। इससे उम्मीद जगी कि शायत उत्तराखंडवासियों को ईगास मनाने का मौका मिल जाए। लेकिन, फिर रेस्क्यू में कई बड़ी बाधाएं आ गई थी। तब सीएम धामी ने कहा कि वह ईगास पर्व नहीं मनाएंगे, उन्होंने उत्तराखंडवासियों से भी अपील की थी कि वे भी न मनाएं। जब सभी श्रमिक भाई सुरक्षित बाहर निकलेंगे, तभी पूरे जश्न के साथ ईगास पर्व मनाएंगे।
आखिरकार किसी तरह मंगलवार यानी 28 नवंबर की दोपहर को रेस्क्यू पूरा होने की आधिकारिक घोषणा कर दी गई। देर शाम तक श्रमिकों को एक-एक करके सुरक्षित बाहर निकाला, जहां उनका मुख्यमंत्री मंत्री पुष्कर सिंह धामी व केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने गले लगाकर स्वागत किया। सीएम ने श्रमिकों को शॉल ओढ़ाकर हौसलाफजाई की और उनके धैर्य एवं साहर को सल्यूट किया।
सीएम धामी ने ही ‘ईगास’ पर राजकीय अवकाश घोषित किया थाः
बता दें कि सीएम धामी ने पिछली सरकार के कार्यकाल में 2021 में मुख्यमंत्री बनने के दौरान ईगास पर्व पर राजकीय अवकाश घोषित किया था। इससे पहले ईगास पर्व को लेकर सरकारें संस्कृति संरक्षण की बातें तो करती थी, लेकिन धरातल पर प्रयास देखने को नहीं मिलते थे। सीएम पुष्कर सिंह धामी कई बार सांस्कृति एवं पारंपरिक पर्वों के संरक्षण पर जोर देते रहे हैं। यही वजह है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी को दिवाली में इतने जश्न में नहीं देखा जाता है, जितने उत्साह एवं जोश से सीएम धामी ईगास पर्व मनाते हैं। पिछले ईगास पर्व पर भी सबने देखा कि सीएम धामी किस तरह हाथ में ‘भैलो’ लेकर नृत्य करते दिखे थे। सोशल मीडिया में उनके ईगास पर्व को प्रोत्साहन देने की सराहना भी होती रही है।
भले ही मुख्यमंत्री ने एक जिम्मेदार अभिभावक के तौर पर दिवाली व ईगास पर्व न मनाने का फैसला लिया था, लेकिन अब जब सबसे बड़ा रेस्क्यू सिलक्यारा टनल रेस्क्यू को सफलतापूर्वक पूरा किया गया है तो यह बड़े जश्न से कम नहीं है। ऐसे में मुख्यमंत्री धामी उत्तराखंड का लोकप्रिय पारंपरिक पर्व ‘ईगास’ मनाएंगे, ताकि इसके महत्त्व को भी बनाये रखा जा सके
ईगास की परम्परा कैसे शुरू हुई? —
ईगास पर्व की परंपरा का इतिहास बेहद रोचक और गौरवांवित करने वाला है। इसे जानने के लिए हमें उत्तराखंड के वीर योध्दा माधो सिंह भंडारी की वीरगाथा को जानना होगा, जिनकी याद में ईगास मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।
बात 1640 के दशक की है, जब तिब्बत (वर्तमान चीन) के शासक गढ़वाल क्षेत्र पर कब्जा करना चाहते थे। तत्कालीन पंवार शासक महिपतिशाह ने अपने सबसे भरोसेमंद एवं बहादुर सेनापति माधो सिंह भंडारी को जिम्मा दिया कि वे सेना की टुकड़ी लेकर तिब्बती शासकों का सामना करें। फिर माधो सिंह भंडारी ने फैसला लिया कि हम सीधे तिब्बत पर आक्रमण करेंगे। इस आक्रमण से तिब्बती हैरान रह गए। माधो सिंह भंडारी सैकड़ों तिब्बती सैनिकों पर टूट पड़े और उन्होंने ऐतिहासिक जीत हासिल की। तिब्बती शासकों में माधो सिंह भंडारी का बहुत खौफ रहता था।
इस युध्द का संबंध ईगास पर्व से है। जब माधो सिंह भंडारी सैनिकों के साथ तिब्बत के लिए रवान हुए, उस समय दीपावली आने वाली थी। दीपावली तक माधो सिंह भंडारी वापस नहीं लौट पाए थे और पूरे गढ़वाल के लोग माधो सिंह व उनके सैनिकों के वापस आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। कई परिवारों के लोग डरे हुए भी थे, इसलिए पूरे गढ़वाल के लोगों ने दीपावली नहीं मनायी। जब दिवाली के 11 दिन बाद वह सैनिकों के साथ वापस लौटे तो पूरे गढ़वाल में उस दिन की रात को दिवाली मनाई गई, जिसे नाम दिया गया था- ‘ईगास’। तभी से हर वर्ष यह पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।